मानसिक स्वास्थ्य पर यूनिसेफ की रिपोर्ट 'द स्टेट्स ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन 2021' में कहा गया है कि COVID-19 महामारी ने बच्चों और उनके परिवारों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा कर दी हैं.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने मंगलवार, 5 अक्टूबर 2021 को रिपोर्ट जारी की.
रिपोर्ट ने साफ किया है कि दुनिया में होने वाली घटनाएं हमारे दिमाग के अंदर की दुनिया को कैसे प्रभावित कर सकती हैं.
रिपोर्ट जारी करते हुए मंत्री मंडाविया ने कहा, "हमारी सनातन संस्कृति और आध्यात्मिकता में मानसिक स्वास्थ्य की व्यापक रूप से चर्चा की गई है. हमारे ग्रंथों में मन और शरीर के पारस्परिक विकास की व्याख्या की गई है. स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का निवास होता है. हमें बहुत खुशी है कि आज यूनिसेफ ने बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर एक वैश्विक रिपोर्ट जारी की है."
केंद्रीय मंत्री ने आगे कहा कि जैसे-जैसे हमारे समाज में संयुक्त परिवार की बजाए एकल परिवार का चलन बढ़ा है, बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं ज्यादा हो गई हैं. आज माता-पिता अपने बच्चे को पर्याप्त समय नहीं दे पा रहे हैं, इसलिए हमें मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बात करने की जरूरत है. हमें बताया गया है कि दुनिया भर में लगभग 14 प्रतिशत बच्चों को मानसिक स्वास्थ्य समस्या है. इसे गंभीरता से लेना होगा."
साथ ही मंडाविया ने कहा, "बेहतर और विकसित समाज के निर्माण के लिए जरूरी है कि समय-समय पर बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य की निगरानी की जाए. इसके लिए स्कूलों में शिक्षकों के बेहतर मानसिक स्वास्थ्य की भी व्यवस्था करनी होगी क्योंकि, बच्चे अपने शिक्षकों पर सबसे ज्यादा भरोसा करते हैं."
यूनिसेफ और गैलप द्वारा 2021 की शुरुआत में 21 देशों में 20,000 बच्चों और वयस्कों के साथ किए गए एक सर्वे के अनुसार, भारत में बच्चे मानसिक तनाव के लिए समर्थन लेने में हिचकिचाते हैं.
भारत में 15-24 वर्ष की आयु के बीच केवल 41 प्रतिशत युवाओं ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के लिए सहायता प्राप्त करना अच्छा है, जबकि 21 देशों के लिए यह औसत 83 प्रतिशत है.
वहीं हर दूसरे देश में, अधिकांश युवाओं (56 से 95 प्रतिशत तक) ने महसूस किया कि दूसरों से मदद मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से निपटने का सबसे अच्छा तरीका है.
सर्वे के नतीजे, जिनका पूर्वावलोकन द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन 2021 में किया गया है, उसमें यह भी पाया कि भारत में 15 से 24 वर्ष के लगभग 14 प्रतिशत या 7 में से 1 ने अक्सर अवसाद महसूस किया या चीजों को करने में बहुत कम रुचि दिखाई.
यह अनुपात कैमरून में लगभग 3 में से 1, भारत और बांग्लादेश में 7 में से 1 से लेकर इथियोपिया और जापान में 10 में से 1 के बराबर था. 21 देशों में, औसत 5 युवाओं में से 1 था.
रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी अपने तीसरे वर्ष में है. बच्चों और युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर भारी प्रभाव पड़ रहा है. महामारी में बच्चों को लॉकडाउन उपायों के कारण सामाजिक सेवाओं से समर्थन तक सीमित पहुंच प्राप्त हुई है. दिनचर्या, शिक्षा, मनोरंजन के साथ-साथ पारिवारिक आय और स्वास्थ्य के लिए चिंता के कारण कई युवा डर, क्रोधित और अपने भविष्य के लिए चिंतित महसूस कर रहे हैं.
UNESCO के आंकड़ों के अनुसार, 2020-2021 के बीच भारत में कक्षा 6 तक के 28.6 करोड़ से अधिक बच्चे स्कूल से बाहर थे. 2021 में यूनिसेफ के तेजी से मूल्यांकन में पाया गया कि केवल 60 प्रतिशत ही डिजिटल कक्षाओं तक पहुंच सके और बहुत से लोगों के लिए डिजिटल माध्यम से अपनी शिक्षा जारी रखना मुश्किल है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 संकट से पहले भी, बच्चों और युवाओं में मेंटल हेल्थ कंडिशन का बोझ था और इससे निपटने के लिए कोई खास निवेश नहीं किया गया.
रिपोर्ट के अनुसार, इनमें से दक्षिण एशिया में मानसिक विकारों वाले किशोरों की संख्या सबसे अधिक रही.
भारत में, मानसिक स्वास्थ्य विकारों वाले ज्यादातर बच्चों में इसकी डायग्नोसिस नहीं होती और इसके मदद या ट्रीटमेंट को लेकर झिझक भी है.
2019 में इंडियन जर्नल ऑफ साइकियाट्री के अनुसार, महामारी से पहले भी, भारत में कम से कम 5 करोड़ बच्चे मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से प्रभावित थे. इससे निपटने के लिए 80-90 प्रतिशत ने कोई सपोर्ट नहीं तलाशा.
इस बीच, भारत में मानसिक स्वास्थ्य जरूरतों और मानसिक स्वास्थ्य फंडिंग के बीच व्यापक अंतर बना हुआ है.
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