भारत में एनीमिया लंबे समय से पब्लिक हेल्थ से जुड़ा मुद्दा रहा है. देश में बीमारी के खिलाफ राष्ट्रीय एनीमिया प्रोफिलैक्सिस कार्यक्रम के तहत 1970 में शुरू की गई थी. तब से, कई कार्यक्रम और पहल का सिलसिला शुरू हुआ.

फिर भी, बीमारी की समझ को लेकर जानकारी का बहुत अभाव है. अमूमन एनीमिया को आयरन की कमी और महिलाओं से जोड़ा जाता है. अभियानों में ज्यादातर फोकस इसपर ही होता है. अधिकतर राष्ट्रीय विश्लेषण में जनसंख्या का एक महत्वपूर्ण हिस्सा छूटता रहा है. ये हिस्सा है- बच्चों और किशोरों का जो 5-14 साल की उम्र के हैं. माइक्रो न्यूट्रीएंट्स की कमी की वजह से होने वाले एनीमिया के बारे में लोगों को कम पता है, जो इस आयु-वर्ग को प्रभावित करता है. इस बीमारी को खत्म कने के लिए इस जानकारी के गैप को खत्म करना एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है.

नोट: 2017 में भारत में इस ‘डिजीज बर्डन’ में कुपोषण एक बड़ा रिस्क फैक्टर था. उस समय 60% से ज्यादा बच्चे और 50% महिलाएं एनीमिक थीं. डिजीज बर्डन किसी स्वास्थ्य समस्या का प्रभाव होता है जिसे वित्तीय लागत, मृत्यु दर, मोर्बिडिटी या अन्य इंडिकेटर्स के जरिये मापा जाता है.
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द लैंसेट चाइल्ड एंड अडोलेसेंट हेल्थ में, राष्ट्रीय स्तर पर बच्चों (आयु 1-4 साल और 5-9 साल) और किशोरों (10-19 साल के आयु वर्ग) में एनीमिया को लेकर किए गए कम्प्रिहेंसिव नेशनल न्यूट्रीशन सर्वे के बारे में स्टडी छपी है. ये स्टडी भारत में अलग-अलग तरह के एनीमिया और उसके बारे में जानकारी की कमी को लेकर है.

इन्फोग्राफिक से समझिए कि हमें एनीमिया को लेकर जानकारी दुरुस्त करने की कितनी जरूरत है-

स्टडी का निष्कर्ष:

  • आयरन की कमी से होने वाला एनीमिया छोटे बच्चों में होने वाला सबसे कॉमन एनीमिया है और 5 से 9 साल के बच्चों और किशोरों में अन्य कारणों से होने वाला एनीमिया सबसे आम है.
  • फोलेट या विटामिन बी 12 की कमी एक तिहाई से ज्यादा एनीमिया केस का कारण बनता है.
  • भले ही सूजन वाला एनीमिया का प्रसार कम हो, लेकिन स्टडी करने वाले एक्सपर्ट्स का मानना है कि इसकी वजह स्टडी में शामिल बच्चों में किसी और बीमारी का न होना हो सकता है..
  • एनीमिया की रोकथाम के प्रयासों में आयरन और फोलेट सप्लीमेंटेशन प्रोग्राम को मजबूत करने और फोलेट या विटामिन बी12 की कमी वाले एनीमिया को रोकने के साथ-साथ उन इलाकों में जहां इसका असर ज्यादा है, वहां हीमोग्लोबिनोपैथी स्क्रीनिंग पर ध्यान देना चाहिए.
  • मौजूदा आयरन और फोलिक एसिड (IFA) सप्लीमेंटेशन प्रोग्राम की मजबूती और सर्विस डिलीवरी पर फोकस की जरूरत है.
  • भले ही भारत में राष्ट्रीय कार्यक्रम का ध्यान आयरन की कमी वाले एनीमिया पर हो, लेकिन अन्य कारणों से एनीमिया को भी संबोधित करने की जरूरत है - क्योंकि इन व्यक्तियों में फेरिटिन की पर्याप्त मात्रा होती है और उन्हें आयरन सप्लीमेंट की जरूरत नहीं होती है. थैलेसीमिया मरीजों में ये आयरन ओवरलोड की वजह बन सकता है.
  • किशोर लड़कियों के लिए डाइट में विविधता और उनमें एनीमिया की स्थिति की नियमित निगरानी पर जोर देने के साथ IFA सप्लीमेंट प्रोग्राम में उनपर खास फोकस की जरूरत है.
  • 2018 में राष्ट्रीय पोषण मिशन (पोशन अभियान) पर जोर दिया गया. इसे बेहतर सेवा वितरण, आहार विविधता और एनीमिया के गैर-पोषण संबंधी कारणों को दूर करने के लिए शुरू किया गया था. एनीमिया मुक्त भारत रणनीति के तहत, हीमोग्लोबिनोपैथी, फ्लोरोसिस और मलेरिया पर विशेष ध्यान केंद्रित किया गया.

पोशन अभियान का लक्ष्य हर साल 3% तक एनीमिया को कम करने का है.

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