(ये लेख आपकी सामान्य जानकारी के लिए है, यहां किसी तरह के इलाज का दावा नहीं किया जा रहा है, सेहत से जुड़ी किसी भी समस्या के लिए और कोई भी उपाय करने से पहले फिट आपको डॉक्टर या विशेषज्ञ से संपर्क करने की सलाह देता है.)

स्ट्रोक (Stroke) यानी पक्षाघात एक तरह की प्रतिकूल क्लीनिकल घटना है जो फौरी तौर पर तो दिमाग पर असर डालती है, लेकिन यह आपके दिल से जुड़ी है. यह भारत में मौतों की बड़ी वजहों में से एक है.

इंडियन स्ट्रोक एसोसिएशन (Indian Stroke Association) की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक पिछले कुछ दशकों में भारत में स्ट्रोक के मामलों की हिस्सेदारी लगभग 100% बढ़ गई है.

जब दिमाग के किसी हिस्से में ब्लड की सप्लाई में रुकावट आती है या कम हो जाती है, तो स्ट्रोक होता है.

ऐसा तब होता है जब दिमाग के ऊतकों को ऑक्सीजन और न्यूट्रिएंट्स मिलना बंद हो जाते हैं.

इससे चंद मिनटों के अंदर दिमाग की कोशिकाएं मरने लगती हैं.

हार्ट (Heart) और सारी रक्त वाहिकाएं (blood vessels) जो दिमाग सहित शरीर के चारों ओर ब्लड को पंप करती हैं और पहुंचाती हैं, इसे कार्डियोवस्कुलर सिस्टम (cardiovascular system) कहते हैं.

स्ट्रोक प्लाक (फैटी पदार्थों) के जमा होने से हो सकता है, जो वाहिकाओं को संकरा (इस्केमिक स्ट्रोक ischemic stroke) कर देता है या फट चुकी धमनी (artery) से खून का रिसाव होने और दिमाग को ब्लड की सप्लाई करने वाली वाहिकाओं में खून का थक्का (हेमरेजिक स्ट्रोक- hemorrhagic stroke) जमने से हो सकता है.

बात जब स्ट्रोक के खतरे की आती है तो कई कारकों को ध्यान में रखना होगा:

  • बढ़ती उम्र: हमारी आर्टरी (arteries) धीरे-धीरे संकरी होती जाती हैं और उम्र बढ़ने के साथ कड़ी होती जाती हैं. इनमें फैटी पदार्थों के भरने की ज्यादा संभावना होती है, जिससे स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है. नतीजतन उम्र बढ़ने के साथ स्ट्रोक का खतरा बढ़ता जाता है.

45 साल की उम्र के बाद हर दशक पर खतरा दोगुना होता जाता है और सभी स्ट्रोक का 70 फीसद से ज्यादा 65 साल की उम्र के बाद होता है.
  • हाई ब्लड प्रेशर: स्ट्रोक के मामलों में हाई ब्लड प्रेशर (High Blood Pressure) सबसे बड़ी वजह है. ब्लड प्रेशर की समस्या होने पर हार्ट ब्लड को पंप करने के लिए ज्यादा मेहनत करता है. तब यह हार्ट पर दबाव डाल सकता है, ब्लड वेसेल (blood vessels) को नुकसान पहुंचा सकता है, और इस तरह खून रिसने (hemorrhage) या थक्के बनने (clots) का खतरा बढ़ जाता है. इससे बचने के लिए हर एक को नियमित रूप से ब्लड प्रेशर की जांच करानी चाहिए और इसे तय सीमा में रखने के लिए डॉक्टर की सलाह पर अमल करना चाहिए.

  • हाई कोलेस्ट्रॉल: कोलेस्ट्रॉल एक तरह का फैट है, जिसे लिवर प्रोसेस करता है और यह रक्त में मौजूद रहता है. कोलेस्ट्रॉल दो तरह के होते हैं, LDL को “बैड कोलेस्ट्रॉल” के नाम से भी जाना जाता है, जिससे हर किसी को सावधान रहना चाहिए. यह ब्लड वेसेल में इकट्ठा हो सकता है और रास्ते को जाम कर सकता है.

  • डायबिटीज: डायबिटीज (Diabetes) को काफी समय से स्ट्रोक का जोखिम कारक माना जाता है. यह ब्लड आर्टरीज में कई जगहों में पैथोलॉजिकल बदलाव कर सकता है, और अगर सीधे दिमाग की नसों (cerebral vessels) को नुकसान होता है, तो यह स्ट्रोक की वजह बन सकता है. इसके अलावा बेकाबू ग्लूकोज लेवल वाले मरीजों में मृत्यु दर ज्यादा होती है और उनमें स्ट्रोक के बाद के नतीजे बहुत खराब होते हैं.

  • एट्रियल फाइब्रिलेशन: एट्रियल फाइब्रिलेशन (Atrial fibrillation या heart arrhythmia) एक आम हार्ट रिदम कंडिशन है, जो किसी शख्स को स्ट्रोक के खतरे में डाल देती है. एट्रियल फाइब्रिलेशन में ब्लड हार्ट के अपर चैंबर में जमा हो जाता है और ब्लड के थक्के बन जाते है. अगर हार्ट के बाईं ओर (left atrium) के अपर चैंबर में ब्लड का थक्का बनता है, तो यह वहां से आगे जा सकता है और दिमाग तक पहुंच सकता है, आर्टरी को जाम कर सकता है और स्ट्रोक की वजह बन सकता है.

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  • फैमिली हिस्ट्री: हाई ब्लड प्रेशर, स्ट्रोक और इससे जुड़ी दूसरी बीमारियां आनुवांशिक कारकों से होने की आशंका होती है. सिकल सेल डिजीज (sickle cell disease) सहित कई वंशानुगत बीमारियों से स्ट्रोक हो सकता है. जिन लोगों की स्ट्रोक की फैमिली हिस्ट्री है उनके लिए खतरा ज्यादा होता है.

कई जोखिमों के बावजूद नियंत्रित किए जा सकने वाले जोखिम कारकों की संख्या को कम करना स्ट्रोक से बचने का सबसे अच्छा उपाय है.

इसके लिए लाइफस्टाइल में कुछ आसान बदलावों की जरूरत होगी जिनमें स्मोकिंग छोड़ना, वजन कम करना, कम सोडियम वाली बैलेंस्ड डाइट लेना, सैचुरेटेड फैट और ट्रांस-फैट कम करना, अल्कोहल का सेवन (स्माल ड्रिंक रोजाना दो से ज्यादा नहीं) सीमित रखना, शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए नियमित रूप से एक्सरसाइज करना, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और हाई कोलेस्ट्रॉल जैसी मेडिकल कंडिशन होने पर इस पर ठीक से काबू रखना शामिल है.

स्ट्रोक का पता लगाने करने के लिए डॉक्टर हार्ट डिजीज या स्ट्रोक की पर्सनल और फैमिली मेडिकल हिस्ट्री की पड़ताल, ब्लड सैंपल की जांच, इलेक्ट्रो-कार्डियोग्राम (ECG) के माध्यम से हार्ट में इलेक्ट्रिक एक्टिविटी को माप कर, इकोकार्डियोग्राम की मदद से हार्ट के कामकाज और बनावट में किसी भी गड़बड़ी का पता लगा सकते हैं.

वह इलेक्ट्रो-एन्सेफैलोग्राम (EEG) की मदद से दिमाग में इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी को भी माप सकते हैं, जिसके आधार पर ट्रीटमेंट किया जाता है.

स्ट्रोक का खतरा लाने वाली इन मेडिकल दशाओं में से कुछ जैसे कि नैरो आर्टरीज, हार्ट रिदम डिसऑर्डर, और हार्ट में बनने वाले खून के थक्के को तमाम उन्नत डिवाइस और इंप्लांट का इस्तेमाल कर शरीर में बन रही कंडिशन को दुरुस्त किया जा सकता है.

उदाहरण के लिए मेडिकल मैनेजमेंट के अलावा arrhythmias का इलाज एबलेशन थेरेपीज का इस्तेमाल करके किया जा सकता है, और लेफ्ट एट्रियल अपेंडेज क्लोजर प्रोसीजर के जरिये ब्लड वेसेल में जाने से रोक कर हार्ट में थक्कों को जाने से रोका जा सकता है.

इन उपायों को एक काबिल फिजीशियन की सलाह के बाद ही अपनाया जाना चाहिए.

स्ट्रोक एक मेडिकल इमरजेंसी होती है, जिसमें फौरन इलाज देने की जरूरत होती है. जोखिम कारकों का समय पर पता लगाने और कभी-कभी बीमारी को रोकने वाले इलाज का मकसद स्ट्रोक से बचाना होता है, जो खतरनाक होने के अलावा मरीजों और उनके प्रियजनों को भावनात्मक और आर्थिक दोनों तरीकों से नुकसान पहुंचा सकता है.

(डॉ. प्रवीण चंद्रा मेदांता मेडिसिटी, गुरुग्राम में इंटरवेंशनल एंड स्ट्रक्चरल हार्ट कार्डियोलॉजी के चेयरमैन हैं.)

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Published: 29 Sep 2021,07:00 AM IST

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