मक्की की रोटी और सरसों का साग! पंजाबी खाने का एक मशहूर व्यंजन.

इन शब्दों को लिखते हुए मुझे फिल्म ‘दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे’ का एक खूबसूरत दृश्य याद आता है, जिसमें ठंडी हवा के झोकों में लहलहाते हुए पीले फूल, फुलकारी दुपट्टे में लिपटी हुई युवा लड़कियां, गुलाबी, पीले, हरे रंग की पगड़ी में ढोलक की थाप पर नाचते हुए नौजवान और बैकग्राउंड में रेलगाड़ी से निकलने वाला धुआं खेतों में फैलते हुए दिखता है.

है ना?

सरसों का साग हमेशा से पंजाबी खानों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है. यह पारंपरिक रूप से मक्की की रोटी, घी, गुड़ और छाछ के साथ परोसा जाता है.

सरसों के साग में एंटीऑक्सीडेंट केल (करमसाग) के बाद दूसरे स्थान पर सबसे ज्यादा होता है. (फोटो: iStockphoto)

अपने सामने हरे, पीले, सुनहरे भूरे और सफेद रंगों की कल्पना करें, यह कितना स्वादिष्ट हो सकता है. स्वाद और समृद्ध पोषक तत्वों से भरपूर इस व्यंजन को सर्दियों के मौसम में जरूर खाना चाहिए.

100 ग्राम सरसों की पत्तियां केवल 34 किलो कैलोरी और 16 मिलीग्राम आयरन, 2,622 माइक्रो ग्राम कैरोटीन, 33 मिलीग्राम विटामिन सी प्रदान करती हैं. इसे ग्लूटेन मुक्त मक्के के आटा में मिलाकर स्वादिष्ट और पौष्टिक रोटी बनाई जाती है. 100 ग्राम मक्की का आटा 349 किलो कैलोरी, 2.3 मिलीग्राम आयरन, 348 मिलीग्राम फॉस्फोरस और 20 माइक्रोग्राम फोलिक एसिड प्रदान करता है.

सरसों के साग में एंटीऑक्सिडेंट केल (करमसाग) के बाद दूसरे स्थान पर सबसे ज्यादा मौजूद होता है और सेल्युलर स्तर पर डिटॉक्स का समर्थन करने वाले आइसोथियोसाइनेट्स, सरसों के साग में सबसे अधिक होते हैं.

यहां हम स्वादिष्ट सरसों का साग बनाने की बेहतरीन रेसिपी बता रहे हैं.

सरसों का साग तैयार करने की विधि

सामग्रियों की लिस्ट:

(कार्ड: फिट)

विधि

  • सभी हरी पत्तियों को अच्छी तरह से साफ कर धो लें. अगर आप किसी खुले बर्तन में पकाने की सोच रहे हैं तो पत्तियों को बारीक काट लें.

  • लहसुन और मिर्च को बारीक काट लें और अदरक के साथ साग में मिला दें.

  • स्वाद के मुताबिक नमक डालें और इसे प्रेशर कुकर में 15 मिनट तक पकाएं या किसी खुले बर्तन में पका रहे हैं तो तब तक पकाएं जब तक पत्तियां पक ना जाएं, हर कुछ देर में इसे चलाएं, ताकि पत्तियां जले ना. पत्तियों में पर्याप्त मात्रा में पानी मौजूद रहता है, इसलिये इसे पकाने के लिए पानी डालने की जरूरत नहीं होती है.

  • एक बार जब पत्तियां अच्छी तरह पक जाती हैं, तो उन्हें ब्लेंडर या पुराने तरीके से मूसल के जरिए पीस लें.

  • फिर तेल/घी गरम करें, सबसे पहले हींग डालकर भूनें, उसमें प्याज, हरी मिर्च डालकर सुनहरा भूरा होने तक भूनें, फिर लाल मिर्च पाउडर डालें और मिलाएं, इसके बाद भूने हुए सभी सामग्री को साग में डालें.

  • फिर धीमी आंच पर क्रीमी टेक्सचर आने तक साग को पकाएं, अब आपका स्वादिष्ट सरसों का साग तैयार है.

  • इसमें मक्खन का बड़ा टुकड़ा डालें और मक्की की रोटी के साथ गरमागरम परोसें.

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नोट: अगर आपको साग का स्वाद थोड़ा कड़वा लगता है, तो तड़के के साथ गुड़ का एक छोटा टुकड़ा डाल सकते हैं.

यह घर पर सरसों का साग पकाने का मेरा तरीका है, इसलिए सर्दियों का मौसम खत्म होने से पहले पोषक तत्वों और स्वाद से भरपूर सरसों का साग खाने का आनंद जरूर लें.

इस स्वादिष्ट भोजन को मैंने सबसे पहले अपनी नानी के घर खाया था, जहां मेरे चचेरे भाई, मामा और मामी सभी रहते थे. नानी इसे मिट्टी के बर्तन में कोयले या लकड़ी से जलने वाले चूल्हे पर बनाती थीं क्योंकि साग की मात्रा बहुत अधिक होती थी, सरसों का साग बनाने की तैयारी ही अपने आप में एक कहानी थी.

खेतों से ताजा सरसों, पालक, बथुआ, थोड़ी मात्रा में मेथी और छोले लाने के बाद पत्तियों से डंठल और घास को अलग-अलग करने की प्रक्रिया शुरू होती थी.

गपशप करते हुए परिवार का हर सदस्य इसमें शामिल होता था. फिर से ‘दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे’का एक सीन!

पत्तों पर कोई मिट्टी छूट ना जाए, यह सुनिश्चित करने के लिए इसे धोना एक बड़ा काम होता था. पानी से भरे स्टील के बड़े बर्तन में पत्तियों को 2-3 बार अच्छी तरह से धुला जाता था. इसके बाद पत्तियों को बारीक काटकर नमक, अदरक और हरी मिर्च के साथ बर्तन में डाल दिया जाता था. इसे पत्तियों से निकले पानी में ही धीमी आंच पर पकाया जाता था, जब तक कि यह पूरी तरह से पक ना जाए और एक क्रीमी टेक्सचर ना दिखने लगे, आमतौर पर देर रात हो जाती थी, इसलिए हम अगले दिन प्याज के तड़के के बाद मक्खन या घी के साथ इसे खाया करते थे.

मक्की की रोटी के लिए खेतों से आने वाला आटा मीठा, स्वाद से भरा होता था और इसके साथ छाछ स्वाद बढ़ाने का काम करता था. इस व्यंजन को पकाने और परोसने में जो प्यार भरा धैर्य था, वो इसके स्वाद को और बढ़ा देता था.

आज जब मैं पंजाब से गुजरती हूं, तो कई ढाबे हैं जो सरसों का साग बनाते हैं.

इनमें से दो मेरे पसंदीदा ढाबा हैं, पहला मुरथल में सुखदेव ढाबा और दूसरा शिमला जाने के रास्ते में धरमपुर में स्थित ज्ञानी का ढाबा, लेकिन ये किसी भी पंजाबी घर में धीमी आंच पर बने सरसों के साग का विकल्प नहीं हैं.

(रुपाली दत्ता एक क्लीनिकल न्यूट्रिशनिस्ट हैं, जिन्होंने कॉरपोरेट हॉस्पिटल्स में टीमों का नेतृत्व किया है. इन्हें वेलनेस और बीमारी दोनों में हेल्थकेयर, फूड और न्यूट्रिशन की गहरी जानकारी है.)

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