advertisement
(5 नवंबर को, कर्नाटक हाईकोर्ट ने लॉ कमीशन को पॉक्सो एक्ट के तहत सेक्स में सहमति की उम्र पर पुनर्विचार करने को कहा है. इस मौके पर इस आर्टिकल को दोबारा पब्लिश किया जा रहा है.)
सेक्स और सेक्स एजुकेशन के बारे में जैसे-जैसे जागरुकता बढ़ रही है, सेक्स को लेकर वर्जनाएं भी टूट रही हैं, और ज्यादा संख्या में किशोर सेक्स व सेक्शुअलटी की खोज को लेकर एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं. ऐसे में क्या सरकार को भारत में सेक्शुअल कॉन्सेंट यानी सेक्स की गतिविधि में शामिल होने की सहमति की न्यूनतम उम्र घटाने पर विचार करना चाहिए?
हमने कुछ नौजवानों और विशेषज्ञों से बात की.
दिल्ली यूनिवर्सिटी की लॉ फैकल्टी में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. वागेश्वरी देशवाल के अनुसार कानून के तहत किसी भी बच्चे के साथ, जिसकी उम्र सहमति देने की तय उम्र से कम है, किसी भी सेक्शुअल गतिविधि में शामिल होना प्रतिबंधित है. ऐसा करने वाले किसी भी शख्स को नाबालिग की सहमति के बावजूद दोषी ठहराया जा सकता है क्योंकि कानून इस उम्र से कम के नाबालिगों को समझदारी भरी सहमति देने के लिए नाकाबिल मानता है. और इसीलिए उनकी सहमति का कोई मतलब नहीं है.
भारत में सेक्स के लिए सहमति की उम्र 18 साल है, जो दोनों जेंडर्स को बालिग मानने की उम्र भी है. लेकिन क्या 18 साल की उम्र में सेक्शुअल परिपक्वता हासिल हो जाती है?
डॉ. देसवाल कहती हैं, "साल 2015 में जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में बदलाव के बाद 16 से 18 साल की उम्र के बीच का किशोर, जिस पर कोई जघन्य अपराध करने का आरोप है, उस पर वयस्क के तौर पर मुकदमा चलाया जा सकता है और सजा दी जा सकती है. अगर 16 साल से ज्यादा का बच्चा सजा का हदकार है, तो इसका मतलब है कि कानून ने बच्चे की समझदारी को स्वीकार कर लिया है कि वह अपने कृत्य की जिम्मेदारी ले सकता है. इसी तरह वर्ष 2013 में रेप कानूनों में किए गए संशोधन कठोर सजा का प्रावधान करते हैं, अगर रेप पीड़ित सोलह साल से कम उम्र की होती है. यह सेक्शुअल परिपक्वता के लिए 16 साल की उम्र की पुष्टि करता है."
डॉ. देसवाल कहती हैं, “नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों को देखें तो- पॉक्सो के पचास फीसद मामले 16 से 18 साल की उम्र के बच्चों के खिलाफ हैं. गहराई से किए गए एक विश्लेषण से पता चला है कि अधिकांश मामले सेक्शुअल शोषण की बजाए किशोरावस्था के रोमांस के थे. चूंकि POCSO नाबालिगों के बीच सभी सेक्शुअल गतिविधियों को अपराध ठहराता है, सहमति से बने कई संबंधों पर भी बेमतलब के मुकदमे चले और सजाएं हुई हैं, जो इस कानून की विरोधाभासी प्रकृति को दर्शाते हैं."
कुछ छात्रों जिनसे हमने बात की, उनकी राय थी कि हमें निश्चित रूप से इस बारे में सोचना चाहिए.
शूलिनी यूनिवर्सिटी में बायोटेक्नोलॉजी फर्स्ट ईयर की छात्रा मुदिता चौहान कहती हैं, “मानव शरीर विज्ञान के अनुसार पुरुष या महिला दोनों 8 से 15 साल की उम्र में प्यूबर्टी (यौवन अवस्था) हासिल करते हैं. न केवल शारीरिक रूप से बल्कि मनोवैज्ञानिक रूप से भी वे अपने शरीर के बारे में काफी जागरूक होते हैं और शायद दूसरे जेंडर के प्रति आकर्षित और उत्सुक होते हैं. भारत में भी सहमति की उम्र को 18 से घटाकर 16 कर देना चाहिए, क्योंकि अभी 16 या 17 साल की उम्र में इन गतिविधियों में शामिल होना गैरकानूनी है, भले ही यह सिर्फ उनकी बेकाबू उत्सुकता की वजह से हो.”
नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र और फिलहाल दिल्ली में वकालत कर रहे बिलाल अनवर खान कहते हैं, “चूंकि अभी कानून ने 18 साल तय कर रखा है, हमें उसी को मानना चाहिए. लेकिन सेक्शुअलटी के अधिकार की मान्यता होनी चाहिए और किशोरों द्वारा इसके चुनाव के अधिकार को मान्यता देनी चाहिए. अगर यह 16 या 17 साल की उम्र आता है तो यही होना चाहिए.”
डॉ. देसवाल का मानना है कि समय आ गया है कि भारत मौजूदा नैतिकता के साथ चले.
वह कहती हैं,“सहमति की उम्र अठारह साल तय करने से किशोर सेक्शुअलटी का अपराधीकरण हो गया है. अध्ययनों से पता चला है कि बच्चे जल्दी प्यूबर्टी हासिल कर रहे हैं, उनकी पोर्न सामग्री तक भरपूर पहुंच और उपलब्धता है जो उनकी जिज्ञासा को बढ़ाती है, बढ़ती उम्र में उनके हार्मोन्स बेकाबू हैं. और फिर, मना किए गए काम करने की लालसा.
बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार मद्रास हाई कोर्ट ने एक मामले में टिप्पणी की थी कि, सहमति की उम्र को घटाकर 16 साल किया जाना चाहिए, ताकि सहमति से संबंध बनाने वाले नौजवान पॉक्सो (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल एक्ट, 2012) के दायरे में न आएं.
डॉ. देसवाल का कहना है, “हालांकि अदालतों ने ऐसे मामलों में नरम रुख अपनाया है, जहां कानून को सहमति से बने संबंधों में लागू किया गया था, लेकिन पॉक्सो जैसे कठोर कानूनों की मौजूदगी में अदालतों के पास ज्यादा कुछ करने को नहीं है. जजों ने ऐसे मामलों में फर्क किए जाने की जोरदार वकालत की है, जहां सेक्स बराबर की उम्र के बच्चों के बीच उत्सुकता का नतीजा है या शोषण में किया गया है.”
दुनिया के सभी देशों में सहमति की सबसे कम उम्र नाइजीरिया में 11 साल है. दक्षिण अफ्रीका और यूनाइटेड किंगडम जैसे दूसरे कई देश हैं जहां उम्र 16 साल है. जापान में यह 13 साल है जबकि बहरीन में 21 साल है.
डॉ. देसवाल कहती हैं, “अमेरिका के कुछ राज्यों में रोमियो एंड जूलियट कानून लागू होता है, जिसके तहत नाबालिगों में सहमति से सेक्स में उम्र का अंतर 3 या 4 साल से ज्यादा होने पर ही सजा दी जाती है. यह एक अच्छा उदाहरण है जिसे दूसरे देशों को भी अपनाने की जरूरत है क्योंकि इससे उन मामलों को अलग करने में मदद मिलेगी, जहां बच्चों का दुष्कर्मियों, उन पर असर रखने वाले व्यक्तियों द्वारा शोषण किया जाता है, या फिर बच्चों द्वारा उत्सुकतावश या कुछ नया करने के लिए सेक्स किया जाता है.”
लेकिन ऐसे भी लोग हैं जिनका कहना है कि 18 साल भी काफी नहीं हैं, और सहमति की उम्र को बढ़ाकर 21 साल किया जाना चाहिए.
दिल्ली की मनोवैज्ञानिक मिताक्षरा मेधी कहती हैं, “मेरा मानना है कि सहमति की उम्र बढ़ाकर 21 की जानी चाहिए. इसकी वजह यह है कि 18 साल की उम्र में हम सुरक्षित सेक्स संबंधों की बारीकियों को समझने, वास्तविक सहमति देने और अपने सेक्स पार्टनर के शारीरिक आराम का ख्याल रखने के लिए पर्याप्त परिपक्व नहीं हैं.”
“यह 18 साल की उम्र के सभी लोगों को अपरिपक्व माने जाने के बारे में नहीं है, बल्कि इसकी ज्यादा संभावना के बारे में है. बेशक, यहां बताई गई घटनाएं किसी भी उम्र में हो सकती हैं, और हमें फिर भी समझने में समय लग सकता है. लेकिन इस बात की संभावना ज्यादा है कि 21 साल की उम्र तक, आपको सेक्स गतिविधियों की बेहतर समझ हो सकती है. अगर आप 18 साल की हैं, तो आप अवांछित गर्भधारण जैसी स्थितियों का भी जरा बेहतर तरीके से सामना कर सकती हैं.”
लेकिन डॉ. देसवाल का कहना है कि पाबंदी लगाने का उलटा असर हो सकता है.
डॉ. देशवाल कहती हैं, “ हम अलग नहीं हैं. हमें संरक्षण-आधारित नजरिये के बजाए अधिकार-आधारित नजरिये को अपनाने की जरूरत है जिसमें कृत्य का ज्ञान, इसकी तर्कसंगत समझ, किस सीमा तक संबंध बनाना है इसकी मर्जी और पसंद की आजादी से सहमति के कारक निर्धारक हों.”
वह किसी की जो भी वैवाहिक स्थिति हो या माता-पिता की सहमति हो या ना हो, इसके बावजूद स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति सरकार की जिम्मेदारी की ओर इशारा करती हैं. इसमें यौन संबंधों से होने वाली बीमारियों की रोकथाम और इलाज भी शामिल होना चाहिए.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: 29 Jan 2021,04:15 PM IST