मजबूत, सख्त, दमदार, आत्मविश्वास, शानदार- ये कुछ ऐसी विशेषताएं हैं जिनकी उच्च स्तर का प्रदर्शन करने वाले एथलीट्स में होने की अपेक्षा की जाती है. हमारे बचपन के सपनों के सुपर हीरो में ये खासियतें दिखती हैं, है ना?
लेकिन तब क्या हो अगर यही एथलीट भावुक, बिखरे हुए, हतोत्साहित या बेचैन दिखें? क्या इससे उन्हें किसी सुपर हीरो से कमतर माना जाएगा या यह खेल की दुनिया में मेंटल हेल्थ (मानसिक सेहत) की समस्या का सामने आना है?
अमेरिकी जिम्नास्ट सिमोन बाइल्स (Simone Biles) ने टोक्यो ओलंपिक्स (Tokyo Olympics) में आर्टिस्टिक जिम्नास्टिक टीम इवेंट से और ऑल-अराउंड जिम्नास्टिक फाइनल से अपना नाम वापस ले लिया.
उन्होंने कहा, “मुझे अपनी मेंटल हेल्थ पर ध्यान देना है और अपनी सेहत को खतरे में नहीं डालना है.”
दुनिया की महानतम एथलीट्स में से एक और टोक्यो ओलंपिक की सबसे बड़ी स्टार बाइल्स का ये कदम काबिले-तारीफ है.
जब बाइल्स खेल-मैदान से बाहर चली गईं, तो वह खेल की दुनिया में मेंटल हेल्थ की परेशानी के बारे में हिम्मत से बात करने से हिचकिचाई नहीं और कहा कि उन्हें उम्मीद है कि उनके बोलने का गोल्ड मेडल जीतने से ज्यादा असर पड़ेगा.
उन्होंने एकदम सही बात कही.
बाइल्स ने बताया कि शारीरिक रूप से सेहतमंद होना ही काफी नहीं है, और हमें मेंटल हेल्थ पर भी फिजिकल हेल्थ की तरह ही गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है.
लेकिन यह खेल की दुनिया में मेंटल हेल्थ समस्याओं के सागर में एक बूंद की तरह है, जो हाल के दिनों में सामने आ रही है, जिसमें नाओमी ओसाका, नोआ लाइल्स, सिमोन मैनुअल, माइकल फेल्प्स जैसे जाने-माने एथलीट्स अपने परेशानियों के बारे में बात कर रहे हैं.
दिव्या जैन कहती हैं कि दुनिया में हर 5 में से 1 शख्स अपनी जिंदगी में कभी न कभी मेंटल हेल्थ समस्याओं का सामना करता है.
इसलिए, हम सभी खतरे में हैं, भले ही हम एथलीट हों या नहीं.
आप कैसे लक्ष्य पर अडिग रहते हैं? आप कैसे खुद को मकसद पर कायम रखते हैं? सेलेक्शन होगा या नहीं? क्या मुझे सिर्फ एक मौका मिलेगा? एक मौका मुझे जीत दिला देगा या हार? क्या इसके बाद सब कुछ खत्म हो जाएगा?
मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि सवाल और तनाव का कोई अंत नहीं है.
दिव्या जैन कहती हैं कि जब हम खेल में दबाव के बारे में बात करते हैं तो प्रदर्शन के पहलू को देखने के साथ एथलीट्स की अपनी भलाई भी देखना जरूरी है.
बाइल्स ने अपने इंस्टाग्राम पोस्ट में लिखा, “मुझे पता है कि मैं सबकुछ भुलाकर ऐसे जता सकती हूं कि दबाव मुझ पर असर नहीं डालता, लेकिन कभी-कभी यह एकदम मुश्किल हो जाता है!”
यह ऐसी समस्या है, जिसे दुरुस्त करने की जरूरत है.
बाइल्स और अपनी बात कहने वाले दूसरे एथलीट्स ने हमें सिखाया है कि उनका बेहद खास, दूसरी दुनिया का लगने वाला कौशल भी उन्हें दबाव से नहीं बचा सकता है.
फेल्प्स ने कहा था, “हम इंसान हैं. कोई भी एकदम परफेक्ट नहीं है. तो ठीक नहीं होना भी ठीक है.”
इसमें कोई शक नहीं है कि बाइल्स और दूसरे टॉप एथलीट्स ने मेंटल हेल्थ पर चर्चा की शानदार शुरुआत की है और उन्होंने नए प्लेटफार्म्स पर मुश्किल बातचीत का दौर शुरू किया है.
लेकिन खेल में दबाव हमेशा से ही बहुत ज्यादा रहा है. फिर भी हमने पहले इसके बारे में ज्यादा बात क्यों नहीं की?
स्पोर्ट्स साइंटिस्ट और परफॉर्मेंस कोच श्यामलाल वल्लभजी कहते हैं,
बहुत से लोग मेंटल हेल्थ के लिए ओलंपिक जैसे प्लेटफॉर्म से, जिसकी खातिर शायद उन्होंने पूरी जिंदगी तैयारी में लगा दी होगी, नहीं हट सकते हैं.
उनके पास ऐसा करने का मौका नहीं है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह समस्या उनको परेशान नहीं करती है.
वल्लभजी कहते हैं, “इसका मतलब यह नहीं है कि खेल के मैदान में हर दूसरे एथलीट में ऐसी ही बेचैनी, तनाव और दबाव का सामना नहीं करना पड़ता है.”
लब्बोलुआब यह है कि हमने खेलों में जितनी तरक्की की है, उस हिसाब से एथलीट्स की मेंटल हेल्थ समस्या के बारे में हमारी समझ सीमित है.
दिव्या जैन कहती हैं,
हालांकि उनके संघर्ष को समझना या उनसे जुड़ना हमेशा कठिन है, लेकिन खुलकर अपनी बात कहना इसे लोगों के लिए और अधिक स्वीकार्य बनाता है और उनकी परेशानी को मान्यता देता है.
वल्लभजी कहते हैं, “लेकिन यहां सिमोन के साथ जो हो रहा है, वह इसलिए है क्योंकि वह इतनी पावरफुल हैं कि व्यवस्था से ऊपर उठ चुकी हैं.”
जरूरत इस बात की है कि शुरुआत से ही एथलीट्स की मेंटल हेल्थ के बारे में और ज्यादा बातचीत की जाए.
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