(जून का महीना हर साल LGBT प्राइड मंथ के तौर पर मनाया जाता है. इस मौके पर फिट इस आर्टिकल दोबारा पब्लिश कर रहा है.)

“इस प्रैक्टिस के खिलाफ लगातार आवाज उठाना महत्वपूर्ण है - सभी शरीर और सेक्शुएलिटी सामान्य हैं, इसके लिए इलाज जैसा कुछ भी नहीं होना चाहिए. कन्वर्जन थेरेपी हिंसा के अलावा कुछ नहीं है.”
पूजा नायर, मेंटल हेल्थ प्रैक्टिश्नर

कैसा महसूस होगा जब आपकी सेक्शुएलिटी को पाप और मानसिक विकार समझा जाए, उसे ठीक करने की जरूरत बताई जाए?

अंजना हरीश, जिन्हें चिन्नू सल्फिकर के नाम से भी जाना जाता था, केरल की एक 21 साल की छात्र और क्वीयर एक्टिविस्ट थीं. उन्होंने मां-बाप के सामने ये बात रखी कि वो बाइसेक्शुअल हैं. उनके मां-बाप ने उनका साथ नहीं दिया और उनकी समलैंगिकता का अवैध रूप से "इलाज" कराने जबरन कन्वर्जन थेरेपी के लिए ले गए.

12 मई 2020 को गोवा में अंजना/चिन्नू ने सुसाइड कर ली.

इस घटना ने इस अवैज्ञानिक और क्रूर व्यवहार को सुर्खियों में ला दिया है कि भारत में कुछ मेंटल हेल्थ प्रैक्टिश्नर अभी भी कन्वर्जन थेरेपी को फॉलो कर रहे हैं.

अंजना ने फेसबुक पर एक वीडियो पोस्ट किया जहां उन्होंने अपने मानसिक और शारीरिक शोषण के बारे में बात की. उन्होंने बताया कि उनके माता-पिता उनकी मर्जी के खिलाफ तीन महीने से ज्यादा उन्हें नशा मुक्ति केंद्रों में लेकर जाते रहे.

जब उन्होंने थेरेपी के लिए जाने से इनकार कर दिया तो उनके माता-पिता उन्हें ज्यादा दवा देने के साथ-साथ उनके साथ शारीरिक हिंसा करते थे.

तमिलनाडु में एक समलैंगिक जोड़े ने भी कथित तौर पर कन्वर्जन थेरेपी से गुजरने के बाद आत्महत्या कर ली.

एक ट्विटर यूजर ने पोस्ट किया कि समलैंगिकता को लेकर इनसेंसिटिव न्यूज रिपोर्टिंग की गई है, और न्यूज 18 तमिलनाडु के सीनियर एडिटर गुणासेकरन ने आर्टिकल हटा लिया.

मेंटल हेल्थ प्रैक्टिश्नर और मारिवाला हेल्थ इनिशिएटिव की ओर से क्वीयर एफर्मेटिव काउंसलिंग सर्टिफिकेट कोर्स की फैकल्टी पूजा नायर ने फिट को बताया, "हमने मेंटल हेल्थ के नाम पर की जाने वाली हिंसा में एक और क्वीयर समुदाय के सदस्य को खो दिया"

कन्वर्जन थेरेपी क्या है?

कन्वर्जन थेरेपी एक अंब्रेला टर्म है यानी इसके तहत, एक साथ कई चीजें आती हैं. ये एक स्यूडोसाइंटीफिक इलाज यानी साइंस की आड़ में की जाने वाली प्रैक्टिस है जो किसी व्यक्ति की सेक्शुएलिटी "ठीक" करने और उसके सेक्शुअल ओरिएंटेशन को "परिवर्तित" कर, उसे हेटेरोसेक्शुअल बनाता है.

इसमें अक्सर हार्मोनल इलाज, अवर्जन थेरेपी, दवाओं का भारी डोज जैसे अमानवीय तकनीक शामिल होते हैं.

ये उन दोषपूर्ण और अवैज्ञानिक धारणा के चलते प्रैक्टिस में हैं, जो कहता है कि समलैंगिता एक मानसिक विकार है जिसे ठीक किया जा सकता है.
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सुप्रीम कोर्ट मेंटल हेल्थकेयर एक्ट 2017 के भेदभाव विरोधी प्रावधानों का जिक्र कर, कह चुका है कि समलैंगिकता एक मानसिक बीमारी या मानसिक विकार नहीं है. इस ऑब्जर्वेशन ने सेक्शन 377 को रद्द करने में बड़ी भूमिका निभाई. नाज फाउंडेशन की ओर से भी 377 के खिलाफ याचिका दायर करने का एक कारण कन्वर्जन थेरेपी की क्रूर प्रैक्टिस थी.

फरवरी 2014 में, देश के मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल की सबसे बड़ी बॉडी इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी ने आधिकारिक तौर पर कहा कि "इस विश्वास को पुष्ट करने का कोई प्रमाण नहीं है कि समलैंगिकता एक मानसिक बीमारी या बीमारी है."

इसलिए, कन्वर्जन थेरेपी इसलिए काम नहीं कर सकती क्योंकि सेक्शुएलिटी कोई बीमारी नहीं है, जिसे ठीक किया जा सके.

कन्वर्जन थेरेपी हमारे समाज में गहरे धंसे होमोफोबिया का परिणाम है. किसी की पहचान को गलत ढंग से "सही" करने के लिए परिवार के सदस्य अक्सर जबरन किसी को सहमति के बिना उनकी कन्वर्जन थेरेपी करवाते हैं.

लेकिन कन्वर्जन थेरेपी का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और ये वास्तव में एलजीबीटीक्यू + समुदाय के लिए समस्या है. इससे जुड़ी स्टडी उनमें मेंटल डिस्ट्रेस, अवसाद, चिंता और शर्म और आत्म-घृणा की भावनाओं में वृद्धि की ओर इशारा करते हैं.

2018 में, IPS ने अपना रुख दोहराया और IPS अध्यक्ष डॉ. अजीत भिड़े ने कहा, "ये सही दिशा में एक कदम है. कुछ व्यक्ति को सिर्फ इसलिए अलग-थलग नहीं हो जाना चाहिए कि उन्हें हेटेरोसेक्शुअल बनना पड़ेगा और हमें उनके साथ बुरा बर्ताव करने की जरूरत नहीं है, उन्हें दंडित करने की जरूरत नहीं है, हमें उन्हें बहिष्कृत करने की जरूरत नहीं है. ”

मेंटल हेल्थ कम्युनिटी को इस तरह के कृत्यों की निंदा करने के लिए एक साथ खड़े होने की जरूरत है, क्वीयर-एफर्मेटिव मेंटल हेल्थ प्रैक्टिश्नर श्रुति चक्रवर्ती कहती हैं.

पूजा नायर कहती हैं,

ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि 377 के बाद भी, पूर्वाग्रह कायम हैं और ऐसा नहीं लगता कि बदलाव की आंधी चल पड़ी हो क्योंकि कानून बदल गया है.

क्वीयर समुदाय को गहन मेंटल केयर की जरूरत होती है, वो स्ट्रेट वर्ल्ड के सिस्टमेटिक उत्पीड़न का शिकार होते हैं.

अक्सर, परिवार उनके लिए सबसे पहली बाधा बनते हैं. कई परिवार उन्हें अस्वीकार करते हैं और अपने बच्चे को हिंसक तरीके से बदलने की कोशिश करते हैं. यहां ये भी ध्यान रखना होगा कि परिवार समाज का एक प्रोडक्ट है और इसलिए उन्हें अपने बच्चे को पूरी तरह से स्वीकार करने में भी समर्थन की जरूरत पड़ती है.

“परिवार भेदभाव करने वाले समाज का हिस्सा है, उनके बच्चों के साथ व्यवहार करने में उनकी अपनी चुनौतियां होंगी. उन्हें भी अपने बच्चे को स्वीकार करने के लिए मेंटल हेल्थ सपोर्ट की जरूरत होगी.”
पूजा नायर

इसलिए अनैतिक और क्रूर प्रथाओं के बजाय क्वीयर समुदाय के लिए समावेशी और मेंटल हेल्थ सुनिश्चित करना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है.

MHI और श्रुति चक्रवर्ती द्वारा एलजीबीटीक्यू + समुदायों के लिए समर्थन जुटाने के कैंपेन में 24 घंटे में 1,000 साइन हो चुके हैं. ये कन्वर्जन थेरेपी के खिलाफ , क्वीयर काउंसलिंग के लिए, ट्रांस कम्युनिटी के लिए काम करने को लेकर एसोसिएशन और प्रैक्टिश्नर को साथ लाने का प्रयास है.

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Published: 19 May 2020,06:37 PM IST

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