सर्दियां और चाय!
अचंभे की बात है कि इतनी लोकप्रियता के बावजूद चाय का इतिहास बहुत नया है. अंग्रेजों ने 1835 में असम में चाय बागान लगाए. उस समय महंगी चाय ज्यादातर निर्यात के मकसद से तैयार की जाती थी. बाद में जब वेंडर्स ने चाय में दूध, चीनी और मसालों का इस्तेमाल शुरू किया और फिर सस्ती होने के बाद तो यह मशहूर हो गई.
बहुत से भारतीय परिवारों की मसाला चाय बनाने की अपनी रेसिपी है. ज्यादातर रोस्टेड और बारीक पिसे मसालों के मिश्रण से चाय तैयार किया जाता है. ताजा अदरक और तुलसी के पत्तों को उबालने से भी बेहतरीन चाय बनती है.
भारत के कई हिस्सों में चाय में तुलसी और अदरक के साथ लेमनग्रास या ‘हरी चाय की पत्ती’ (सिम्बापोगान साइट्रेटस) भी मिलाई जाती है. गले में खराश होने पर चाय में नियमित रूप से एक चुटकी नमक मिलाना लोकप्रिय घरेलू फार्मूला रहा है.
चायवेदा की संस्थापक प्रेरणा कुमार का कहना है, "आज हम जैसी चाय जानते हैं, आयुर्वेद में वैसी कोई चाय नहीं है, लेकिन हमारे पास मसालों और जड़ी बूटियों वाला स्वीटनर (आमतौर पर शहद या गुड़) मिला एक पेय है. यह हर्बल चाय भारत में काफी आम है."
चाय में मसाले मिलाना एक व्यक्ति को फायदा पहुंचा सकता है, जबकि दूसरे के लिए नुकसानदायक हो सकता है.
सर्दियों के लिए आयुर्वेदिक पेय को काश्यम या काश्य कहते हैं. इससे गले में खराश और जुकाम में आराम पहुंचता है. बुनियादी नुस्खा यह कि इसमें पानी में पुदीना, धनिया, काली मिर्च और अदरक मिलाया जाता है. उबलने के बाद पेय को छान लिया जाता और इसमें दूध व जैगरी पाउडर (गुड़) मिलाया जाता है. इस पेय को पित्त दोष में लेने की सलाह दी जाती है.
लौंग, दालचीनी, मुलेठी, अदरक, इलायची और काली मिर्च का मिश्रण कफ में फायदेमंद होता है.
वात के लिए सौंफ, लौंग, अदरक, दालचीनी और मुलेठी फायदेमंद होता है.
प्रेरणा बताती हैं, "चाय के कुछ किस्में सभी दोषों के लिए कारगर हैं और किसी भी मौसम में इन्हें पिया जा सकता है. तुलसी त्रिदोषनाशक है, जो तीनों दोषों में फायदेमंद है और किसी भी मौसम में इसका सेवन किया जा सकता है क्योंकि यह व्यक्ति और मौसम की प्रकृति की जरूरत के हिसाब से गर्म, ठंडा या संतुलित करती है."
आयुर्वेद शरीर से टॉक्सिन और वेस्ट प्रोडक्ट को निकालने के लिए गर्म पानी पीने के फायदों पर जोर देता है. जब इस गर्म पानी में जड़ी बूटियां और मसाले मिलाए जाते हैं, तो यह ऊर्जा प्रदान करता है और प्राण को गति प्रदान करने में मदद करता है और पाचन को बढ़ाता है.
चाय कभी भी खाली पेट नहीं पीनी चाहिए.
पांच साल से कम उम्र के बच्चों को कभी भी चाय पत्ती से बनी चाय नहीं देनी चाहिए.
आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह लेने के बाद ही आयुर्वेदिक चाय लेनी चाहिए.
सौंफ और हल्दी को दूध में मिलाया जा सकता है. मिंट को पानी में मिलाना होता है.
हल्दी वाली चाय नया क्रेज है. लेकिन अगर आप इसे रोजाना लेते हैं तो यह गंभीर समस्याएं पैदा कर सकती है. गर्मियों में कभी भी इसका सेवन नहीं करना चाहिए.
भारतीय भोजन परंपराओं से गहराई से जुड़े हैं. अधिकांश घरों में ताजा खाना मौसमी फसलों से तैयार किया जाता है, जो पोषण देता है और सेहतमंद रखता है.
प्रेरणा कहती हैं, “देखिये कि आपके दादा-दादी क्या खाते हैं. वे जानते हैं कि कब, क्या और कितना खाना चाहिए और आप कभी गलती नहीं करेंगे.”
यह ज्ञान पीढ़ी-दर-पीढ़ी अगली पीढ़ी को सौंपा जाता रहा है.
यहां एक परंपरागत मसाला चाय बनाने की रेसिपी दी जा रही है:
सामग्री
2 बड़ा चम्मच सौंफ
2 बड़ा चम्मच धनिया के बीज
1 छोटा चम्मच काली मिर्च
2 छोटा चम्मच सोंठ पाउडर
1/2 छोटा चम्मच लौंग
अदरक पाउडर को छोड़कर सभी सामग्री को रोस्ट कर लें. इसमें अदरक पाउडर मिलाकर एक एयरटाइट कंटेनर में रख लें. एक छोटा चम्मच पाउडर अपनी नियमित चाय में मिलाएं और पीयें.
आप इस पाउडर को पानी में उबालकर थोड़ा जैगरी पाउडर मिला सकते हैं और इसे बिना दूध और बिना चाय की पत्ती के ले सकते हैं. यह इम्यूनिटी को बढ़ाती है और मौसमी एलर्जी से बचाती है.
विदेशी और महंगी चाय के लिए भटकने की बजाए इलाकाई और मौसमी उपज पर हाथ आजमाएं और समझदारी से एक्सपेरिमेंट करें. अपनी जड़ों की ओर लौटना और प्राचीन फूड परंपराओं की खोज करना जीवन और पृथ्वी की रक्षा का एक स्थाई समाधान है.
(नूपुर रूपा फ्रीलांस राइटर और मदर्स के लिए लाइफ कोच हैं. वह पर्यावरण, फूड, इतिहास, पेरेंटिंग और ट्रैवेल पर लेख लिखती हैं.)
(ये लेख आपकी सामान्य जानकारी के लिए है, यहां किसी बीमारी के इलाज का दावा नहीं किया जा रहा, बिना अपने डॉक्टर की सलाह लिए कोई उपाय न करें. स्वास्थ्य से जुड़ी किसी भी समस्या के लिए फिट आपको डॉक्टर से संपर्क करने की सलाह देता है.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: 08 Dec 2020,05:23 PM IST