(यदि आप किसी को जानते हैं या खुद पोस्टपार्टम से जुड़े मानसिक परेशानियों का सामना कर रहे हैं, तो जान लें कि आप अकेले नहीं हैं. निमहंस प्रसवकालीन मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन - 8105711277 पर संपर्क करें)

घटनाओं के एक दुखद मोड़ में, शुक्रवार, 28 जनवरी को, कर्नाटक के पूर्व प्रमुख मंत्री बीएस येदियुरप्पा की पोती की आत्महत्या से मौत हो गई. कर्नाटक के गृह मंत्री अरागा ज्ञानेंद्र के अनुसार, वह पोस्टपार्टम डिप्रेशन से पीड़ित थी.

लगभग 30 वर्ष की वह युवती बेंगलुरु के एमएस रमैया अस्पताल में डॉक्टर थी. वह अपने पीछे पति, जो खुद एक डॉक्टर हैं और एक छह महीने का बच्चा छोड़ गई हैं.

"इसमें कोई संदेह नहीं है. हम सभी जानते थे कि वह गर्भावस्था के बाद डिप्रेशन से जूझ रही थी. येदियुरप्पा खुद कई बार उसे अपने घर ले आते थे ताकि उनकी पोती खुश रहे.”, गृह मंत्री ने इंडिया टुडे को बताया.

युवा माताओं में पोस्टपार्टम डिप्रेशन को अक्सर नए मातृत्व का दबाव समझ कर नजरअंदाज कर दिया जाता है. डॉक्टरों का कहना है कि समय पर हस्तक्षेप करने से फायदा हो सकता है.

पोस्टपार्टम डिप्रेशन क्या है?

यह डिप्रेशन अन्य डिप्रेशन की तरह ही है

(फ़ोटो:iStock)

यूएस एनआईएच के अनुसार, थकान और 2 सप्ताह तक चिंता, हार्मोनल बदलावों और शारीरिक एवं मानसिक तनावों के कारण, सामान्य है.

एक नई माँ को बच्चे और वापस ठीक होते शरीर के साथ अनुकूलित होने के लिए समय चाहिए होता है. लेकिन अगर ये उदासी की भावनाएँ ज़्यादा समय तक बनी रहती हैं और आपकी दिनचर्या को प्रभावित करती हैं, तो हो सकता है कि आपको पोस्टपार्टम डिप्रेशन है.

कहा जाता है कि लगभग 50 से 75 प्रतिशत नई माताओं को मातृत्व के पहले कुछ हफ्तों में 'बेबी ब्लूज़’ का अनुभव होता है.

फिट हिंदी के साथ एक इंटरव्यू में डॉ.समीर पारिख, निदेशक, मानसिक स्वास्थ्य और व्यवहार विज्ञान विभाग, फोर्टिस हेल्थकेयर ने बताया,"जो डिप्रेशन, बच्चे की डिलीवरी के 4 हफ़्ते के अंदर आया हो, उसे हम पोस्ट्पार्टम डिप्रेशन कहते हैं. यह डिप्रेशन अन्य डिप्रेशन की तरह ही है. इसे हम बीमारी तब मानते हैं, जब लगातार 2 हफ़्ते से ये डिप्रेशन चल रहा हो और प्रभावित व्यक्ति अपनी नॉर्मल दिनचर्या करने में असमर्थ महसूस कर रहा/रही हो".

"जब हम पोस्टपार्टम डिप्रेशन की बात करते हैं, तो यह उस सीमा को पार कर गया है, जहां लक्षण दैनिक कामकाज को बाधित कर रहे हैं."

पोस्टपार्टम डिप्रेशन के कारण क्या हैं?

लक्षणों का पता चलते ही डॉक्टर से संपर्क करें 

(फ़ोटो:iStock)

कुछ रिसर्च के अनुसार, प्रेगनेंसी के दौरान या उसके ठीक बाद, रिप्रोडक्टिव हार्मोन स्तर में बदलाव, महिलाओं में प्रसवोत्तर (पोस्टपार्टम), या प्रसव कालीन (पेरीनेटल) डिप्रेशन का कारण हो सकता है.

यह वैज्ञानिक मान्यता, पीपीडी (पोस्ट पार्टम डिप्रेशन) के वैधीकरण के पीछे एक बड़ी प्रेरक शक्ति रही है.

इसके पीछे अन्य कारक भी हो सकते है जैसे:

  • नींद

  • तनाव

  • चिंता या डिप्रेशन के प्रति आनुवांशिक झुकाव

  • वित्तीय तनाव

  • सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक कारक, जिसमें आपकी अपेक्षाओं और वास्तविकता के बीच बड़ा अंतर है.

"उदाहरण के तौर पर, भारत में लड़के की तुलना में एक लड़की के पैदा होने पर माँ को पोस्टपार्टम डिप्रेशन होने की संभावना अधिक होती है", मुंबई में स्थित मनोचिकित्सक, डॉ सैयदा रूक्शेदा बताती हैं.

महामारी, और इसके साथ आने वाले दबावों ने पोस्टपार्टम डिप्रेशन से निपटना और भी मुश्किल बना दिया है.

फ़िट पर कुछ समय पहले आई एक लेख में डॉक्टरों ने जन्म होने की बदलती परिस्थितियों के बारे मे बताया था. डॉ उमा वैद्यनाथन, जो फोर्टिस अस्पताल, नई दिल्ली के ऑब्सटेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी विभाग में एक वरिष्ठ सलाहकार हैं, ने कहा था कि "माहौल बदल गया है, डेलीवेरी एक खुशी का अवसर है, लेकिन आज कल खुशी मनाने की तीव्रता में कमी आ गई है".

डॉ वैद्यनाथन कहती हैं, "प्रसवोत्तर उपचार इस बात पर निर्भर करता है कि लक्षण कितने गंभीर हैं और इसमें एंटीडिप्रेसेंट दवा, मनोवैज्ञानिक परामर्श या सहायता समूहों का संयोजन शामिल हैं."

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