ऑस्टियोपोरोसिस एक ऐसी स्थिति है, जिसमें हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और फ्रैक्चर का रिस्क बढ़ जाता है. ऑस्टियोपोरोसिस होने का जोखिम 50 साल से अधिक उम्र के लोगों में ज्यादा बताया जाता है.

जैसे-जैसे व्यक्ति की उम्र बढ़ती है, इस बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है क्योंकि बोन मास बनने की तुलना में तेजी से खत्म होता जाता है. आजकल बच्चों में भी यह बीमारी देखी जा रही है और इसके लिए हमारी खराब लाइफस्टाइल भी जिम्मेदार है.

18 से 20 साल की उम्र तक एक व्यक्ति में बोन मास का 90 फीसदी निर्माण हो जाता है. ऐसे में अगर बच्चों को ऑस्टियोपोरोसिस हो जाए, जब शरीर अधिकांश हड्डियों का निर्माण कर रहा होता है, तो ये काफी गंभीर साबित हो सकता है.

बच्चों का अस्थि द्रव्यमान (bone mass) जितना अधिक होगा, बाद के जीवन में ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा उतना ही कम होगा.

बच्चों में ऑस्टियोपोरोसिस की क्या वजह होती है?

लो बोन डेन्सिटी और फ्रैक्चर के अधिक रिस्क वाली ये स्थिति मुख्य रूप से बुजुर्गों में ज्यादा होने की आशंका जताई जाती है, लेकिन कुछ वजहों से ये बच्चों को भी हो सकती है:

  • ऑस्टियोजेनेसिस इम्परफैक्टा (Osteogenesis Imperfecta) - जेनेटिक विकार जिससे हड्डियां प्रभावित होती हैं

  • जुवेनाइल अर्थराइटिस या क्रोहन रोग जैसी इन्फ्लेमेटरी स्थितियां

  • टाइप 1 डायबिटीज

  • टाइप 2 डायबिटीज

  • हाइपरथायरायडिज्म

  • कैल्शियम और विटामिन डी की कमी

  • कोई क्रोनिक बीमारी और उसका इलाज

इसके अलावा, जो बच्चे बिस्तर पर पड़े रहते हैं या लंबे समय तक गतिहीन रहते हैं, उनमें बीमारी का खतरा बढ़ जाता है क्योंकि वे वजन बढ़ाने वाली गतिविधियों में भाग लेने में असमर्थ होते हैं, जो हड्डियों के घनत्व को बढ़ावा देती हैं.

ऑस्टियोपोरोसिस के लक्षण

ऑस्टियोपोरोसिस एक गंभीर समस्या है. इसके किसी भी संकेत और लक्षण को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए और डॉक्टर से जल्द संपर्क करना चाहिए.

बच्चों में ऑस्टियोपोरोसिस के ज्यादातर देखे जाने वाले लक्षण:

  • पीठ के निचले हिस्से, कूल्हों, घुटनों, टखनों और पैरों में दर्द

  • चलने में परेशानी

  • पैरों, टखनों और टांगों का बार-बार टूटना

  • आसानी से हड्डी टूटना खासकर लंबी हड्डियां

  • रीढ़ की हड्डी की ऊंचाई या वक्रता में कमी

  • अचानक वजन कम होना

  • सांस फूलना

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ऑस्टियोपोरोसिस: डायग्नोसिस और इलाज

हड्डियों में आगे और फ्रैक्चर से बचाव के लिए इस बीमारी का जल्द पता चलना महत्वपूर्ण साबित होता है. बच्चों में ऑस्टियोपोरोसिस का पता करने के लिए पहले हुए फ्रैक्चर की जानकारी के साथ बोन डेन्सिटी की जांच करनी होती है.

लोअर बोन मास का पता लगाने के लिए बोन डेन्सिटी मेजरमेंट सबसे सटीक तरीका है और जुवेनाइल ऑस्टियोपोरोसिस की शंका होने पर डॉक्टर इसकी जांच करा सकते हैं.

डायग्नोसिस के आधार पर उपचार दिया जा सकता है. पीडियाट्रिक ऑस्टियोपोरोसिस मैनेजमेंट का लक्ष्य अधिकतम अस्थि द्रव्यमान को अनुकूलित करना; दर्द, हड्डी के फ्रैक्चर और स्कोलिओसिस (scoliosis) यानी रीढ़ को प्रभावित होने से रोकना, कार्य और गतिशीलता में वृद्धि करना होता है.

इसके उपचार में शामिल हो सकते हैं:

  • कैल्शियम, विटामिन डी और प्रोटीन से भरपूर भोजन

  • सुरक्षित शारीरिक गतिविधियों का अभ्यास

  • डॉक्टर द्वारा बताई गई ऑस्टियोपोरोसिस की दवा

एक स्वस्थ जीवनशैली बच्चे के हड्डियों के विकास में मददगार होती है. उन्हें संतुलित और कैल्शियम युक्त आहार के साथ और धूप और विटामिन डी के सुरक्षित संपर्क के जरिए हड्डियों की मजबूती सुनिश्चित की जा सकती है.

अगर फिर भी स्थिति बेहतर नहीं होती है, तो डॉक्टर उनकी हड्डियों को मजबूत करने और फ्रैक्चर के जोखिम को कम करने के लिए कुछ दवाएं देने पर भी विचार कर सकते हैं.

(लेखक डॉ यश गुलाटी दिल्ली में इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स के ज्वाइंट रिप्लेसमेंट एंड स्पाइन डिपार्टमेंट में सीनियर कंसल्टेंट ऑर्थोपेडिक्स हैं.)

(ये लेख आपकी सामान्य जानकारी के लिए है, यहां किसी तरह के इलाज का दावा नहीं किया जा रहा है, सेहत से जुड़ी किसी भी समस्या के लिए और कोई भी उपाय करने से पहले फिट आपको अपने डॉक्टर से संपर्क करने की सलाह देता है.)

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