कई किसान अपनी फसलों पर टीबी (ट्यूबरकुलोसिस) के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाओं का छिड़काव कीटनाशक के तौर पर कर रहे हैं.
स्ट्रेप्टोमाइसिन और टेट्रासाइक्लिन एंटीबायोटिक है, जिसे जानलेवा बैक्टीरियल इंफेक्शन के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है.
CSE में फूड एवं टॉक्सिन कार्यक्रम के निदेशक अमित खुराना के मुताबिक ये एंटीबायोटिक, काफी सारी एंटीबायोटिक जो टीबी में यूज होती हैं, उनमें से एक है और किसान इस बात से अनजान हैं कि उन्हें इन एंटीबायोटिक का कितनी मात्रा में छिड़काव करना है और किन फसलों पर करना है.
उन्होंने बताया, "कीटनाशकों को मंजूरी देने वाली सेंट्रल इंसेक्टिसाइड बोर्ड एंड रजिस्ट्रेशन कमिटी (CIBRC) कुछ एंटीबायोटिक का इस्तेमाल बैक्टीरियल इंफेक्शन की स्थिति में देती है. इसमें भी दवा की खुराक और कितनी बार उसका छिड़काव किया जाना है, ये तय होता है. लेकिन किसान इनका इस्तेमाल बिना वजह कर रहे हैं."
अमित बताते हैं कि अगर कुछ फसलों के लिए इसके इस्तेमाल की मंजूरी दी भी गई थी, तो इसके इतर दूसरे फल और सब्जियों में भी इसका छिड़काव हो रहा है और बहुत ज्यादा डोज में हो रहा है.
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की ओर से स्ट्रेप्टोमाइसिन और टेट्रासाइक्लिन को इंसानों के लिए बहुत अहम एंटीबायोटिक बताया गया है.
अमित बताते हैं, "एंटीमाइक्रोबिल रेजिस्टेंस के कई रूट होते हैं, जैसे खाना और पर्यावरण. मिट्टी और पानी में एंटीबायोटिक दवाओं के इस बढ़ते भार के संपर्क में आने वाले सूक्ष्मजीव इसके प्रति प्रतिरोध विकसित कर सकते हैं. ये प्रतिरोध दूसरे बैक्टीरिया में भी फैल सकता है. ये सूक्ष्मजीव किसी भी रास्ते इंसानों में प्रवेश कर सकते हैं."
इस तरह जब इंसान या जानवर इन रेजिस्टेंट सूक्ष्मजीवों से संक्रमित होते हैं, तो इलाज मुश्किल और महंगा हो जाता है.
इसके अलावा ये भी आशंका होती है कि एंटीबायोटिक की कुछ मात्रा फलों, सब्जियों या फसलों में रह जाए, इससे इंसानों की हेल्थ प्रभावित हो सकती है या ऐसा हो सकता है कि उन पर एंटीबायोटिक दवाओं का असर ना पड़े.
हालांकि अमित बताते हैं कि इसे लेकर हमारे देश में कोई स्टडी नहीं हुई है कि फसलों पर छिड़के गए एंटीबायोटिक हमारे खाने में आगे जा रहे हैं या नहीं.
एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस दुनिया भर में स्वास्थ्य के लिए बड़ी चुनौती बन हुआ है. इसलिए हमें अब ध्यान देना चाहिए और एंटीबायोटिक के गैर-मानवीय इस्तेमाल को रेगुलेट करना चाहिए.
CSE की डायरेक्टर जनरल सुनीता नारायण कहती हैं, "हमारे देश में टीबी एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बना हुआ है. फसलों में स्ट्रेप्टोमाइसिन के इस तरह के व्यापक और बिना किसी परवाह के उपयोग से बचने के लिए हमें एक उपाय खोजना चाहिए."
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