(ये लेख आपकी सामान्य जानकारी के लिए है. किसी भी सुझाव पर अमल करने से पहले अपने डॉक्टर या एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें.)
मेडिकल जर्नल लैंसेट में छपी एक स्टडी में बताया गया कि लोगों को अपना कोलेस्ट्रॉल लेवल 25 साल की उम्र से ही चेक कराना शुरू कर देना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि कोलेस्ट्रॉल लेवल से आपको दिल की बीमारियां और स्ट्रोक के रिस्क का अंदाजा लगाया जा सकता है.
अब उन सभी लोगों के लिए जिन्हें कोलेस्ट्रॉल सिर्फ और सिर्फ उनके दिल का दुश्मन नजर आ रहा है, उनके लिए सबसे पहले ये जान लेना चाहिए कि हमारे शरीर की हरेक कोशिका में कोलेस्ट्रॉल मौजूद है और हर कोशिका को इसकी जरूरत होती है.
विटामिन डी, एस्ट्रोजन और टेस्टोस्टेरॉन जैसे हार्मोन बनाने के लिए भी कोलेस्ट्रॉल की जरूरत होती है.
हमारी सेहत के लिए कोलेस्ट्रॉल का टाइप और उसका लेवल महत्वपूर्ण होता है.
मैक्स मल्टीस्पेशएलिटी सेंटर, पंचशील पार्क की हेल्थ एंड वेलनेस कोच प्रीति राव बताती हैं,
अगर बैड कोलेस्ट्रॉल (LDL) बहुत ज्यादा हो जाए और गुड कोलेस्ट्रॉल (HDL) पर्याप्त न हो, तो अतिरिक्त कोलेस्ट्रॉल धमनियों में जमा होने लगता है, जिससे धमनियां ब्लॉक हो सकती हैं और इसी वजह से दिल की बीमारियों का खतरा भी बढ़ता है.
खराब खानपान और हमारी आधुनिक अनहेल्दी लाइफस्टाइल कई समस्याओं समेत कोलेस्ट्रॉल बढ़ने की भी वजह बनती है.
दिल्ली के डॉ कल्याण बनर्जी होम्योपैथिक क्लीनिक से डॉ कुशल बनर्जी बताते हैं कि कुछ लोगों के इंटरनल मेटाबॉलिक प्रक्रियाओं में कुछ गड़बड़ी की वजह से भी ज्यादा कोलेस्ट्रॉल जमा हो सकता है या अतिरिक्त कोलेस्ट्रॉल शरीर से बाहर नहीं निकल पाता.
ब्लड कोलेस्ट्रॉल लेवल घटाने या इस पर काबू पाने के लिए डाइट टिप्स, एक्सरसाइज से लेकर दवाइयों के विकल्प मौजूद हैं.
पंचशील पार्क स्थित मैक्स मल्टी स्पेशएलिटी सेंटर में इंटरनल मेडिसिन डिपार्टमेंट की एसोसिएट डायरेक्टर डॉ सुप्रिया बाली बताती हैं कि किसी शख्स के गुड कोलेस्ट्रॉल, बैड कोलेस्ट्रॉल, उनका अनुपात और रिस्क फैक्टर्स के आधार पर ये तय किया जाता है कि दवाइयां देनी हैं या नहीं.
हेल्थ एंड वेलनेस कोच प्रीति राव कहती हैं कि कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल करने के लिए न्यूट्रिशन और एक्सरसाइज से लेकर स्ट्रेस जैसे कई फैक्टर्स पर ध्यान देना जरूरी है.
प्रीति राव बताती हैं कि मैदा, व्हाइट ब्रेड, व्हाइट राइस ये रिफाइंड अनाज में आते हैं क्योंकि इनकी बाहरी परत को निकाल दिया जाता है, फिर बहुत ज्यादा पॉलिश किया जाता है, इससे इनकी न्यूट्रिएंट डेंसिटी और फाइबर खत्म हो जाता है.
एक दिन में 4-6 से तरह की सब्जियां और फल खाने चाहिए क्योंकि इनसे जरूरी पोषक तत्व जैसे फाइबर, विटामिन, मिनरल्स और एंटीऑक्सीडेंट मिलते हैं.
प्रीति राव बताती हैं कि प्रीपैकेज्ड और प्रोसेस्ड फूड की शेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए ज्यादा ट्रांस फैट, शुगर और सॉल्ट होता है.
हफ्ते में 1-2 बार मछली खाएं. मछली और अंडा खाने से गुड कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है और एक दिन में 2 अंडे खाने से कोई समस्या नहीं है.
लो या नो फैट, लो या नो शुगर को हम हेल्दी ऑप्शन समझते हैं लेकिन ज्यादा केमिकल यूज होने की वजह से ये और भी ज्यादा हानिकारक होते हैं जैसे डाइट कोक रेगुलर कोक से ज्यादा नुकसान करता है.
जितना हो सके घर का बना खाना खाएं क्योंकि हमें नहीं पता कि बाहर से मंगाए गए खाने में किस तरह के चीजों का इस्तेमाल किया गया है.
रिफाइंड ऑयल की बात पर प्रीति राव बताती हैं कि इंडियन कुकिंग आमतौर पर मीडियम से तेज आंच पर होती है. ऐसे में रिफाइंड ऑयल प्रयोग करने से वो ट्रांस फैट में बदल जाते हैं और ट्रांस फैट से LDL बढ़ता है.
अगर शराब पीते हैं, तो इसे बहुत ही सीमित कर दें, कार्बोनेटेड ड्रिंक कम से कम कर दें.
डॉ कुशल बनर्जी कहते हैं कि खानपान में परहेज तो जरूरी है ही लेकिन अब हालिया शोधों में खाने का टाइम भी बहुत अहम माना जा रहा है.
एक्टिविटी लेवल, जेंडर, मोटापा और स्मोकिंग का असर कोलेस्ट्रॉल लेवल पर पड़ता है. फिजिकल एक्टिविटी गुड कोलेस्ट्रॉल बढ़ाने में मददगार होती है, वहीं स्मोकिंग, निष्क्रियता और मोटापे से बैड कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है.
प्रीति राव कहती हैं कि तनाव के दौरान हमारा ध्यान अपने और अपनी सेहत से हट जाता है, इसके चलते नींद में भी गड़बड़ी होती है.
डॉ बनर्जी कहते हैं कि सोने का पैटर्न भी बहुत अहम होता है- घंटे गिनना काफी नहीं हैं, आप सोने कब जाते हैं, इसका भी असर कोलेस्ट्रॉल लेवल पर पड़ता है.
इसलिए स्ट्रेस को मैनेज करना और अच्छी नींद लेना भी बहुत जरूरी है.
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Published: 09 Dec 2019,03:55 PM IST