(अगर आपके मन में भी सुसाइड का ख्याल आ रहा है या आपके जानने वालों में कोई इस तरह की बातें कर रहा हो, तो लोकल इमरजेंसी सेवाओं, विशेषज्ञों, हेल्पलाइन और मेंटल हेल्थ NGOs के इन नंबरों पर कॉल करें.)

ट्विटर पर मानसिक स्वास्थ्य के लेखक तन्मय गोस्वामी लिखते हैं, "लोग सुसाइड का फैसला इसलिए नहीं लेते क्योंकि वे मरना चाहते हैं बल्कि इसलिए करते हैं क्योंकि जीना बहुत कठिन लगने लगता है. इस तरह की सोच रखने वाले अपने किसी दोस्त को ये मत कहिए कि वो मर नहीं सकते. उनके लिए जीना आसान बनाएं."

रिसर्चर्स और एक्सपर्ट्स लगातार बताते रहे हैं कि सुसाइड किसी के द्वारा मौत चुनना नहीं बल्कि जिंदगी को नजरअंदाज करना है क्योंकि जिंदगी जीना उन्हें दर्दनाक लगता है.

अहमदाबाद में एक 23 साल की महिला ने सुसाइड करने से पहले अपने परिवार के सदस्यों के लिए एक वीडियो रिकॉर्ड किया. द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, महिला ने अपने पति पर कथित उत्पीड़न का आरोप लगाया और पुलिस ने उसके खिलाफ सुसाइड के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया है.

इस वीडियो को सोशल मीडिया पर शेयर किए जाने पर इंडियन लॉ सोसाइटी के सेंटर फॉर मेंटल हेल्थ लॉ एंड पॉलिसी के डायरेक्टर और कंसल्टेंट साइकियाट्रिस्ट डॉ सौमित्र पथारे ने ट्वीट किया, "वो सभी जो गुजरात में सुसाइड से मरने वाली एक महिला का वीडियो शेयर (लोकेशन और सुसाइड के तरीके के साथ) कर रहे हैं, प्लीज ऐसा ना करें. रिसर्च से पता चला है कि इस तरह की पब्लिसिटी से कॉपीकैट सुसाइड बढ़ सकते हैं और ये उस लोकेशन को सुसाइड हॉटस्पॉट बना सकता है."

सुसाइड की कोई खबर शेयर करने के दौरान काफी सतर्कता, संवेदनशीलता और खास सावधानी बरतने की जरूरत होती है ताकि खबर का कोई नकारात्मक असर न पड़े.

सुसाइड की किसी एक घटना की देखा-देखी उसी तरह की कोशिश करना कॉपीकैट सुसाइड कहलाता है.

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डॉ पथारे बताते हैं कि भारत में सुसाइड के 50 फीसदी मामले किसी मानसिक बीमारी से जुड़े नहीं पाए गए हैं.

भारत में व्यक्तिगत या सामाजिक कारक जैसे सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियां, पारस्परिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संघर्ष, शराब, वित्तीय समस्याएं, बेरोजगारी और खराब स्वास्थ्य खुदकुशी के प्रमुख कारणों में जाने जाते हैं.

पारस हॉस्पिटल, गुरुग्राम में कंसल्टेंट साइकियाट्रिस्ट डॉ ज्योति कपूर बताती हैं कि सिर्फ अवसाद या डिप्रेशन ही सुसाइड की एकमात्र वजह नहीं होती.

जब भी कोई गुस्से में, निराश या चिंतित होता है या किसी भावनात्मक पीड़ा से गुजर रहा होता है, तो हार मानने के विचार आते हैं. कुछ लोगों में जुनूनी या भ्रमपूर्ण विचार आ सकते हैं और साथ ही सुसाइड के लिए प्रेरित कर सकते हैं. इंटरपर्सनल थ्योरी के अनुसार, बोझ की भावना के साथ-साथ अपनेपन की कमी की भावना सुसाइड के बारे में सोचने का कारण बनती है.
डॉ ज्योति कपूर, कंसल्टेंट साइकियाट्रिस्ट, पारस हॉस्पिटल, गुरुग्राम

डॉ पथारे कहते हैं, "ये मदद के लिए एक पुकार हो सकती है. ये एक भावनात्मक निर्णय होता है और भारत में लगभग आधे सुसाइड के फैसले आवेग में लिए गए होते हैं. रिसर्च में देखा गया है कि ज्यादातर सुसाइड की कोशिश मरने के इरादे से नहीं होती है, बल्कि इसलिए होती हैं क्योंकि वो व्यथित होते हैं."

ऐसे में पार्टनर या बॉस के साथ लड़ाई तीव्र भावनाओं को ट्रिगर कर सकती है और क्योंकि हम नहीं जानते कि इन वास्तविक, मानवीय भावनाओं से रचनात्मक तरीके से कैसे निपटना है या इनसे निपटने के लिए स्पेस न मिल पाने के कारण इंसान कोई कठोर कदम उठा सकता है.

हमारे लिए यह जरूरी है कि आत्मघात के विचार वाले लोगों के प्रति हमदर्दी रखें और ऐसी परिस्थितियां बनाने में मदद करें, जिनमें वे सुरक्षित और खुश महसूस करें.

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