उत्तर प्रदेश के लखनऊ में युवा सर्जन डॉ. नीरज कुमार मिश्रा को कोरोना ने छह महीने में दो बार चपेट में ले लिया. दूसरी बार उन्हें कोरोना हुआ तो यह पहले से ज्यादा गंभीर था. फिलहाल, डॉ. नीरज ICU से बाहर आ गए हैं, लेकिन अब भी ऑक्सीजन सपोर्ट पर हैं.

डॉक्टर नीरज का कहना है कि कोरोना मरीजों के इलाज के दौरान उनके मेंटल हेल्थ का ख्याल रखना भी बेहद जरूरी है क्योंकि लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान उन्होंने पाया कि कोरोना बीमारी के दौरान मरीजों को अकेलेपन से खतरा है.

मरीजों के पास कोई नहीं होता. उन्हें सिर्फ चारों तरफ मशीनें, उसकी आवाजें और कुछ बीमार लोग ही नजर आते हैं. इससे मरीज मानसिक रूप से कमजोर महसूस करते हैं और उन्हें पैनिक डिसऑर्डर होता है. ऐसे में इलाज में मानसिक और भावनात्मक मदद की बहुत जरूरत होती है ताकि वे निगेटिव सोच से दूर रहें.
डॉ. नीरज कुमार मिश्रा, सर्जन और पूर्व RDA प्रेसिडेंट, KGMU लखनऊ

उन्होंने अपने अनुभव के आधार पर 3 जरूरी सुझाव दिए और अपील की है इसे कोविड इलाज के प्रोटोकॉल में शामिल किया जाए ताकि मरीज की रिकवरी जल्दी हो सके और वे मानसिक तौर पर भी स्वस्थ रहें.

1. अध्यात्म का लिया जा सकता है सहारा, ताकि मरीजों का ध्यान बंटे और पॉजिटिविटी आए

2. साइकलॉजिस्ट, मेंटल केयर और मोटिवेशनल लोगों को जोड़कर एक टीम बने

3.सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करते हुए मरीज के घरवालों को 5 मिनट के लिए मिलवाएं

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दरअसल, खुद के इलाज के दौरान डॉ नीरज के लिए अपना मानसिक स्वास्थ्य संभालना मुश्किल रहा. हाल ही, उनके भाई की कोविड-19 की वजह से मौत हुई. उनके माता-पिता भी कोरोना संक्रमण की वजह से हॉस्पिटल में भर्ती रहे. डॉ नीरज का कहना है कि सख्त इलाज और अकेलापन बीमारी को गंभीर कर सकता है. कोविड वार्ड में मरीजों के लिए अकेलापन खतरनाक साबित हो सकता है इसलिए इलाज के प्रोटोकॉल में बदलाव की जरूरत है ताकि बेहतर परिणाम मिल सकें.

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Published: 19 May 2021,05:47 PM IST

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