(विरोध प्रदर्शन, हिंसा, आगजनी, लूटपाट, भीड़ का गुस्सा और यहां तक कि यौन उत्पीड़न की खबरें. सामाजिक-राजनीतिक अशांति के दौर में अपनी मेंटल हेल्थ का ख्याल कैसे रखना है, इस पर फिट की ओर से ये आर्टिकल दोबारा पब्लिश किया जा रहा है.)
नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (NRC) को लेकर राष्ट्रव्यापी छात्र आंदोलन में उबाल और पुलिस की जवाबी कार्रवाई चल रही है.
हिंसा, आंसू गैस और यहां तक कि यौन उत्पीड़न के किस्से, राजधानी दिल्ली में इंटरनेट व मोबाइल फोन सेवाएं बंद किए जाने की भी खबरें हैं. गुस्सा, निराशा, हताशा और थकान सब एक साथ.
जबकि सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों को लेकर कोई आंदोलन आगे बढ़ रहा होता है, तो भावनाएं उफान पर होती हैं और बहुत तेजी से शांत भी हो जाती हैं.
लोगों में एनआरसी लिस्ट से बाहर हो जाने का डर फैला है और बहुत से लोगों ने तो परेशान करने वाली खबरों की बाढ़ को रोकने के लिए खबरों से किनारा कर लिया है.
24 वर्षीय प्रोफेशनल फौजिया (जिन्होंने अपने पूरे नाम का इस्तेमाल नहीं करने का अनुरोध किया है) FIT से बातचीत में कहती हैं, “मुझे सच में बहुत डर लग रहा है, एक पूरा दिन इस एहसास के साथ बीता कि मैं ठीक नहीं हूं और मैं खबरों से ध्यान नहीं हटा पा रही हूं. ईमानदारी से कहूं तो लगता है कि मेरा भविष्य- शादी और बच्चे पैदा करने जैसी बुनियादी चीजें मुझसे छीन ली गईं हैं. मुमकिन है कि अभी भी छीना जा सकता है. मैंने कभी ऐसा नहीं सोचा था कि जब मैं 24 साल की होउंगी तो ऐसे हालात का सामना करना होगा.”
डीयू के छात्र और एक्टिविस्ट देशदीप धनखड़ के पास इसका जवाब है- मेंटल हेल्थ विशेषज्ञों को लोगों से बिना किसी फीस के जोड़ें.
वह कहते हैं, “मैंने जामिया मिल्लिया की लड़कियों के घर लौटने की तस्वीरें देखीं और इससे मेरा दिल टूट गया. मैं बहुत थका हुआ और तकलीफ में था, लेकिन मैंने कुछ करने का फैसला लिया. इसके बाद लगातार 2 दिन मेहनत करनी पड़ी, लेकिन मैंने काउंसलर और मनोचिकित्सकों की एक लिस्ट तैयार की, जो प्रभावित लोगों के लिए मुफ्त में काम करेंगे.”
धनखड़ कहते हैं, इस लिस्ट में लगभग 20 काउंसलर और मनोवैज्ञानिक हैं.
लेकिन अभी इसकी जरूरत क्यों है?
राजनीति लोगों के लिए है और बेशक इसीलिए राजनीतिक अशांति हमारी जिंदगी में भी कहीं ना कहीं अस्थिरता का कारण बनती है. यह स्वाभाविक रूप से मानसिक परेशानी भी पैदा करती है.
टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) में मनोविज्ञान की स्टूडेंट फराह मानेकशॉ कहती हैं, “मेंटल हेल्थ की चिंता शून्य में नहीं होती है. हम डिप्रेशन या एंग्जाइटी को सिर्फ किसी शख्स के मन के भीतर एक न्यूरोकेमिकल असंतुलन या बीमारी के रूप में नहीं देख सकते क्योंकि अक्सर उनकी परेशानी एक बड़े सामाजिक संदर्भ से जुड़ी होती है.”
दिल्ली की एक मनोवैज्ञानिक श्रीविद्या बताती हैं कि उन्हें क्यों लगता है मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल्स को सामाजिक रूप से भी जुड़ाव रखना चाहिए और उन्होंने क्यों अपना नाम इस सूची में दर्ज कराया है,
मेडिकल जर्नल द लांसेट की कश्मीर में “एक दशक के संघर्ष” से उत्पन्न मानसिक स्वास्थ्य संकट के बारे में अगस्त 2019 में आई रिपोर्ट को भारत में विवादों का सामना करना पड़ा था.
मेंटल हेल्थ के सामाजिक निर्धारकों पर व्यापक शोध किया गया है, जैसे कि WHO की 2014 की एक रिपोर्ट में साफ तौर से कहा गया है: मेंटल हेल्थ काफी हद तक सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों से निर्धारित होती है. इसलिए अल्पसंख्यकों और उत्पीड़न का शिकार लोगों को मेंटल हेल्थ की समस्या का ज्यादा सामना करना पड़ता है- चूंकि वे अल्पसंख्यक हैं, ठीक इसी कारण वे हाशिए पर रखे जाने के हालात का सामना करते हैं.
श्रीविद्या का कहना है कि खासकर अभी, जैसा कि हमारे देश में नागरिक विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं, मेंटल हेल्थ सेवाएं जरूरी हैं. लेकिन यह केवल हालिया CAA और NRC विरोध की वजह से नहीं है, सामूहिक बेचैनी की भावना का उबाल काफी पहले से है.
लिस्ट में शामिल एक काउंसलर दुर्गेश कहते हैं, “अशांति के मौजूदा माहौल में, यह लोगों के मनोवैज्ञानिक संतुलन पर असर डालने वाला है, भले ही वे इसमें सीधे शामिल ना हों. लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हो रहे हैं और इसलिए सपोर्ट सिस्टम की मौजूदगी तमाम भावनाओं को काबू में रखने में मददगार हो सकती है.”
चूंकि मनोविज्ञान और सदमे से निपटना व्यक्तिवादी है, इसलिए इसका सामना करने के लिए कुछ सुझाव दिए जा रहे हैं:
दुर्गेश कहते हैं, “यह एक बुनियादी रणनीति है. कई बार, स्थिति साफ नहीं होती है तो वे दोस्तों, परिवार के सदस्यों या लिस्ट में से किसी से भी बात कर सकते हैं, जिससे उन्हें लगता है कि उन्हें मदद मिलेगी.”
वह कहते हैं कि अपनी भावनाओं पर काबू रखें और जब आप असहज महसूस कर रहे हों तो फैसला लें- यह ब्रेक लेने का समय है.
श्रीविद्या का कहना है कि आम इंसान के लिए जुड़ाव महत्वपूर्ण है- आप इस स्थिति से नहीं भाग सकते हैं, इसलिए मुद्दों का सामना करना जरूरी है. “पता लगाएं कि आप इसके बारे में कैसा महसूस करते हैं, शिक्षित हों, आराम करने और हौसला पाने के लिए सुरक्षित स्थानों पर वापस जाएं. लेकिन ये मुद्दे बड़े होते जाएंगे और हमें जागरूक रहना होगा, साथ ही खुद को जमीन से जुड़ाव रखना चाहिए और वही करना चाहिए जो हम सामान्य रूप से रोजाना करते हैं.”
सूची में शामिल एक और काउंसलिंग मनोवैज्ञानिक स्नेहा जानकी कहती हैं, खुद को रीचार्ज करने के लिए समय देना, थोड़ी देर के लिए अपने आप को सदमा पहुंचाने वाली खबरों से दूर रखना जरूरी है.
“अभी कल ही मैंने जामिया मिल्लिया इस्लामिया की एक लड़की को ऑफटाइम, स्टे फोकस्ड ऐप इंस्टॉल करने की सलाह दी, यह खबरों से स्विचऑफ करने का एक सेल्फ टाइमर है. वह खबरों से किनारा नहीं कर पा रही थी.”
यह करके, आप ऐसा महसूस नहीं करते हैं कि आप बहुत अधिक डिस्कनेक्ट हो गए हैं, लेकिन दर्दनाक तस्वीरों से भी साफ तौर पर ब्रेक मिल जाता है.
काफी आशंकाएं झूठी सूचना और गलत सूचना से हैं- फेक न्यूज से सावधान रहें! पढ़ें, अपने दिमाग का नियंत्रण अपने हाथों में रखते हुए बेबसी के एहसास का मुकाबला करने के लिए अपनी राय बनाएं.
श्रीविद्या कहती हैं, “आप अपने परिवार, दोस्तों, समुदाय के बीच जा सकते हैं या लेखन, स्केचिंग या कुछ ऐसा भी कर सकते हैं जो आपको बेहतर और सुरक्षित महसूस कराता है.”
दुर्गेश कहते हैं, “अपने शरीर पर ध्यान देना एक और जरूरी पहलू है, कई बार हमारा शरीर संकेत देता है जो हमें यह समझने में मदद करता है कि हमें क्या करने की जरूरत है."
स्नेहा जानकी का यह भी कहना है, “मुझे लगता है कि यह जानना जरूरी है कि हमारे नर्वस सिस्टम को कैसे नियंत्रण से आजाद किया जा सकता है और यह सच में खुद की देखभाल के तौर पर काम करता है. अनप्लगिंग ऐसा ही एक विकल्प है.”
आंदोलन के अपने स्रोत का पता लगाएं और एक बार जब आप खुद को तैयार महसूस करते हैं, तो जो भी आप कर सकते हैं, उस तनाव का उपयोग खुद को प्रेरित करने के लिए करें.
अंत में, स्नेहा जानकी कहती हैं कि असल में सबसे महत्वपूर्ण क्या है: “हम खुद के प्रति उदार होने के साथ किस तरह विरोध कर सकते हैं !"
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Published: 20 Dec 2019,06:22 PM IST