दोपहर के 2 बजे हैं और आपने अभी-अभी लंच खत्म किया है. आप अपने काम की मेज पर वापस लौटते हैं, और जैसे ही अपना बाकी काम फिर से शुरू करते हैं, आपको धीरे-धीरे नींद आने लगती है. बार-बार आने वाली जम्हाइयां आपके लिए आंखें खुली रख पाना मुश्किल बना देती हैं, अचानक आपकी पलकें भारी होने लगती हैं, और आप पूरी कोशिश करते हैं कि नींद के झोंके से खुद को बचा सकें.
साल 2019 में एक सर्वे में पाया गया कि ज्यादातर भारतीयों का मानना है कि काम के दौरान झपकी लेना उत्पादकता में सुधार ला सकता है और नैप रूम ( नींद का कमरा ) बेहतर कामकाज में मददगार हो सकता है.
आश्चर्य नहीं कि हाल ही में गोवा में एक राजनेता ने वादा किया कि अगर उन्हें मुख्यमंत्री चुना जाता है तो दोपहर में 2-4 बजे ‘नैप टाइम’ तय करेंगे तो और इस तरह उन्होंने हमें समुद्रतटीय वंडरलैंड में शिफ्ट होने का इरादा बनाने की एक और वजह दे दी.
लेकिन क्या दिन में नींद की जबरदस्त ख्वाहिश के लिए आपके पास लंच में चावल खाना वजह है, या सच में इसकी कोई वैज्ञानिक व्याख्या है? क्या दोपहर की नींद सच में फायदेमंद है?
इस सवाल का जवाब नींद के महत्व में छिपा है.
फोर्टिस हॉस्पिटल, शालीमार बाग में पल्मोनोलॉजी के हेड ऑफ डिपार्टमेंट और डायरेक्टर डॉ. विकास मौर्य का कहना है कि नींद हमारे दिमाग और शरीर दोनों के लिए बहुत जरूरी है.
आकाश हेल्थकेयर सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के पल्मोनोलॉजी डिपार्टमेंट में कंसल्टेंट डॉ. अक्षय बुधराजा कहते हैं कि नींद की कमी से सबसे फौरी असर थकान और एकाग्रता में कमी देखी जाती है. ये लक्षण 48-72 घंटे में लगातार नींद की कमी के बाद सामने आने लगते हैं.
आकाश हेल्थकेयर सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, नई दिल्ली में पल्मोनोलॉजी डिपार्टमेंट के कंसल्टेंट डॉ. अक्षय बुधराजा बताते हैं कि छोटी नींद उन लोगों के लिए फायदेमंद है जो हाल ही में नींद की कमी की शिकायत की शुरुआत का अनुभव कर रहे हैं, या अन्य व्यस्तताओं की वजह (जैसे देर तक काम करना) से जिनके सोने के समय में कमी होने लगी है.
वह कहते हैं, “जो कोई भी थका हुआ महसूस करता है, वह यह पता लगाने के लिए थोड़े समय की झपकी के साथ प्रयोग कर सकता है कि क्या वह इससे खुद को तरोताजा महसूस करता है और इससे बेहतर परफॉर्मेंस करता है.”
उदाहरण के लिए यूनिवर्सिटी ऑफ एथेंस मेडिकल स्कूल और हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ द्वारा किए गए शोध में पाया गया कि दिन में छोटी नींद दूसरे जोखिम कारकों के बावजूद हृदय रोग से मरने के खतरे को 34 फीसद तक कम कर सकती है, जबकि कभी-कभी छोटी नींद से हार्ट की बीमारियों से मृत्यु दर 12 फीसद तक कम हो जाती है.
डॉ. विकास मौर्य उन लोगों के लिए जिन्हें वास्तव में इसकी जरूरत है, एक जरूरी अवधि की छोटी नींद लेने के कई फायदों को बताने के लिए अध्ययनों का हवाला देते हैं.
एक शोध के अनुसार इससे हाइपरटेंशन भी कम हो सकता है. शोध के निष्कर्षों से पता चलता है कि दिन के दौरान नींद ब्लडप्रेशर में औसतन 5 mm Hg की गिरावट से जुड़ी थी.
हालांकि कुछ हालात में छोटी नींद लेना फायदेमंद होता है, लेकिन इसके अपने नुकसान भी हो सकते हैं, अगर यह अधिकतम समय या इससे ज्यादा समय तक होती है. डॉ. मौर्य का कहना है, “बहुत ज्यादा सोना भी समस्या है.”
दोनों डॉक्टर इसे सही ठीक तरीके से करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव देते हैं:
झपकी की अवधि को सीमित रखें. इसे 30 मिनट से ज्यादा न होने दें. “आदर्श अवधि 20-30 मिनट है. इससे थोड़ा भी ज्यादा हमारे काम के साथ-साथ रात की नींद में रुकावट डाल सकता है. डॉ. बुधराजा कहते हैं, शुरू में 30 मिनट का अलार्म लगाना बेहतर है और फिर इसे घटाकर 15-20 मिनट करने से भी आप तरोताजा महसूस कर सकते हैं.
अपने रोजाना के सोने के लिए एक समय तय करें और इसे दोपहर 3 बजे या दोपहर के शुरू में रखने की कोशिश करें ताकि यह आपकी रात की नींद में रुकावट न बने.
अगर आप 4 बजे के बाद छोटी नींद ले रहे हैं, तो इसे 10 मिनट तक सीमित रखें.
घर में झपकी लेते समय ढीले-ढाले कपड़े पहनें.
डॉ. मौर्य यह भी सुझाव देते हैं कि कोशिश करें कि आरामदायक शांत वातावरण में, शांत अंधेरी जगह पर और कमरे के उचित तापमान में छोटी नींद लें.
“एक औसत वयस्क इंसान के लिए 7 से 8 घंटे रात की नींद काफी है. बहुत ज्यादा सोना खुद में नुकसानदायक नहीं हो सकता है, सिवाय समय की बर्बादी के जिसका इस्तेमाल किसी और काम के लिए किया सकता था, लेकिन इससे न दिखाई देने वाली कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं- जैसे कि स्लीप एपनिया (नींद के दौरान सांस में रुकावट) या नारकोलेप्सी (नर्वस सिस्टम की समस्याएं). डॉ. बुधराजा का कहना है कि इस तरह के हालात में डॉक्टर से जरूर सलाह करना चाहिए.
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Published: 07 Jan 2021,12:50 PM IST