(चेतावनी: इस लेख में चाइल्ड सेक्स अब्यूज पर चर्चा की गई है. अगर आप अब्यूज के/की शिकार हैं या किसी अब्यूज के/की शिकार को जानते हैं तो चाइल्डलाइन नंबर 1098 पर कॉल करें.)
“जितने भी स्कूलों के प्रिंसिपल से मैंने बात की सभी ने चाइल्ड सेक्स अब्यूज यानी बाल यौन शोषण के बारे में प्ले स्कूल के बच्चों से बात करने पर एतराज किया, जबकि मेरा हमेशा से मानना है कि इस पर अभी से बात शुरू करना कतई जल्दी नहीं है,” यह कहना है कि चाइल्ड सेक्स अब्यूज सर्वाइवर और चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट छवि डावर का.
इसके लिए कौन सी उम्र ‘सही’ उम्र है?
आप जितना ज्यादा जानते हैं, उतना ही सशक्त होते हैं, और छवि डावर का कहना है कि जानकारी हमेशा उम्र के हिसाब से होती है ताकि बच्चा सचमुच समझ सके और असल जिंदगी में इसका इस्तेमाल कर सके.
बाल मनोचिकित्सक और चिल्ड्रेन फर्स्ट (Children First) के सह-संस्थापक डॉ. अमित सेन का कहना है कि बच्चों में तीन साल की उम्र से ही अपने शरीर को लेकर स्वाभाविक जिज्ञासा पैदा होने लगती है.
उदाहरण के लिए, डावर ने 3-4 साल के बच्चों को सेफ और अनसेफ टच के बारे में बताया, जिसमें कहा गया है कि किसी को भी आपके प्राइवेट पार्ट को नहीं छूना चाहिए या आपको असहज नहीं करना चाहिए. अगर कोई ऐसा करता है तो, “जोर से चिल्लाओ और किसी करीबी बड़े को बुलाओ जैसे अपनी मां को बताओ.”
यह अक्सर आपके शरीर की हकीकत समझने का पहला कदम होता है- और अगर आप इसका उल्लंघन किया जाता महसूस करते हैं, तो आप प्रतिरोध कर सकते हैं.
बच्चे जैसे-जैसे बड़े होते हैं और उनकी समझ परिपक्व होती है, उन्हें दी जाने वाली नसीहत और अधिक व्यापक हो सकती है.
इसके बाद डावर उनके शरीर के प्राइवेट पार्ट्स का नाम पूछती हैं और प्राइवेट पार्ट्स के बारे में बताती हैं कि वे पर्सनल हैं क्योंकि वे आपके अंडरगारमेंट से सुरक्षित हैं. केवल कुछ बड़े लोग जैसे मम्मी या डॉक्टर ही देख सकते हैं.
वह बताती हैं कि वह बच्चों से सीधे सवाल पूछकर कि उन्हें कौन नहलाता है या वो किससे बात करते हैं, जैसे सवाल पूछकर उनका भरोसा हासिल करती हैं.
यह वह उम्र है जब बच्चे स्कूल जाना शुरू करते हैं और सहपाठियों के साथ बातचीत करते हैं, और डॉ. सेन का कहना है कि जरूरी है वे समझें कि क्या पर्सनल है और क्या नहीं.
छवि कहती हैं, “किसी भी उम्र के बच्चे के लिए यह समझ जरूरी है कि क्या कहा जा रहा है और ऐसे सटीक उदाहरण हों, जो उनकी जिंदगी से जुड़े हों.”
कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेंस फाउंडेशन (KSCF) की पॉलिसी डायरेक्टर निहारिका चोपड़ा का कहना है कि हम और छोटे बच्चों के लिए भी कुछ उपाय कर सकते हैं.
इसके बाद 5 या 6 साल की उम्र में आप उन अवधारणाओं को थोड़ा और विस्तारित कर सकते हैं. “जरूरी यह है कि बच्चे से खुलकर बात की जा सके. उदाहरण के लिए, शरीर के अंगों से परे बच्चों को इस बात की गहराई समझने की जरूरत है कि रजामंदी का मतलब क्या है, यह किस तरह दोतरफा चीज है, जहां सम्मान देते हैं और सम्मान पाते हैं.”
सेफ और अनसेफ टच समझाने के लिए यह सही उम्र है. डावर भावनाओं को जाहिर करने से शुरुआत करती हैं,
एक और बात यह है कि मां-बाप इस बात पर जोर दे सकते हैं कि बच्चे को इस बात की समझ हो कि उनका शरीर उनका है, यह सुनिश्चित करके कि लोग उन्हें गले लगाने से पहले पूछें- और फिर उनकी हां या ना का सम्मान करें.
“ना कहा जाना इस तरह सिखाया जाना चाहिए, जो केवल अब्यूज से जुड़ा न हो.” यहां उस बच्चे का सम्मान करने के लिए तौर-तरीके में बदलाव की जरूरत है, जहां उन्हें लगे कि उनकी बात सुनी जा रही है. उदाहरण के लिए, वे खाना नहीं चाहते और ना कहते हैं, तो बजाए इसके कि कोई जबरन उन्हें खाना खिलाए, उन्हें उस खाने के फायदे को समझाए और तालमेल कर सके.”
ऐसे में बच्चा समग्र रूप से सेल्फ रिस्पेक्ट और इम्पावरमेंट की अवधारणा को समझता है. ये अवधारणाएं स्थापित हो जाती हैं और फिर इन्हें ज्यादा मजबूत करने की जरूरत होती है, लेकिन आप 15 साल की उम्र में सेक्सुअल सहमति और अब्यूज पर अचानक चर्चा शुरू नहीं कर सकते क्योंकि इस बारे में तब तक उनके विचार विकसित हो चुके होंगे.
किशोरावस्था या 13 साल से पहले की उम्र में आप व्याख्याओं में और गहराई तक जा सकते हैं.
डॉ. सेन का कहना है कि इस उम्र में आप बातचीत में और खुलापन ला सकते हैं क्योंकि सोशल मीडिया पर, फिल्मों में और तमाम जगहों पर वे जो कुछ भी देख रहे हैं उसकी वजह से उत्सुकताएं बढ़ती हैं. इसके अलावा यह उम्र है जब बच्चे दोस्तों के घर रात बिता सकते हैं, और यहां फिर से सीमाओं और दूसरे तरह के निर्देशों को समझाना जरूरी है.
छवि डावर बच्चे के दोस्तों के करीबी दायरे के अंदर भी दोस्ती, जेंडर को लेकर सोच और पर्सनल स्पेस के बारे में बात करती हैं.
“आप किसके साथ क्या साझा कर सकते हैं?” आपकी मदद के लिए यहां एजेंट्स ऑफ इश्क (Agents of Ishq) का यह वीडियो पेश है:
चूंकि सीमाओं और सहमति को लेकर गहराई से चर्चा की जा चुकी है, अब समय है कि आप सेक्स पर चर्चा को थोड़ा और विस्तार दें.
डॉ. सेन कहते हैं,
क्या आपको जेंडर को अलग-अलग करना चाहिए? डावर का कहना है कि जेंडर सिर्फ दो तरह के तरह के नहीं होते, वह इसके प्रति सजग हैं और सभी क्लासें सभी को एक साथ लेकर करने की कोशिश करती हैं. “यह उन्हें दूसरे जेंडर और प्यूबर्टी (यौवन) की समस्याओं का एहसास करने में भी मदद करता है.”
लेकिन डॉ. सेन का कहना है कि यह तरीका हमेशा काम नहीं करता, क्योंकि विकास-क्रम में बच्चे अलग चरण में होते हैं और उनकी अलग, खास किस्म की चिंताएं होती हैं.
उनका सुझाव है कि वे इसे बच्चों पर छोड़ देते हैं कि वे अपनी कक्षाओं को कैसे चलाना चाहते हैं, और 9वीं या 10वीं कक्षा तक पहुंचने के बाद, जबकि उनकी उम्र 15-16 साल होती है, फिर से मिक्स ग्रुप शुरू करते हैं.
इसीलिए सही और संवेदनशील नसीहत जरूरी हैं. छवि का कहना है कि मां-बाप को अपने बच्चों की हिफाजत के लिए खुलेपन से बातचीत करने की जरूरत है.
डॉ. सेन कहते हैं कि जब बच्चे अब्यूज का शिकार होते हैं, तो वह इसे समझ नहीं पाते हैं- लेकिन बाद में सर्वाइवर को एहसास होता है कि कुछ गलत हुआ था.
यह जरूरी है कि बच्चे आपसे बात करने के लिए आपके द्वारा बनाए सुरक्षित दायरे में सहज महसूस करें, और उन्हें पता हो कि वे आपसे किसी भी चीज के बारे में बात कर सकते हैं. अगर यह सभी नसीहतें शरीर के अंगों को नाम से पहचानने, झिझक दूर करने, किसी भी चीज के बारे में खुली बात को प्रोत्साहित करने के लिए हैं, तो बच्चों को बोलने का हौसला मिलेगा.
चाइल्ड सेक्स अब्यूज के खिलाफ काम करने वाले गैरसरकारी संगठन रूबरू ब्रेकिंग साइलेंसेज फाउंडेशन (Rubaroo Breaking Silences Foundation) की सह-संस्थापक और निदेशक लिशा छेडा का इस बारे में कहना है,
वह कहती हैं कि खुलेपन के साथ बातचीत जरूरी है- यहां तक कि पेरेंट और इंस्ट्रक्टर के लिए भी, “इसलिए हम जानते हैं कि उन्हें इसे स्वीकार करने में समय लगेगा. हम उन्हें आंकड़े दिखाते हैं और समझाते हैं कि चाइल्ड सेक्स अब्यूज कैसे होता है. हम बताते हैं कि कैसे लड़कों को भी खतरा होता है. असल में भारत में, लड़के थोड़ा ज्यादा जोखिम में हैं.”
वह पेरेंट को शामिल करती हैं और उन्हें बताती हैं कि उन्हें क्यों लगता है कि लड़कों को खतरा हो सकता है,
लिशा बताती हैं कि एजेंट ऑफ इश्क और NGO एनफोल्ड (Enfold), अर्पण जैसे कई रिसोर्स हैं.
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