कोरोना वायरस के हमारी जिंदगी पर हमले के साथ दुनिया इस तरह डिजिटल हो गई है, जैसी पहले कभी नहीं थी. शादी से लेकर किराने का सामान तक हर चीज के लिए वर्ल्ड वाइड वेब ही हर पूर्ति का जरिया बन गया है. लेकिन डिजिटल सिस्टम के कुछ नुकसान भी हैं, खासतौर से बच्चों के लिए.

महामारी का जोर बढ़ रहा है, ब्लैकबोर्ड और डेस्क की जगह स्क्रीन और तकिये ने ले ली है, और ऑनलाइन क्लास की वजह से देश भर के स्टूडेंट बढ़ते स्क्रीन टाइम के खतरों से जूझ रहे हैं. 6 साल की सिया की रोजाना 2 घंटे ऑनलाइन क्लास होती है, और होमवर्क पूरा करने के लिए उसे कंप्यूटर पर कुछ घंटे और बिताने पड़ते हैं.

महीनों से घरों में कैद बच्चे-किशोर न सिर्फ पढ़ाई, बल्कि मेल-जोल और मनोरंजन के लिए डिजिटल माध्यम पर बहुत ज्यादा निर्भर हो गए हैं- जिसने ये डिजिटल ओवरडोज कर दिया है.

हाई स्कूल के स्टूडेंट अमोघ गुप्ता कहते हैं, “मैं अपना ज्यादातर वक्त ऑनलाइन खर्च कर रहा हूं, यहां तक कि जब मैं पढ़ाई नहीं कर रहा होता हूं, तब मैं या तो नेटफ्लिक्स देख रहा होता हूं, सोशल मीडिया को खंगाल रहा होता हूं या दोस्तों के साथ लूडो खेल रहा होता हूं.”

लेकिन इतना ज्यादा स्क्रीन टाइम, खासकर बच्चों और किशोरों के लिए जो शारीरिक विकास के अपने शुरुआती फेज में हैं, हानिकारक है.

आंखों पर जोर पड़ना तो नुकसान का बहुत मामूली हिस्सा है, लगातार स्क्रीन को देखना बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और सोशल स्किल को भी खराब कर सकता है.

“बहुत ज्यादा स्क्रीन टाइम दिमाग की सूचना को प्रोसेस करने, ध्यान केंद्रित करने, फैसला लेने और विचारों को नियंत्रित करने की प्रक्रिया को कमजोर करता है. चूंकि बच्चों का मन और शरीर अभी विकसित हो रहा होता है, स्क्रीन एडिक्शन का असर बहुत खराब होता है.”
डॉ. अनुपम सिब्बल, इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल में शिशु रोग विशेषज्ञ, और अपोलो अस्पताल में ग्रुप मेडिकल डायरेक्टर

“रोहन ऑनलाइन गेम का बुरी तरह आदी हो गया है. वो इसमें इतना डूब जाता है कि उसे वक्त का पता ही नहीं चलता और खाना भी भूल जाता है. वो बहुत चिड़चिड़ा और आक्रामक हो गया है. 11 साल के बच्चे रोहन की मां वीना बताती हैं. डॉ. सिब्बल कहते हैं, “बहुत ज्यादा ऑनलाइन वीडियो गेम खेलने से बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत खराब असर पड़ सकता है.” वर्चुअल गेम्स में उलझे हुए समय बिताना बच्चों के अटेंशन पावर को कम कर सकता है और उन्हें ज्यादा हिंसक बना सकता है.

किशोरों में दूसरी समस्याओं की भी भरमार हो गई है. इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस से निकलने वाली ब्लू लाइट मेलाटोनिन हार्मोंस के प्रोडक्शन को प्रभावित करती है, जो बच्चों के नींद के पैटर्न को बाधित करता है, जिसके नतीजे में सुस्ती और एफिशिएंसी में कमी दिख सकती है.

डॉ. सिब्बल बताते हैं कि ज्यादा स्क्रीन टाइम फिजिकल इनएक्टिविटी से सीधे जुड़ा होता है और इस तरह बिना मूवमेंट समय बच्चों के लिए मोटापे का खतरा बढ़ा सकता है. पोस्चर की समस्याएं भी बढ़ रही हैं- सिया की मां श्रुति बताती हैं कि उनकी बेटी कई बार सिरदर्द और गर्दन में दर्द की शिकायत करती है.

दिन डिजिटल होते जा रहे हैं और आउटडोर से परहेज के कारण, मां-बाप को समझ नहीं आ रहा कि अपने बच्चों को व्यस्त रखने के साथ नुकसानदेह स्क्रीन टाइम को कैसे दुरुस्त करें.

स्क्रीन टाइम कैसे मैनेज किया जा सकता है?

अगर आप भी अपने बच्चे को बहुत सारे कार्टून सीरियल देखने, गणित के ट्यूशन या ऑनलाइन गेम में जुटे रहने को लेकर फिक्रमंद हैं, तो यहां कुछ तरीके बताए जा रहे हैं, जिन्हें अपनाकर आप उनका स्क्रीन टाइम मैनेज कर सकते हैं -

“स्क्रीन टाइम कम करना बहुत जरूरी है ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि बच्चे के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर असर न पड़े.”
डॉ. अनुपम सिब्बल
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जितना मुमकिन हो डी-स्क्रीन (स्क्रीन देखने से दूर रहना) फायदेमंद है. इसका मतलब है फोन कॉल, पॉडकास्ट, और वीडियो चैट, टीवी के बजाय किताबें और विकिपीडिया. बच्चों को ऑफ-स्क्रीन हॉबी और मनोरंजन के साधनों के लिए बढ़ावा देना चाहिए.

“हमने हाल ही में हर शाम अपने परिवार में बोर्ड गेम्स (मेज पर खेले जाने वाले खेल) की परंपरा शुरू की है. रोहन सच में इसका मजा लेता है और ये हमारे गैजेट वाले भारी-भरकम शेड्यूल से एक ताजगी भरा ब्रेक देता है,” उसकी मां बताती हैं.

डॉ. सिब्बल कहते हैं, “अपने बच्चे के दिन की योजना इस तरह बनाएं कि ऑनलाइन सर्फिंग के साथ-साथ फिजिकल एक्टिविटी में भी समय खर्च हो.” बच्चों को एक्टिव रखने और जिम्मेदारी का अहसास पैदा करने के लिए कुछ घरेलू कामों में भी लगाया जा सकता है.

बच्चों का स्क्रीन टाइम मैनेज करने के लिए कुछ सुझाव

  • स्क्रीन को आंखों से 20-24 इंच दूर रखें
  • हर 15-20 मिनट बाद आंखों को आराम देने के लिए ब्रेक लें
  • सोने से पहले स्क्रीन से दूर रहें
  • अपनी डिवाइस पर ब्लू लाइट फिल्टर का इस्तेमाल करें
  • फोन की स्क्रीन को छोड़कर फोन कॉल्स, पॉडकास्ट और किताबों के पेपर वर्जन अपनाएं
  • बच्चे को बोर्ड गेम्स खेलने- हॉबी के लिए प्रोत्साहित करें, फिजिकल एक्टिविटी में शामिल करें

स्क्रीन टाइम न सिर्फ कम किया जाना चाहिए, बल्कि बेहतर इस्तेमाल भी होना चाहिए. बच्चे को एक संतुलित डिजिटल डाइट का पालन करना चाहिए, जिसमें मनोरंजन, शिक्षा और मेल-जोल पर खर्च की जाने वाली अवधि का संतुलित बंटवारा हो.

“ कंप्यूटर स्क्रीन को आंखों से 20 से 24 इंच की दूरी पर रखें और आंखों के तनाव और थकान को कम करने के लिए अपने डिवाइस की डिसप्ले सेटिंग्स को सही रखें. हर 15-20 मिनट में आंखों को आराम देने के लिए ब्रेक लेना चाहिए.”
डॉ. अनुपम सिब्बल

आंखों में ड्राइनेस से बचने के लिए इरादतन बार-बार पलकें झपकाएं और डिवाइस पर ब्लू लाइट फिल्टर लगााएं. डॉ. सिब्बल ये भी सुझाव देते हैं कि बच्चों के सोने से कम से कम 30 मिनट पहले सभी स्क्रीनों को हटा दिया जाए.

ये भी याद रखना चाहिए कि बच्चे अपनी देखभाल करने वालों से सीखते हैं. अगर आप स्क्रीन पर बहुत ज्यादा समय बिताते हैं, तो आपका बच्चा भी ऐसा करेगा. श्रुति कहती हैं, “इसीलिए मैं रात को सिया के सो जाने के बाद ही अपना फोन उठाती हूं.”

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Published: 28 Sep 2020,02:06 PM IST

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