(अगर आपके मन में सुसाइड का ख्याल आ रहा है या आपके जानने वालों में कोई इस तरह की बातें कर रहा हो, तो लोकल इमरजेंसी सेवाओं, हेल्पलाइन और मेंटल हेल्थ NGOs के इन नंबरों पर कॉल करें.)
किसी की सुसाइड से मौत क्यों हुई, उस इंसान के न रहने पर ये सिर्फ सवाल बन कर ही रह जाता है. आखिर क्यों...?
आमतौर पर सुसाइड को डिप्रेशन या दूसरी मानसिक बीमारियों से जोड़ा जाता है, ऐसा मान लिया जाता है कि किसी मानसिक समस्या के कारण ही कोई शख्स सुसाइड के बारे में सोचता है, लेकिन क्या वाकई ऐसा है?
इंडियन लॉ सोसाइटी के सेंटर फॉर मेंटल हेल्थ लॉ एंड पॉलिसी के डायरेक्टर और कंसल्टेंट साइकियाट्रिस्ट डॉ. सौमित्र पथारे कहते हैं कि सुसाइड और डिप्रेशन के बीच लिंक को लेकर जितने डेटा हैं, वो ज्यादातर पश्चिमी देशों के हैं, जिसके मुताबिक सुसाइड के करीब 80 फीसदी मामलों में डिप्रेसिव बीमारियों की बात सामने आई है, ये पश्चिमी देशों के लिए सही है, लेकिन भारत में ऐसा नहीं है.
डॉ. पथारे बताते हैं कि भारत में पाया गया है कि सुसाइड के 50 फीसदी मामलों में मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्या हो सकती हैं, लेकिन बाकी के 50 फीसदी मामलों में ऐसा नहीं होता है.
भारत में व्यक्तिगत या सामाजिक कारक जैसे सामाजिक आर्थिक परिस्थितियां, पारस्परिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संघर्ष, शराब, वित्तीय समस्याएं, बेरोजगारी और खराब स्वास्थ्य सुसाइड के प्रमुख कारणों में जाने जाते हैं.
फोर्टिस हेल्थकेयर में डिपार्टमेंट ऑफ मेंटल हेल्थ के डायरेक्टर डॉ. समीर पारीख बताते हैं कि खुद को नुकसान पहुंचाने का ख्याल तब आता है, जब डिप्रेशन गंभीर स्टेज में पहुंच जाता है यानी सीवियर डिप्रेशन.
फोर्टिस हेल्थकेयर की डॉ. कामना छिब्बर कहती हैं, "अक्सर मान लिया जाता है कि जो डिप्रेशन से जूझ रहा है, उसमें सुसाइड के ख्याल आएंगे, लेकिन आंकड़ों के अनुसार डिप्रेशन वाले करीब 10% लोग ही आत्मघाती विचारों का अनुभव करते हैं."
पारस हॉस्पिटल, गुरुग्राम में कंसल्टेंट साइकियाट्रिस्ट डॉ. ज्योति कपूर बताती हैं कि सिर्फ अवसाद या डिप्रेशन ही सुसाइड की एकमात्र वजह नहीं होती.
अब ज्यादा जरूरी है कि हम ये जान पाएं कि अगर किसी में सुसाइड का ख्याल आ रहा है, तो हम इसकी पहचान कैसे कर सकते हैं, ताकि समय रहते उस इंसान को ऐसा कोई कदम उठाने से रोका जा सके.
यूं तो आमतौर पर ये समझ पाना आसान नहीं है कि किसी के मन में ऐसा कुछ चल रहा है, लेकिन कुछ संकेत हो सकते हैं, जो इसकी चेतावनी देते हैं.
काफी समय से अवसाद में रहना या कोई मानसिक बीमारी
मरने या साथ न होने जैसी बातें करना- डॉ. कपूर बताती हैं कि कई लोग जो खुदकुशी पर विचार कर रहे होते हैं, अक्सर इसके बारे में बात करते हैं, जैसे, "बेहतर है कि मैं मर जाऊं", या "जीवन का कोई मतलब नहीं है." कुछ लोग मृत्यु या सुसाइड से जुड़े विषयों पर बात करना या उनके बारे में खोजना शुरू कर देते हैं.
लोगों से मिलना-जुलना कम कर देना
रहन-सहन में बदलाव नजर आना
मूल्यवान संपत्ति देना; मृत्यु की दूसरी तैयारी करना- अक्सर मरने के बारे में बात करना या मरने के बाद क्या होता है. कई मसलों को सुलझाने और अपनी वसीयत तैयार करने की जल्दबाजी कर सकते हैं.
मूड में अचानक बदलाव
जिन लोगों ने अतीत में खुद को नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया है, उनके फिर से वैसा कुछ करने का रिस्क होता है. ऐसा भी हो सकता है कि इस बारे में वे बात करने से बचें, खुद को अलग करना चाहें, सुस्त दिखें.
डॉ. छिब्बर कहती हैं कि अगर किसी में ऐसे संकेत नजर आ रहे हैं, तो जरूरी है कि ऐसे शख्स को प्रोफेशनल मदद लेने के लिए प्रेरित किया जाए और ये भी ध्यान रखा जाए कि वो ट्रीटमेंट जारी रखे.
डॉ. ज्योति कपूर कहती हैं, "अगर कोई मौत या सुसाइड के बारे में बात कर रहा है, तो उस पर ध्यान दें. कुछ लोगों का यह भी मानना है कि जो लोग मरने की बात करते हैं, वे ऐसा नहीं करते हैं लेकिन यह एक मिथ है."
डॉ. छिब्बर के मुताबिक ऐसे में हमें बहुत ज्यादा नसीहत देने की बजाए उस इंसान को सुनना चाहिए और उसे ये एहसास कराना चाहिए हम उसके साथ हैं.
डॉ. कपूर इस बात पर जोर देती हैं,
डॉ. समीर पारीख कहते हैं, "यह महत्वपूर्ण है कि लोग मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के संकेतों को जानें ताकि वे मदद ले सकें और सही इलाज पा सकें."
मेंटल फिटनेस के लिए वो सुझाव देते हैं कि लोग खुद भी अपनी देखभाल पर ध्यान दें, सोच में क्या बदलाव आ रहा है, इमोशनल फंक्शनिंग को मैनेज करने के तरीके, परिवार के लोग और दोस्तों से मदद मांगने और सबसे जरूरी अपनी मानसिक समस्याओं के बारे में बात करें.
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Published: 15 Jun 2020,10:01 PM IST