8 अगस्त को, भारत की सबसे बड़ी फूड डिलीवरी कंपनियों में से एक जोमैटो ने अपनी महिला और ट्रांसजेंडर कर्मचारियों के लिए साल में 10 दिन के ‘पीरियड लीव’ (पीरियड में छुट्टी) का ऐलान किया.

जोमैटो के को-फाउंडर और सीईओ ने दीपिंदर गोयल ने इसे "विश्वास, सच और स्वीकार्यता की संस्कृति को बढ़ावा देने” वाला कदम बताया.

उन्होंने एक पत्र में लिखा,

“पीरियड लीव के लिए आवेदन करने में कोई शर्म या कलंक (महसूस) नहीं होना चाहिए. आपको इंटरनल ग्रुप, या ईमेल पर लोगों को ये बताने के लिए स्वतंत्र महसूस करना चाहिए कि पीरियड लीव पर हैं.”
दीपिंदर गोयल

इस कदम ने तारीफें बटोरीं, कई हस्तियों, एक्टिविस्टों ने भी इसका स्वागत किया.

लेकिन दूसरी ओर, कुछ आलोचकों ने सुझाव दिया कि इस प्रावधान का दुरुपयोग किया जा सकता है और महिला कर्मचारियों के ‘दायरे को सीमित' कर सकता है.

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आइए थोड़ा पीछे चलें.

जुलाई 2017 में, जब कल्चर मशीन मीडिया प्राइवेट लिमिटेड - एक भारतीय कंपनी ने अपनी सभी महिला कर्मचारियों के लिए पीरियड के पहले दिन की छुट्टी की घोषणा की (आपका बहुत-बहुत धन्यवाद). देर से ही सही लेकिन ये चीज हमारे देश में पहुंची. कंपनी ने अपने यूट्यूब चैनल 'ब्लश'(Blush) पर एक वीडियो भी डाला - जिसमें ह्यूमन रिसोर्सेज प्रेसिडेंट देवलीना एस मजूमदार को कहते हुए देखा जा सकता है-

“विचार ये था कि हमारे द्वारा बनाए गए कंटेंट के लिए मुख्य ऑर्गेनाइजेशनल मूल्यों को व्यवस्थित करना. पहला दिन जाहिर तौर पर ज्यादातर महिलाओं के लिए इतना आरामदेह दिन नहीं होता. इस समय हम वास्तविकता का सामना करते हैं. ये कोई शर्मिंदगी नहीं है. ये जीवन का एक हिस्सा है.”

शुक्र है कि किसी ने तो महिला के शरीर में घटित होने वाली नियमित (या नहीं!) घटना को भय या शर्मिंदगी से अलग कर, जो आमतौर पर इससे जुड़ी होती है, मेनस्ट्रीम में लेकर आया.

इस डर और शर्मिंदगी को रोकना होगा. लेकिन क्या ये इतना आसान था! क्या महिलाओं के लिए नए नियम की शुरुआत हुई है? मैंने इंटरनेट ट्रोल को लैपटॉप पर टाइप करते देखा - "यू फेमिनाजी, और, पुरुषों के बारे में क्या ...? ’

कुछ अनुमानित प्रतिक्रियाओं के बीच, यहां पीरियड से जुड़े कुछ मिथ हैं जिन्हें तोड़ने की जरूरत है:

“छुट्टी नहीं लेने वाली महिलाएं सैनिक हैं”

आपको जानने और याद रखने की जरूरत है. हर महिला को ऐसा दर्द नहीं होता कि वो पास रखे तकिये को भींच ले. कई महिलाओं के लिए ये थोड़ा असहज कर देने वाला और सोने के समय में थोड़ी गड़बड़ी पैदा करने वाला हो सकता है.

लेकिन, कम से कम तीन-चौथाई महिलाओं को पीरियड के दौरान कभी ना कभी दर्द होता है, और 10 में से एक महिला को इतना बुरा दर्द होता है कि वे महीने में एक से तीन दिन तक डेली एक्टिविटी को अंजाम नहीं दे सकतीं. ये एक ऐसी स्थिति है जिसे 'डिसमेनोरिया' कहा जाता है - दुनिया भर के स्त्री रोग विशेषज्ञ इस कंडीशन की पुष्टि करते हैं.

एक दिन की छुट्टी यानी वन-डे लीव पॉलिसी इन महिलाओं के लिए डिजाइन की गई है - वे महिलाएं जो पूरी रात ऐंठन(क्रैंप्स) के साथ जागती हैं, जो कैब के लेट आने पर खीझती हैं क्योंकि, वो वास्तव में पेन किलर का आखिरी जार खत्म कर रही होती है.

महिलाओं को दो ग्रुप में मत बांटें - कि कुछ महिलाओं को छुट्टी की जरूरत होती है और जिन महिलाओं को जरूरत नहीं है वो सैनिक हैं. अगर आप ऐसा करते हैं, तो आप स्टिग्मा को बढ़ावा दे रहे हैं.

महिलाएं इसका इस्तेमाल गलत तरीके से छुट्टी लेने के लिए करेंगी

क्या आप सच में ऐसा सोचते हैं? चाहे आप एक पुरुष कर्मचारी हों या महिला कर्मचारी, आपके पास पहले से ही ऐसा करने की क्षमता है - आपके पास सिक लीव(Sick leave) होता है.

पीरियड लीव के नाम पर 'आधिकारिक' छुट्टी ये सुनिश्चित करेगा कि महिलाएं अपने नियोक्ताओं को सच्चाई बता सकती हैं.

कोरिया टाइम्स (एक देश जहां कई वर्कप्लेस पर पीरियड लीव दी जाती है) में एक अहम लेख इस रुख को और साफ करता है.

महिला कार्यकर्ता हर महीने पीरियड्स के दौरान होने वाले दर्द के लिए एक दिन की छुट्टी लेने की हकदार हैं, लेकिन पुरुष-प्रधान कार्यस्थलों में उस अधिकार का इस्तेमाल करने वाली महिलाएं कम ही हैं. वे जिस वास्तविकता का सामना करती हैं वो कठोर है. उन्हें अपने पुरुष बॉस को ये बताने के लिए बहुत साहस चाहिए कि वे अपनी सिक लीव का इस्तेमाल पीरियड्स के दौरान होने वाली ऐंठन(क्रैंप्स) के लिए करेंगी.[…]

दरअसल, इसे छिपा कर हम स्टिग्मा को और मजबूत करते हैं लोगों को ये कहने का मौका देते हैं कि "हम इस बारे में बात नहीं करते हैं, क्योंकि पुरुषों को ये समझ में नहीं आता है."

और ऐसा भी किसने कहा है कि वर्कप्लेस पर नियम सिर्फ एक जेंडर के सहूलियत के हिसाब से बनेंगी?

अगर पुरुषों को पीरियड्स होता तो भी ऐसे ही आवाज बुलंद होती?

ग्लोरिया स्टीनम ने शानदार और तंज करते हुए लिखा है: “If Men Could Menstruate” "अगर पुरुषों को मासिक धर्म होता." इसमें उन्होंने एक ऐसी दुनिया की कल्पना की, जहां पुरुष स्लैंग ("अरे यार, मैं रग पर हूं!") के जरिये इसका वर्णन, बीयर पर इसे डिस्कस कर सकते - क्योंकि ये एक पुरुष की समस्या है. उनका मानना है कि ऐसा इसलिए होता क्योंकि पुरुष पावर पोजिशन पर होते हैं. तो हां अगर ऐसा होता तो, पीरियड्स के आसपास बातचीत एंपावर्ड यानी सशक्त हो सकती.

तो पीरियड लीव पॉलिसी आखिर महिलाओं के लिए क्या कर पाएगी?

'महीने के उस समय' के बारे में झूठ बोलना या फुसफुसाना नहीं पड़ेगा.

ये पॉलिसी इस सच को प्रमाणित करती है और इसे वर्कप्लेस, वर्कफोर्स के बीच नाम देती है. पीरियड से जुड़े स्टिग्मा को तोड़ती है. जो बिना शर्म के आपको पैंट्री में एक कप कॉफी बनाने और ये कहने में सक्षम करता है कि, "मैंने पीरियड ऑफ लिया है."

(ये लेख पहली बार 10 जुलाई 2017 को प्रकाशित हुआ था और इसे FITअर्काइव से अनुवाद कर दोबारा प्रकाशित किया जा रहा है.)

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Published: 13 Aug 2020,06:38 PM IST

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