एक्सपर्ट्स का मानना है कि आने वाले 30 साल में डिमेंशिया (मनोभ्रंश) से जूझ रहे लोगों की तादाद में दुनिया भर में तीन गुना इजाफा हो सकता है.
इसके सबसे ज्यादा मामले ईस्टर्न सब-सहारा अफ्रीका, नॉर्थ अफ्रीका और मिडिल ईस्ट में बढ़ने का अनुमान है.
ये डेटा अल्जाइमर एसोसिएशन इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस (AAIC) 2021 में पेश किया गया.
याददाश्त, भाषा, प्रॉब्लम-सॉल्विंग और सोचने-समझने की क्षमता में इस हद तक गिरावट होना कि रोजमर्रा की जिंदगी पर असर पड़ने लगे, इसके लिए डिमेंशिया शब्द का इस्तेमाल किया जाता है.
डिमेंशिया कोई एक सिंगल बीमारी नहीं है, ये ऐसा है जैसे दिल की बीमारियों में दिल से जुड़ी कई मेडिकल कंडिशन आ सकती हैं.
डिमेंशिया के अंतर्गत जो कंडिशन देखी जाती हैं, वो दिमाग में हुए असामान्य बदलाव के कारण होती हैं.
डिमेंशिया के 60-70 फीसदी मामले अल्जाइमर रोग के होते हैं. वहीं डिमेंशिया का दूसरा कॉमन कारण वैस्कुलर डिमेंशिया है, जो दिमाग में माइक्रोस्कोपिक ब्लीडिंग और रक्त वाहिकाओं की ब्लॉकेज से होता है.
डिमेंशिया के मामलों के बढ़ने की एक वजह उम्रदराज आबादी का बढ़ना है. इसके अलावा बढ़ता मोटापा, डायबिटीज, बैठी रहने वाली जीवनशैली भी डिमेंशिया का रिस्क बढ़ाती है.
शोधकर्ताओं का अनुमान है कि धूम्रपान यानी स्मोकिंग, हाई बॉडी मास इंडेक्स और हाई ब्लड शुगर में अनुमानित रुझानों के आधार पर डिमेंशिया के 68 लाख मामले बढ़ सकते हैं.
वॉकहार्ट हॉस्पिटल में न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. प्रशांत मखीजा संज्ञानात्मक दिक्कतों वाले रोगियों की संख्या में वृद्धि के मुख्य कारण गिनाते हैं:
डायग्नोस्टिक और मेडिकल विज्ञान में विकास के साथ, आबादी की जीवन प्रत्याशा में सुधार हुआ है और इसी के साथ बढ़ती उम्र से जुड़ी समस्याएं, जिसमें न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियां भी शामिल हैं, बढ़ी हैं.
बढ़ते शहरीकरण के साथ, जीवनशैली से संबंधित बीमारियों में वृद्धि हुई है और ये संज्ञानात्मक हानि (मनोभ्रंश) के लिए एक अहम जोखिम कारक हैं.
डायबिटीज के रोगियों के मामले में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर है, स्ट्रोक के मरीज भी बढ़ रहे हैं और इसके परिणामस्वरूप संवहनी संज्ञानात्मक हानि (vascular cognitive impairment) वाले रोगियों की संख्या में वृद्धि हुई है और यह हमारी आबादी में संज्ञानात्मक हानि का सबसे आम कारण है.
अभी तक डिमेंशिया का कोई सटीक इलाज नहीं मिला है. एक्सपर्ट्स डिमेंशिया के जोखिम विकसित होने से रोकने के लिए इसकी पहचान करने की जरूरत बताते हैं.
जबकि मस्तिष्क में अधिकांश परिवर्तन जो मनोभ्रंश का कारण बनते हैं, स्थाई होते हैं और समय के साथ खराब होते जाते हैं, फिर भी ऐसी कई अन्य स्थितियां भी हैं, जो डिमेंशिया के लक्षण पैदा कर सकती हैं और उस स्थिति का इलाज या समाधान किया जा सकता है:
अवसाद
दवा के साइड इफेक्ट
शराब का अधिक सेवन
थायरॉइड समस्याएं
विटामिन की कमी
नानावती मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में कंसल्टेंट न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. सिद्धार्थ खारकर कहते हैं कि डिमेंशिया के कई रूपों का इलाज किया जा सकता है, लेकिन दुर्भाग्य से, ज्यादातर मरीज और यहां तक कि कई डॉक्टर भी इस तथ्य से अनजान हैं.
डॉ. खारकर कहते हैं कि अक्सर इन कंडिशन की पहचान करने में ही देर कर दी जाती है.
अल्जाइमर्स एसोसिएशन की चीफ साइंस ऑफिसर मारिया सी. कैरिलो का कहना है कि लाइफस्टाइल में सुधार, हृदय से जुड़ी बीमारियों पर ध्यान देकर और लोगों को शिक्षित करके डिमेंशिया के मामलों को बढ़ने से रोकने में मदद मिल सकती है.
अमेरिकी वैज्ञानिकों की नई रिसर्च के मुताबिक, लोगों को शिक्षित करके 2050 तक डिमेंशिया के 62 लाख मामलों को बढ़ने से रोका जा सकता है.
डिमेंशिया का रिस्क घटाने के लिए आप क्या कर सकते हैं?
रेगुलर एक्सरसाइज करें
स्मोकिंग न करें
बीपी, कोलेस्ट्रॉल और ब्लड शुगर कंट्रोल में रखें
शराब पीना सीमित कर दें
हेल्दी और संतुलित खाना खाएं
दिमाग को एक्टिव रखें
पर्याप्त नींद लें
मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखें
सामाजिक रूप से सक्रिय रहें
मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, साकेत में न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट के प्रिंसिपल डायरेक्टर और हेड डॉ. (Col) जेडी मुखर्जी बताते हैं कि कई स्टडीज में दिखाया गया है कि एयर क्वालिटी सुधारने से डिमेंशिया का रिस्क घटाने में मदद मिल सकती है.
अल्जाइमर रोग में जो बीटा अमाइलॉइड जमा पाया जाता है, अध्ययनों में वायु प्रदूषण और बढ़े हुए बीटा अमाइलॉइड उत्पादन के बीच संबंध देखा गया है.
अमृता हॉस्पिटल में न्यूरोलॉजी के एसिस्टेंट प्रोफेसर और स्ट्रोक डिविजन के हेड डॉ. विवेक नांबियार भारत की उम्रदराज होती आबादी के मद्देनजर डिमेंशिया को एक जल्द आने वाली स्वास्थ्य समस्या बताते हैं.
वो कहते हैं कि भारत की आबादी 1.35 अरब है और भले ही अभी इसमें 10% आबादी 65 से ज्यादा उम्र की है. आने वाले दशकों में 65 वर्ष से अधिक आयु की जनसंख्या में वृद्धि होगी, जो कि 2050 तक दोगुनी होने की संभावना है. उस दौरान 15-20% आबादी 65 से ज्यादा उम्र की होगी.
डॉ. विवेक नांबियार कहते हैं कि भारत में डिमेंशिया के बारे में कम जानकारी, डिमेंशिया सेवाओं और सपोर्ट सिस्टम की कमी प्रमुख चुनौतियां हैं.
समुदाय में मनोभ्रंश वाले लोगों की शीघ्र पहचान करने के लिए हमारे पास अधिक बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली होनी चाहिए. डिमेंशिया के मरीजों या संज्ञानात्मक हानि वाली आबादी का पता लगाना आवश्यक है ताकि कारण का पता लगाकर बढ़ने से रोका जा सके.
डिमेंशिया के कंडिशन बदतर होते जाते हैं. इसलिए आप या आपके जानने वालों में कोई मेमोरी की दिक्कतें या सोच-समझ के कौशल में कोई बदलाव महसूस कर रहा है, तो इसे नजरअंदाज न करें. डॉक्टर से जल्द मिलकर कारण का पता लगाएं और इलाज कराएं.
(इनपुट- अल्जाइमर्स एसोसिएशन)
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Published: 02 Aug 2021,02:29 PM IST