आंध्र प्रदेश के चित्तूर की घटना है, जिसमें माता-पिता ने अपनी दो बेटियों की कथित हत्या इस अंधविश्वास में कर दी कि वे बुराइयों से मुक्त होकर दोबारा जिंदा हो जाएंगी. बता दें कि पिता एक कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर और मां एक स्कूल की प्रिंसिपल है.
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक मार डाली गईं दो युवतियों को भी अपने अभिभावकों की तरह मौत के बाद दोबारा जिंदा होने का अंधविश्वास था.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस मामले में एक मानसिक विकार शेयर्ड डिल्यूजन डिसऑर्डर की बात सामने आई है.
द न्यूज मिनट से बात करते हुए, मदनपल्ली रूरल इंस्पेक्टर, के रमेश ने दंपत्ति की मानसिक हालत पर कुछ कहने से इनकार कर दिया था. पुलिस ने कहा है कि किसी निष्कर्ष पर पहुंचने में कुछ समय लग सकता है क्योंकि आरोपियों की मेंटल हेल्थ का पता लगाने की जरूरत है.
शेयर्ड डिल्यूजन डिसऑर्डर को शेयर्ड सायकोसिस डिसऑर्डर भी कहते हैं. ये एक दुर्लभ किस्म की मानसिक बीमारी है, जिसमें एक स्वस्थ इंसान किसी ऐसे व्यक्ति के भ्रम को लेना शुरू कर देता है, जिसे कोई मानसिक विकार है या डिल्यूजन डिसऑर्डर है.
साल 2018 में दिल्ली के बुराड़ी में एक परिवार की सामूहिक सुसाइड के मामले में शेयर्ड साइकोटिक डिसऑर्डर से लिंक सामने आया था.
ये भ्रम या अंधविश्वास जीवन और उसके तमाम पहलूओं पर हावी हो जाता है. शेयर्ड डिल्यूजन डिसऑर्डर वाला दो या दो से अधिक का ग्रुप उसे ही सच मानने लगता है.
उदाहरण के लिए अगर किसी को डिल्यूजन डिसऑर्डर है और उस बीमारी के हिस्से के रूप में, विश्वास है कि एलियंस उन पर जासूसी कर रहे हैं. ऐसे में अगर उसका करीबी भी जासूसी करने वाले एलियंस पर विश्वास करना शुरू कर दे, तो ये शेयर्ड डिल्यूजन डिसऑर्डर है, इसके अलावा, उस व्यक्ति के विचार और व्यवहार सामान्य रह सकते हैं.
एक्सपर्ट्स यह नहीं जानते हैं कि ऐसा क्यों होता है. लेकिन वे मानते हैं कि तनाव और सामाजिक अलगाव इसके विकास में एक भूमिका निभाते हैं.
बायोलॉजिकल और जेनेटिक फैक्टर, किसी कारण लगातार तनाव, ड्रग एब्यूज इसके रिस्क फैक्टर में आते हैं.
फिर भी साझा मानसिक विकार का सटीक कारण अभी भी ज्ञात नहीं है. इससे जुड़े कुछ जोखिम कारकों में शामिल हैं:
भ्रम के शिकार मनोरोगी के साथ रिश्ते की लंबाई: कई स्टडीज इस कंडिशन के विकास में एक आवश्यक कारक के रूप में लंबे रिश्ते की अवधि की भूमिका को उजागर करती हैं. यह समझना महत्वपूर्ण है कि प्राइमरी व्यक्ति के साथ लगाव भ्रम को अपनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
भ्रम के शिकार मनोरोगी के साथ रिश्ते की प्रकृति: रिपोर्ट किए गए अधिकांश मामले परिवार के सदस्यों के बीच रहे हैं. सबसे आम रिश्ता शादीशुदा जोड़े के बीच था और दूसरा सबसे कॉमन ग्रुप बहनों के बीच था.
सामाजिक अलगाव: ज्यादातर मामलों में खराब सामाजिक संपर्क देखा गया है.
व्यक्तित्व विकार: व्यक्ति आमतौर पर किसी व्यक्तित्व दोष की विशेषताएं दिखाते हैं. जैसे अंतर्मुखी और भावनात्मक रूप से अपरिपक्व होना.
प्रभावित करने वाले व्यक्ति के मानसिक विकार का इलाज न होना: क्रोनिक मेंटल कंडिशन वाला व्यक्ति जो ठीक न हुआ हो, वो दूसरे साथी या परिवार को प्रभावित करने वाला सामाजिक जोखिम कारक हो सकता है.
संज्ञानात्मक हानि: प्रभावित होने वाले दूसरे व्यक्ति में अच्छे निर्णय और बुद्धिमत्ता की कमी नोट की गई है.
प्रभावित होने वाले की कोमोर्बिडिटी: व्यक्ति जिसे कोई मानसिक विकार है, जैसे स्किज़ोफ्रेनिया, बाईपोलर एफेक्टिव डिसऑर्डर, अवसाद या डिमेंशिया उनके दूसरे मानसिक रोगी से प्रभावित होने का रिस्क होता है.
जीवन की घटनाएं: तनावपूर्ण जीवन की घटनाएं जो रिश्ते को प्रभावित करती हैं, व्यक्ति के व्यवहार को असर कर सकती हैं कि कुछ भ्रमों को स्वीकार कर ले.
संचार में कठिनाई: विचारों को साझा करने में कठिनाइयों का होना अलगाव को प्राथमिकता देने का एक कारण हो सकता है.
इसके मरीजों की पहचान करना आसान नहीं है, ज्यादातर इसका पता तभी चल पाया है, जब पहले ही कुछ न कुछ नुकसान या खतरा हो चुका होता है.
अगर परिवार में ऐसा कोई है, जो बहुत परेशान है, किसी विचार पर बहुत ज्यादा सोच में है, तो आपको समझना चाहिए कि उसे मदद की जरूरत हो सकती है.
कई लोग अपने दम पर परिवार के सदस्यों की मदद करने की कोशिश करते हैं, लेकिन दुर्भाग्य से, इस प्रक्रिया में खो जाते हैं.
हर चीज के लिए विशेषज्ञ होते हैं. यह स्वीकार करना महत्वपूर्ण है कि किसी के दिमाग में अत्यधिक नकारात्मकता हो सकती है और तब पेशेवर मदद लेने की जरूरत होती है.
आमतौर पर इसमें इलाज के लिए शेयर्ड डिल्यूजन डिसऑर्डर वाले लोगों को उस इंसान से अलग किया जाता है, जिसे डिल्यूजन डिसऑर्डर है यानी उस व्यक्ति को जिसके भ्रम को बाकियों ने सही मान लिया है.
इलाज के लिए साइकोथेरेपी और दवाइयों का सहारा लिया जा सकता है:
इस तरह की काउंसलिंग में भ्रम को पहचानने और स्वस्थ सोच को वापस लाने में मदद कर सकती है. यह अक्सर कठिन होता है क्योंकि हो सकता है कि डिल्यूजन डिसऑर्डर वाले व्यक्ति को अपनी सोच में कोई समस्या ही न दिखे.
साइकोथेरेपी का मकसद मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति के साथ स्थिति और रिश्ते से भावनात्मक संकट को कम करना भी होता है.
अगर मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति के संपर्क से अलग करने के बाद भी लक्षण जारी रहते हैं, तो थोड़े समय के लिए एंटीसाइकोटिक दवाएं लेने की आवश्यकता हो सकती है. कभी-कभी डॉक्टर चिंता, अत्यधिक बेचैनी, या अनिद्रा जैसे तीव्र लक्षणों को कम करने के लिए ट्रैंक्विलाइज़र या सिडेटिव्स भी लिख सकते हैं.
सबसे बेहतर यही होता है कि जल्द से जल्द इसे डायग्नोस कर इलाज किया जाए ताकि किसी की जिंदगी और परिवार को कम से कम नुकसान हो.
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Published: 29 Jan 2021,12:35 PM IST