हर चार सेकंड में दुनिया में कोई न कोई अल्जाइमर से पीड़ित होता है. अल्जाइमर डिमेंशिया की प्रमुख वजह है, जिससे दुनिया भर में 5 करोड़ लोग प्रभावित हैं.
इसीलिए इस बीमारी की जद में आने से बचाने के लिए हर साल 21 सितंबर को विश्व अल्जाइमर्स दिवस मनाया जाता है.
अल्जाइमर रोग के कारण मरीज की याददाश्त कमजोर होने लगती है और इसका असर दिमाग के कार्यों पर पड़ता है.
अल्जाइमर रोग में दिमाग के टिश्यूज को नुकसान पहुंचना शुरू होने लगता है. इसके तकरीबन दस साल बाद व्यक्ति में लक्षण दिखाई देने लगते हैं, जैसे याददाश्त कमजोर होना.
अल्जाइमर रोग में दिमाग की कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं, इसलिए इसका असर याददाश्त और दूसरे मानसिक कार्यों पर पड़ता है.
इसके लक्षण हैं
भूलना
सोचने-समझने में मुश्किल
खासतौर पर शाम के समय मानसिक रूप से भ्रमित होना
एकाग्रता में कमी
नई चीजें सीखने की क्षमता में कमी
साधारण सी गणना करने में मुश्किल महसूस करना
आस-पास की चीजों/ लोगों को पहचानने में मुश्किल होना
अल्जाइमर के मरीज के व्यवहार में बदलाव आने लगते हैं जैसे गुस्सा, चिड़चिड़ापन, अपने शब्दों को दोहराना, बेचैनी, एकाग्रता में कमी, बेवजह कहीं भी घूमते रहना और खो जाना, रास्ता भटकना, मूड में बदलाव, अकेलापन, मनोवैज्ञानिक समस्याएं जैसे डिप्रेशन, हैल्यूसिनेशन या पैरानोइया भी हो सकती हैं.
शुरुआती स्टेज में रोगी अपने दोस्तों और अन्य व्यक्तियों को पहचान सकता है, लेकिन उसे लगता है कि वह कुछ चीजें भूल रहा है.
मध्य स्टेज में उसकी याददाश्त खोने की प्रक्रिया और दूसरे लक्षण धीरे-धीरे उभरने लगते हैं. अल्जाइमर रोग का ये स्टेज आमतौर पर कई सालों तक रहता है. जैसे-जैसे रोगी की उम्र बढ़ती जाती है, साथ-साथ उसकी बीमारी और भी बढ़ जाती है.
अंतिम स्टेज में व्यक्ति अपनी गतिविधियों को नियंत्रण करने की क्षमता खो देता है और अपने दर्द के बारे में भी नहीं बता पाता.
शुरुआत में लक्षणों को देखकर अक्सर लोग यह समझते हैं कि ऐसा उम्र बढ़ने के कारण हो रहा है. अल्जाइमर से पीड़ित मरीजों की उम्र आमतौर पर अधिक भी होती है, लेकिन यह एजिंग या उम्र बढ़ने का सामान्य लक्षण नहीं है.
वहीं यह बीमारी अब केवल बूढ़ों तक ही सीमित नहीं रही है. यह समस्या युवाओं में भी प्रकट हो रही है. इसके अलावा यह बीमारी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चल सकती है.
अल्जाइमर के बारे में लगातार नई-नई बातें खोजी जा रही हैं, लेकिन अभी भी ये पता नहीं लगाया जा सका है कि असल में अल्जाइमर किस कारण से होता है.
इस रोग की जानकारी में ही इसका बचाव है. इसके बचाव के लिए आपके किसी परिजन, मित्र और परिचित में ऐसे लक्षण दिखते हैं, तो डॉक्टर से सलाह करें.
एक स्वस्थ संतुलित आहार खाने, व्यायाम करने और पर्याप्त नींद लेने जैसी कुछ जीवनशैली विकल्प स्वस्थ मस्तिष्क गतिविधि को बनाए रखने में मदद कर सकते हैं और संभवतः अल्जाइमर और डिमेंशिया जैसे स्मृति विकारों की शुरुआत को टालने में मददगार हो सकते हैं. लेकिन, इस बात के कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं कि ये उपाय पूरी तरह से इन बीमारियों को रोक सकते हैं.
अल्जाइमर का कोई निश्चित इलाज नहीं है, लेकिन शुरुआती अवस्था में बीमारी की पहचान से मरीज के जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाया जा सकता है. एक न्यूरोलोजिस्ट ही समय पर इसकी पहचान कर सकता है. इसके लिए पूरी जांच एवं न्यूरो इमेजिंग की जरूरत होती है.
इसके इलाज के लिए मरीज को ऐसी दवाएं दी जाती हैं कि उसके व्यवहार एवं लक्षणों में सुधार लाया जा सके और बीमारी को मैनेज किया जा सके.
अनुभवी न्यूरोलोजिस्ट, साइकेट्रिस्ट, क्लीनिकल साइकोलोजिस्ट, फिजिकल थेरेपिस्ट, ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट, स्पीच थेरेपिस्ट की टीम मिलकर अल्जाइमर की जांच, निदान और देखभाल कर सकती है.
अल्जाइमर के पेशेंट के लिए नियमित व्यायाम, पौष्टिक भोजन, अवसाद (डिप्रेशन) से बचाना, अकेला न छोड़ना जरूरी है. अगर पेशेंट को ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, दिल की कोई बीमारी है, तो उनकी समुचित चिकित्सा कर नियंत्रण में रखें और ध्यान रखा जाए कि मरीज तंबाकू, शराब जैसी लतों से मुक्त रहे.
(नेशनल हेल्थ पोर्टल और आईएएनएस इनपुट के साथ)
(ये लेख आपकी सामान्य जानकारी के लिए है, यहां किसी तरह के इलाज का दावा नहीं किया जा रहा है, सेहत से जुड़ी किसी भी समस्या के लिए और कोई भी उपाय करने से पहले फिट आपको डॉक्टर या विशेषज्ञ से संपर्क करने की सलाह देता है.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: 21 Sep 2020,11:31 AM IST