कोविड-19 के हमले को भारत में दो साल हो गए. पहला मामला 30 जनवरी 2020 को सामने आया था, जब चीन के वुहान से केरल की एक मेडिकल छात्रा संक्रमित हो कर अपने देश लौटी थी.
तब किसे पता था कि यह वायरस (कोविड-19) पूरी दुनिया में ख़ौफ़नाक तबाही मचाएगा और इसका जानलेवा चरित्र एक अबूझ पहेली बन कर सब को चौंकाएगा.
ये दो साल समस्त देशवासियों के ऐसे गुजरे हैं, जैसे बेफ़िक्र हो कर जीने का हौसला ही छिन गया हो. संपन्न हो या विपन्न, ताकतवर हो या कमजोर, सब पर इस कोविड की कोपदृष्टि समान रूप से पड़ी.
इस कारण मार्च 2020 आते-आते पूरे देश में लॉकडाउन का सिलसिला शुरू हो गया. बच्चों से ले कर बुजुर्गों तक के लिए यह घरबंदी एक भयावह अनुभव दे गया.
तो आइए, इस महामारी के दो वर्षों में कुछ परिवारों के पैरेंट्स (अभिभावक) ने जो दुख-दर्द सहे, उन्हें साझा करते हुए समाधान पर भी ग़ौर करें.
संक्रमण से बचाने के लिए बच्चों को घरों में बंद रखना और बाहर खेलने-कूदने नहीं देना, एक चुनौती बन सामने आया माता-पिता के लिए.
“2 साल हो गए कोविड को. शुरू का समय बहुत मुश्किलों भरा था. पहली बार महसूस हुआ कि क़ैद हो कर कैसा लगता होगा. बच्चों को समझा कर मनाना मुश्किल था, पर धीरे-धीरे उन्हें भी आदत हो गई, जो अब तक बरकरार है”, ये कहना है ख़ुशबू दीवान का.
ख़ुशबू ने बताया कि उनके बेटे को ऐक्शन डेफ़िसिट हाइपर-ऐक्टिविटी डिसॉर्डर (ADHD) होने के कारण घर में पूरे समय व्यस्त रखने में काफ़ी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ा, पर उन्होंने ये काम भी बखूबी कर लिया.
ऑफ़िस के साथ एक रूटीन सेट करना पड़ा. ऑफ़िस से फ़्री होते ही बच्चों के साथ मिल कर गेम खेलना, क्राफ़्ट बनाना, नाचना-गाना सब कर रहे हैं हम.
ऑनलाइन डॉक्टर से संपर्क करना समय की माँग है. इसलिए ज़्यादातर माता-पिता बीमार बच्चों को डॉक्टर से दिखाने के लिए अस्पताल ले जाने से परहेज़ करते हैं.
कोविड-19 का ख़ौफ़ हर तरफ़ ऐसा रहा है बीते 2 वर्षों से कि अब हॉस्पिटल जाने में कोविड संक्रमित होने का ख़तरा ज़्यादा नज़र आता है. डॉक्टरों ने भी ज़रूरत पड़ने पर ही हॉस्पिटल आने की बात, हर जगह बोली है.
स्कूल बंद हो जाने से बच्चों की पढ़ाई लगभग ठप्प पड़ जाना बहुत बड़ी समस्या बन सामने आया. ख़ास कर उन माता-पिता के लिए जिनके पास बच्चों को ऑनलाइन स्कूल कराने की सुविधा नहीं थी.
“कोविड-19 ने मुझ जैसे कईयों को घोर संकट में डाल दिया है. कोविड ने मुझसे मेरा पति छीन लिया. पिछले 2 सालों में कोविड और उसकी वजह से हुई दिक़्क़त ने हमारे बच्चों से स्कूल छीन लिया है. स्कूल तो ऑनलाइन चल रहे हैं, पर हम जैसे लोगों के पास ऑनलाइन पढ़ने के लिए ज़रूरी सुविधाओं की कमी है. जैसे कि, 3 बच्चों को ऑनलाइन क्लास कराने के लिए 3 फ़ोन चाहिए. वो हम कहाँ से लाएँ?" यह कह अपना दर्द बयान किया सविता ने, जो घरों में सफ़ाई और खाना बना कर अपने परिवार का गुज़ारा करती हैं.
कई प्रकार की रोक-टोक होने और घर में परिजनों की परेशानियाँ देखते-सुनते रहने से बच्चों पर पड़ने वाले मानसिक दुष्प्रभाव ने उनके मन में डर और तनाव पैदा कर दिया. फ़िट हिंदी से दूसरे लेख में बात करते हुए सर गंगा राम हॉस्पिटल के बाल मनोचिकित्सक, डॉ. दीपक गुप्ता ने बताया कि "कोविड-19 ने छोटे बच्चों को मानसिक तौर पर नुक़सान पहुँचाया है".
बच्चों के लिए वैक्सीन (टीका) नहीं होने के कारण उनको संक्रमण से बचाने का अतिरिक्त दबाव बना हुआ है घर वालों पर.
अपनी बेटी और नाती को देखने के लिए तरसती प्रतिभा मिश्रा, बीते 2 वर्षों को जीवन के उन ख़राब वर्षों में गिनती हैं, जिसे वो याद करना नहीं चाहतीं. वो कहती हैं, "कोविड के आने से परिवार के सदस्यों का एक दूसरे से मिलना-जुलना दुर्भर हो गया है. ख़ास कर अगर परिवार का कोई सदस्य किसी दूसरे शहर या दूसरे देश में रहता हो और उनका छोटा बच्चा हो. इन 2 सालों में, मैं अपनी बेटी से नहीं मिल पाई. इस वायरस के डर से न तो वो आ सकी और न मैं जा सकी. ऐसा हाल मुझ जैसी कई माँओं का है, जो कोविड-19 के कारण अपनी संतान से दूर, उनका इंतज़ार कर रहीं हैं".
30 जनवरी 2020 से ले कर आजतक, भारतवासियों के लिए बहुत कुछ बदल गया है. कोविड-19 हम सभी को नए नियमों के साथ जीने को मजबूर कर रहा है, पर वहीं कोविड की तीसरी लहर में भारतवासियों ने बात को बिगड़ने नहीं दिया और इसी तरह हम सभी आगे भी इस वायरस को कड़ी चुनौती देते रहें.
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