देश में या हमारे शहर में शायद ही कोई ऐसा दिन गुजरता होगा, जब हम किसी घरेलू हिंसा या बुरी घटनाओं के बारे में सुनते या पढ़ते नहीं होंगे.
कुछ बुरी घटनाएं जैसे कि ट्रैफिक दुर्घटना या प्राकृतिक आपदाएं अनियोजित और अप्रत्याशित होती हैं, ये हमारे हाथ में नहीं होती. वहीं झगड़े, लूटपाट, गोलीबारी, हत्याएं और आतंकवादी हमले सभी नियोजित तरीके से होते हैं.
कई बच्चे और किशोर स्कूल में, अपनी कम्युनिटी में संभवतः सबसे ज्यादा नुकसानदेह अपने ही घरों में हिंसा के शिकार होते हैं या अपने सामने ऐसी घटनाओं को होता देखते हैं.
घरेलू हिंसा विशेष रूप से जीवन साथी के साथ हिंसा महामारी के दौरान लॉकडाउन में सबसे चरम पर रही है क्योंकि इस दौरान सभी घर पर रह रहे थे, इसलिए घरेलू हिंसा के ज्यादा केस सामने आए.
हिंसक अपराध जैसी तनावपूर्ण घटना का अनुभव करने पर बच्चे अलग-अलग तरीके से प्रतिक्रिया दे सकते हैं.
कुछ बच्चों में इसके प्रति अज्ञात डर विकसित हो जाता है.
कई बच्चे घर से निकलना नहीं चाहते, उन्हें सोने या स्कूल में ध्यान केंद्रित करने में परेशानी हो सकती है.
घरेलू हिंसा के संपर्क में आने वाले बच्चे सिरदर्द, पेट दर्द और अन्य अस्पष्ट लक्षणों की शिकायत कर सकते हैं, उनमें भूख लगना भी कम हो सकता है.
यहां तक कि उनकी रोजमर्रा की जिंदगी में थोड़ा सा भी बदलाव होने से उन्हें बड़ी परेशानी हो सकती है.
जो बच्चे नियमित रूप से मां-बाप के बीच हिंसा का अनुभव करते हैं, उनमें कई लक्षण और दीर्घकालिक प्रभाव उन बच्चों के समान होते हैं, जो खुद हिंसा का शिकार होते हैं या पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) से जूझ रहे होते हैं.
महीनों या सालों तक इन बच्चों को मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं जैसे डिप्रेशन, PTSD, चिंता और शारीरिक झटके का अनुभव हो सकता है. वे अपने विचारों में उस अनुभव को बार-बार महसूस कर सकते हैं, जिससे उनके लिए अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में ठीक से काम करना मुश्किल हो सकता है.
बच्चे मां-बाप में से किसी एक द्वारा हिंसा करने पर दूसरे को छोड़ कर जाने से इनकार कर सकते हैं, वे हिंसक घटना में हस्तक्षेप भी कर सकते हैं, मदद के लिए फोन भी कर सकते हैं, या खुद वे किसी बुरी आदत की तरफ आकर्षित हो सकते हैं.
वे परिवार की भलाई के लिए प्रयास करके या छोटे भाई-बहनों की लगातार देखभाल करके अपने परिवार को सुखी रखने के लिए मजबूर महसूस कर सकते हैं.
कुछ बच्चे हिंसा करने वाले माता या पिता के साथ सहानुभूति रख सकते हैं और अपने अहिंसक माता-पिता के साथ अवमानना, आक्रामकता या धमकियों वाला व्यवहार कर सकते हैं.
घरेलू हिंसा को देखने वाले बच्चों में आपसी रिश्तों के प्रति गलत संदेश जा सकता है. जबकि कुछ बच्चे अपने रिश्ते में हिंसा के चक्र को तोड़ने के लिए समझदार बन सकते हैं. अन्य बच्चों को पर्सनालिटी डिसऑर्डर, गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं.
उन्हें यह गलत संदेश जा सकता है कि हिंसा और बुरा व्यवहार साथी के प्रिय या करीब होने का जरूरी घटक है. जो बच्चे घरेलू हिंसा का शिकार होते हैं या इसके अनुभवों से गुजरते हैं, उनमें यह भावना आ सकती है.
जो बच्चे घरेलू हिंसा के बुरे अनुभवों से गुजरे होते हैं, उन्हें विशेष देखभाल की जरूरत होती है. कभी-कभी ज्यादा गंभीर केस में बच्चे को उसकी भावनाओं से निपटने के लिए काउंसलिंग की भी जरूरत पड़ सकती है.
ऐसे प्रोफेशनल दंपति हिंसा या घरेलू हिंसा के बुरे परिणामों से निपटने में मदद कर सकते हैं.
ऐसे हालात में हर संभव प्रयास करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि बच्चा सुरक्षित महसूस करे और अपने जीवन की सामान्य स्थिति में वापस लौट सके.
जब बच्चे को मदद की जरूरत पड़े तो उसे आसानी से मदद मिल सके, साथ ही साथ उसकी सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए.
अगर बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर असर करने वाले कोई भी संभावित हानिकारक हालात उत्पन्न होते हैं, तो केयरगिवर या साइकोलॉजिस्ट से मदद लेनी चाहिए और इस पर चर्चा की जानी चाहिए कि इस तरह की घटना भविष्य में दोबारा न हो.
उदाहरण के लिए अगर पिता द्वारा घरेलू हिंसा की शिकार मां बच्चे को थेरेपी के लिए ले जाती है, तो वे चर्चा कर सकते हैं कि वे पिता का घर कैसे छोड़ सकते हैं और भविष्य में इस स्थिति से कैसे बच सकते हैं.
उनकी सुरक्षा के लिए बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में बताकर उन्हें आश्वस्त किया जाना चाहिए कि वे सुरक्षित हैं. जब बच्चे सुरक्षित महसूस करने लगेंगे, तो वे घरेलू हिंसा के कारण होने वाले ट्रॉमा से ठीक होना शुरू कर देंगे और अच्छे से जिंदगी में आगे बढ़ेंगे.
(प्रकृति पोद्दार, पोद्दार फाउंडेशन की मैनेजिंग ट्रस्टी और राउंडग्लास में ग्लोबल हेड फॉर मेंटल हेल्थ हैं.)
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Published: 18 Aug 2021,03:00 PM IST