(अगर आपके मन में भी खुदकुशी का ख्याल आ रहा है या आपके जानने वालों में कोई इस तरह की बातें कर रहा हो, तो लोकल इमरजेंसी सेवाओं, हेल्पलाइन और मेंटल हेल्थ NGOs के इन नंबरों पर कॉल करें.)

(सुसाइड को लेकर मीडिया की असंवेदनशील रिपोर्टिंग के मद्देनजर ये आर्टिकल 16 जून, 2020 को पब्लिश किया गया था, सुशांत सिंह राजपूत की मौत के एक साल पर इसे फिर पब्लिश किया जा रहा है.)

बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की 14 जून, 2020 को सुसाइड से मौत हो गई. उनकी मौत पर शोक मनाने के साथ ही सुसाइड और मेंटल हेल्थ पर मीडिया की भूमिका पर भी बातचीत ने जोर पकड़ लिया है.

वहीं इस मामले में कई मीडिया हाउस की रिपोर्टिंग के तरीकों पर सवाल उठाए गए.

मीडिया को खुदकुशी के मामलों की रिपोर्टिंग कैसे करनी चाहिए, इस सिलसिले में फिट ने इंडियन लॉ सोसाइटी के सेंटर फॉर मेंटल हेल्थ लॉ एंड पॉलिसी के डायरेक्टर और कंसल्टेंट साइकियाट्रिस्ट डॉ सौमित्र पथारे से बात की.

अच्छी रिपोर्टिंग सुसाइड रेट कम करने में मददगार

डॉ पथारे बताते हैं कि ऐसे कई रिसर्च हैं, जिसमें बताया गया है कि मीडिया सुसाइड के मामलों में जिस तरह से रिपोर्टिंग करती है, उससे असल में सुसाइड रेट पर असर पड़ सकता है.

खराब रिपोर्टिंग से सुसाइड के मामले बढ़ सकते हैं, वहीं अच्छी रिपोर्टिंग से सुसाइड रेट को कम करने में मदद मिल सकती है.
डॉ सौमित्र पथारे

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) के मुताबिक सुसाइड के मामलों की रोकथाम में मीडिया रिपोर्टिंग भी अहम है क्योंकि इसका लोगों की जिंदगी पर असर पड़ता है.

इस्तेमाल हो रहे शब्दों और भाषा का रखें ख्याल

सुसाइड की स्टोरी करते वक्त किस तरह के शब्दों और भाषा का इस्तेमाल हो रहा है, इस पर ध्यान देने की जरूरत है.

'मरने वाला शख्स डिप्रेशन से जूझ रहा था' या 'मानसिक रूप से बीमार शख्स' इसकी बजाए ये कहने की जरूरत है कि 'मानसिक बीमारी के साथ जीना' या 'डिप्रेशन के साथ जीना'.

डॉ पथारे के मुताबिक भाषा ऐसी नहीं होनी चाहिए, जो किसी तरह के स्टिग्मा को बढ़ाए.

इसके अलावा भाषा सनसनीखेज भी नहीं होनी चाहिए, कोशिश होनी चाहिए कि ऐसी खबरों को फ्रंट पर सनीसनी फैलाने वाली बड़ी हेडलाइन के साथ न लिखें.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

सुसाइड के मामलों में हर तरह की डिटेल देने से बचें

अगर आप सुसाइड के बारे में बात कर रहे हैं, तो उससे जुड़ी हर डिटेल देने का कोई मतलब नहीं है बल्कि इस दौरान लोगों को इसके प्रति जागरूक किया जा सकता है.

रिपोर्ट में सुसाइड का तरीका, लोकेशन जैसी डिटेल का जिक्र नहीं करना चाहिए. वहीं किसी सेलेब्रिटी के सुसाइड के मामले में ज्यादा सतर्कता बरतने की जरूरत होती है.

डॉ पथारे कहते हैं कि एडिटर्स को अपने पत्रकारों को सुसाइड रिपोर्टिंग के बारे में बताने के साथ सुसाइड को क्राइम रिपोर्टर की बजाए हेल्थ रिपोर्टिंग में शिफ्ट करना चाहिए.

सुसाइड की रिपोर्ट में हेल्पलाइन नंबर जरूर दें

ऐसा इसलिए जरूरी है क्योंकि कई बार सुसाइड के बारे में पढ़ने या सुनने के बाद कुछ लोगों में वही विचार आ सकते हैं. ऐसे में मदद उपलब्ध होनी चाहिए और आमतौर पर भी ये बताने की जरूरत होती है कि कहां मदद मिल सकती है.

रिपोर्ट में ये बताया जाना चाहिए कि सुसाइड को रोका जा सकता है क्योंकि इससे एक उम्मीद जगती है.

तस्वीरों को लेकर सावधान रहें

डॉ पथारे बताते हैं कि सुसाइड से जुड़ी रिपोर्ट में कैसी तस्वीर इस्तेमाल करनी है या नहीं करनी है, इसे लेकर गाइडलाइंस हैं. जैसे अगर सुसाइड नोट बरामद किया गया है, तो उसे पब्लिश नहीं किया जाना चाहिए. ऐसी तस्वीरें भी नहीं लगानी चाहिए, जो सुसाइड के किसी तरीके की ओर संकेत करती हों.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 16 Jun 2020,02:52 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT