मेडिकल जर्नल लांसेट में छपी स्टडी के मुताबिक गरीब देश मोटापा और कुपोषण के रूप में दोहरी चुनौती का सामना कर रहे हैं.

रिसर्चर्स का कहना है कि कम और मध्यम आय वाले देशों को कुपोषण के साथ मोटापे पर भी काबू पाने की जरूरत है.

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) में डिपार्टमेंट ऑफ न्यूट्रिशन एंड डेवलपमेंट के डायरेक्टर डॉ फ्रांसेस्को ब्रांका ने इस रिपोर्ट पर कहा, "अब हम ये नहीं कह सकते हैं कि कुपोषण सिर्फ गरीब देशों में है और ना ही ये कह सकते हैं कि मोटापा सिर्फ अमीर देशों की समस्या है."

ऐसा अनुमान है कि दुनिया भर में 2.3 अरब बच्चे और व्यस्क ओवरवेट हैं और 15 करोड़ से अधिक बच्चों का सही ढंग से विकास नहीं हो पाया है.

कुपोषण और मोटापे का दोहरा बोझ विशेष रूप से उप-सहारा अफ्रीका, दक्षिण एशिया, पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में आम पाया गया.

रिसर्चर्स के मुताबिक लोगों के खाने-पीने, काम करने, आने-जाने, खाली समय बिताने के तरीकों में आया बदलाव इसकी वजह है.

अल्ट्रा प्रोसेस्ड खाने की चीजें ज्यादा मिलना और खाने-पीने की ताजी चीजों के बाजार में कमी समस्या की वजह बन रही है.

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इस रिपोर्ट में बताया गया है कि मां के कुपोषित या मोटापे का शिकार होने से नवजात की सेहत खराब हो सकती है. इसलिए कुपोषण और मोटापे की समस्या आने वाली पीढ़ी भी प्रभावित हो सकती है.

अच्छी क्वालिटी वाला भोजन हेल्दी ग्रोथ, इम्यूनिटी, सही ढंग से विकास के साथ मोटापे से बचाता है और गैर-संचारी रोगों से जीवन भर रक्षा करने के साथ कुपोषण का रिस्क घटाता है.

इस रिपोर्ट में नवजात को मां का दूध पिलाने, फलों, सब्जियों, व्होल ग्रेन, फाइबर, मेवे और बीज से भरपूर डाइट पर जोर दिया गया है. इसके अलावा प्रोसेस्ड मीट, शुगर, सैचुरेटेड फैट, ट्रांस फैट और नमक वाली चीजों का कम से कम सेवन करना जरूरी माना गया है.

(इनपुट: WHO)

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