शाहीन का जन्म लॉकडाउन से ठीक पहले 12 मार्च 2020 को हुआ. शाहीन की मां शबनम, अपनी बेटी को बुरी नजर से बचाने के लिए (उत्तर भारत में प्रचलित अंधविश्वास) आंखों में काजल और माथे पर काला टीका तो लगाती हैं, लेकिन बीमारियों से बचाने वाला एक भी टीका सात महीने की शाहीन को नहीं लगवाया गया है.

शाहीन को टीका न लगवाने की वजह पूछने पर यूपी के बाराबंकी ज‍िले के भ‍िटौली कलां गांव की रहने वाली शबनम (26) ने कहा, "शाहीन के पापा ने साफ मना किया है कि उसे कोई टीका नहीं लगेगा. अभी पड़ोस में एक बच्चे को टीका लगाया गया तो उसे उल्‍टी-दस्‍त होने लगे थे. इसलिए वो डर गए हैं कि शाहीन की भी तबीयत खराब हो जाएगी."

गांव की आशा बहू संगीता देवी (36) ने बताया, "शाहीन को टीके न लग पाने के पीछे दो मुख्य कारण हैं. एक तो लॉकडाउन और दूसरा जब मई से टीकाकरण शुरू हुआ तो वो कोरोना की वजह से टालते रहे और बाद में टीका लगवाने से मना कर दिया. अब हम रोज उन्हें टीका लगवाने के लिए मना रहे हैं."

शाहीन की तरह उत्तर प्रदेश में एक साल से कम उम्र के 3.25 लाख बच्चे और लगभग 4 लाख गर्भवती महिलाएं हैं, जो लॉकडाउन की वजह से टीकाकरण से छूट गए थे.

राज्य में एक से 15 अक्टूबर तक चलाए गए दस्तक अभियान के दौरान ये आंकड़े सामने आए. इस दौरान आशा वर्कर्स और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने घर-घर जाकर टीकाकरण से छूटने वालों की लिस्ट बनाई.

अब 2 नवंबर से एक विशेष टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है. जनवरी तक चलने वाले इस अभियान में इन छूटे हुए बच्‍चों और महिलाओं को टीके लगाए जाएंगे.

यूपी के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य के अपर मुख्य सचिव अमित मोहन प्रसाद ने 17 अक्‍टूबर को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "इस अभियान के तहत रूटीन में हो रहे टीकाकरण के अलावा हफ्ते में एक दिन और टीकाकरण का काम किया जाएगा."

क्यों जरूरी है टीकाकरण?

टीकाकरण से देश के स्वास्थ्य आंकड़ों पर काफी बड़ा असर पड़ा है. यूनिसेफ के अनुसार भारत का नियमित टीकाकरण कार्यक्रम 2.7 करोड़ शिशुओं और 3 करोड़ गर्भवती महिलाओं तक पहुंचा है और इससे हर साल भारत में 400,000 बच्चों की जान बची है.

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार टीकाकरण की वजह से पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में काफी कमी आई है. 1990 में पांच साल से कम उम्र के 33 लाख बच्चों की मृत्यु हुई जो कि 2015 तक (टीकाकरण की वजह से) घटकर 12 लाख रह गई.

टीकाकरण से किसी व्यक्ति में बीमारियों से लड़ने के ल‍िए प्रतिरोधक क्षमता विकसित की जाती है. जैसे बच्‍चों को जन्‍म से एक साल के अंदर अंदर बीसीजी का टीका द‍िया जाता है. यह टीका बच्‍चे को टीबी से बचाता है. ऐसे ही बच्‍चों को उम्र के हिसाब से अलग-अलग टीके लगाए जाते हैं ज‍िससे उनका शरीर अलग-अलग रोगों के लिए प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर सके. इसके अलावा गर्भवती महिलाओं को भी टेटनस और डिप्थीरिया के टीके लगाए जाते हैं.

दुनिया भर में टीकाकरण अभ‍ियान चलाया जाता है और हर देश अपने यहां की बीमारियों के हिसाब से टीके लगाते हैं.

भारत में गर्भवती महिलाओं को टीके लगाने से शुरुआत होती है और बच्‍चे के जन्‍म से लेकर 16 साल तक अलग-अलग टीके लगाए जाते हैं.

इसमें बीसीजी, ओरल पोलियो वैक्सीन, हैपेटाइटस बी, डीपीटी, इनएक्टिवेटिड पोलियो वैक्‍सीन, रोटावायरस, खसरा, रूबेला, टेटनस और डिप्थीरिया जैसे टीके शामिल हैं.

कोरोना की वजह से नियमित टीकाकरण प्रभाव‍ित

टीकाकरण का काम हर साल की तरह इस बार भी चलता लेकिन कोरोना और लॉकडाउन की वजह से यह बुरी तरह प्रभाव‍ित हुआ.

लोकसभा में 18 सितंबर 2020 को कोविड की वजह से टीकाकरण कार्यक्रम प्रभावित होने से जुड़ा एक सवाल पूछा गया. इसके जवाब में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने बताया, "हेल्‍थ मैनेजमेंट इंफॉर्मेशन सिस्‍टम के मुताबिक, अप्रैल से जून 2020 तक 44.13 लाख से अध‍िक बच्‍चों का पूर्ण टीकाकरण हुआ, वहीं 2019 में अप्रैल से जून के बीच 58.14 लाख से अध‍िक बच्‍चों को पूर्ण टीकाकरण हुआ था."

लोकसभा में 18 स‍ितंबर 2020 को कोविड की वजह से टीकाकरण प्रभाव‍ित होने से जुड़ा एक अन्‍य सवाल भी पूछा गया. इसके जवाब में अश्विनी कुमार चौबे ने कहा,

हेल्‍थ मैनेजमेंट इंफॉर्मेशन सिस्‍टम के मुताबिक कोविड की वजह से पिछले साल के मुकाबले इस साल अप्रैल से जून के बीच हेल्‍थ सेंटर में होने वाले टीकाकरण सत्र और बाहर होने वाले टीकाकरण सत्र में 31% की ग‍िरावट आई है. इसके अलावा बच्‍चे के जन्‍म के वक्‍त लगने वाले हेपेटाइट‍िस-बी के टीके में 19.4% की गिरावट आई है.

कोरोना की वजह से टीकाकरण के सत्र में गिरावट की बात यूपी में नियमित टीकाकरण के महाप्रबंधक मनोज कुमार शुक्‍ला भी मानते हैं.

वो बताते हैं, "अप्रैल में पूर्ण रूप से लॉकडाउन था, इसकी वजह से टीकाकरण सत्र नहीं लगे. बाद में मई से सत्र लगने शुरू हुए, लेकिन कंटेनमेंट जोन में नहीं लग पाए. इसके अलावा किसी सब सेंटर की एएनएम (सहायक नर्स मिडवाइफ) ही पॉजिट‍िव हो गई तो वहां टीकाकरण सत्र नहीं लग पाया. ऐसे में हम टीकाकरण सत्र लगा रहे थे, लेकिन 100% नहीं लगा पा रहे थे, हालांकि अब सब ठीक हो रहा है."

गोरखपुर के भैंसाबाजार उप केंद्र में लगा टीकाकरण सत्र. (फोटो: रणव‍िजय सिंह)

अप्रैल में टीकाकरण की रफ्तार धीमी होने की बात 20 सितंबर 2020 को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने राज्‍यसभा में भी कही थी. उन्‍होंने कहा, "कोविड की शुरुआत यानी अप्रैल 2020 में टीकाकरण कार्यक्रम की रफ्तार धीमी हुई थी, हालांकि बाद में कुछ ऐसे उपाय किये गए जिससे कवरेज बढ़ा है."

राज्यसभा में पेश आंकड़ों के मुताबिक, यूपी में जनवरी से अगस्त 2020 तक करीब 27.7 लाख बच्चों का टीकाकरण किया गया. यह 73.8% कवरेज है. इसी तरह देश में 1.2 करोड़ बच्चों का टीकाकरण किया गया. यह 68.5% कवरेज है.

हालांकि यह आंकड़े जनवरी से अगस्‍त तक के हैं, जबकि टीकाकरण के आंकड़े व‍ित्‍त वर्ष के हिसाब से देखे जाते हैं, यानी अप्रैल से मार्च तक. ऐसे में कवरेज का प्रतिशत वित्‍त वर्ष में देखने पर कम होगा क्‍योंकि कोव‍िड के बीच हर महीने पिछले साल की अपेक्षा कम टीकाकरण हो रहे हैं.

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यूपी नेशनल हेल्‍थ मिशन के ट्विटर हैंडल से साझा की गई जानकारी के मुताबिक, जुलाई 2019 में 4.64 लाख बच्‍चों का पूर्ण टीकाकरण किया गया था. वहीं, कोरोना के बीच जुलाई 2020 में 4.18 लाख बच्‍चों का पूर्ण टीकाकरण किया गया है. इसके अलावा टीकाकरण सत्र में भी थोड़ी सी ग‍िरावट देखने को मिलती है. जुलाई 2019 में 1.99 लाख टीकाकरण सत्र लगाए गए. वहीं, जुलाई 2020 में यह कम होकर 1.62 लाख रह गए.

"कोव‍िड के बीच भी हमारे सत्र लगातार चल रहे हैं, यह एक अच्‍छी बात है. अभी तक पूर्ण टीकाकरण का 70% के आसपास कवरेज हो गया है. कोरोना के खतरे और डर की वजह से लोग टीकाकरण सेंटर आने से बच रहे थे. ऐसे में हमने दस्‍तक अभ‍ियान चलाकर छूटे हुए बच्‍चों और महिलाओं की सूच‍ि बना ली है. अब नवंबर से जनवरी तक इनका टीकाकरण किया जाएगा. हर हफ्ते बुधवार और शनिवार को टीकाकरण सत्र लगते आए हैं. इन छूटे हुए बच्‍चों और महिलाओं के लिए हफ्ते में एक द‍िन और टीकाकरण की व्‍यवस्‍था की गई है," यूपी में नियमित टीकाकरण के महाप्रबंधक मनोज कुमार शुक्‍ला ने कहा.

कोरोना के अलावा भी टीकाकरण से बचते हैं लोग

मनोज शुक्‍ला यह भी बताते हैं कि कोरोना के अलावा भी बहुत से ऐसे कारण हैं जिसकी वजह से बच्‍चे टीकाकरण से छूट जाते हैं. जैसे - मां-बाप का बच्‍चों को टीका लगवाने से डरना. कई बच्‍चों को घर से किसी दूसरी जगह ले जाया गया होता है. कई लोग टीका लगवाने से साफ इनकार कर देते हैं.

“हम बच्‍चों को लेफ्ट आउट और ड्रॉप आउट में बांटते हैं. लेफ्ट आउट का मतलब है ज‍िसे एक भी टीका नहीं लगा है और ड्रॉप आउट का मतलब है ज‍िसे टीके लगे हैं, लेकिन काई खास टीका छूट गया है. हम इस हिसाब से बच्‍चे को मॉनिटर करते हैं और फिर उनका टीकाकरण होता है. टीकाकरण को लेकर कोई डर नहीं होना चाहिए. यह बच्‍चों की बेहतरी के ल‍िए है. अगर टीकाकरण नहीं कराएंगे तो उनके लिए ज्‍यादा नुकसान होगा.”
मनोज शुक्‍ला

"मेरे उपकेंद्र में 16 बच्‍चे छूटे थे. नवंबर से इनको टीका लगेगा. इसमें से कोई भी लेफ्ट आउट नहीं है, सारे ड्राप आउट बच्‍चे हैं. कुछ बच्‍चों को एक टीका लगवाने के बाद मां-बाप कहीं लेकर चले गए थे तो कोई कोरोना की वजह से नहीं आया था. अब हर हफ्ते सोमवार को अलग से इनका टीकाकरण होगा," गोरखपुर ज‍िले के खजनी ब्‍लॉक के भैंसा बाजार उपकेंद्र की हेल्‍थ विजिटर देवकी शुक्‍ला (47) कहती हैं.

गोरखपुर के एक उपकेंद्र में लगा टीकाकरण सत्र(फोटो: रणव‍िजय सिंह)

देवकी शुक्‍ला बताती हैं कि अप्रैल में जब लॉकडाउन लगा था, उसके बाद वो धीमे-धीमे करके बच्‍चों का टीकाकरण कराती गईं, यही वजह है कि कोई भी ऐसा बच्‍चा नहीं है ज‍िसे एक भी टीका नहीं लगा हो. ऐसे में उनकी लिस्‍ट में लेफ्ट आउट बच्‍चों की संख्‍या शून्‍य है.

देवकी शुक्‍ला की तरह ही बाराबंकी के भ‍िटौली कला गांव की आशा बहू संगीता देवी ने भी धीमे-धीमे करके गांव के सभी बच्‍चों का टीकाकरण करा दिया. हालांकि उनकी लिस्‍ट में दो ऐसे बच्‍चे हैं जो उनकी चिंता बढ़ा रहे हैं. इसमें शाहीन (7 महीने) का नाम है ज‍िसकी कहानी आपने शुरू में पढ़ी, दूसरा नाम इनायत (11 महीने) का है.

इनायत का जन्‍म दिसंबर 2019 में हुआ. परवीन (25) और इस्‍लामुद्दीन (28) का यह पहला बच्‍चा है. जनवरी में बीसीजी का टीका लगाने के बाद से परवीन और इस्‍लामुद्दीन बच्‍चे को आगे के टीके लगवाने से इनकार रहे हैं. जब परवीन से पूछा गया कि टीके क्‍यों नहीं लगवा रही? इसके जवाब में वो कहती हैं, "टीका लगने के बाद बच्‍चा रोने लगता है, मुझसे देखा नहीं जाता. पिछली बार बुखार भी आ गया था."

परवीन को टीकाकरण के लिए समझाती आश बहू संगीता देवी.(फोटो: रणव‍िजय सिंह)

जब हम परवीन से बात कर रहे थे तो गांव की आशा बहू संगीता देवी भी वहीं मौजूद थीं. परवीन का जवाब सुनकर संगीता उन्हें समझाने की कोशिश करती हैं. "टीका बच्चे की भलाई के लिए है. अगर बुखार आता भी है तो उसकी भी दवा हम देंगे. बच्चे को टीका नहीं लगवाओगी तो कोई भी सरकारी सुविधा नहीं मिलेगी. टीका लगवाना बहुत जरूरी है," संगीता ने परवीन से कहा.

परवीन और इस्‍लामुद्दीन का परिवार गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करता है. आशा बहू की इस बात से परवीन टीका लगवाने को तैयार हो जाती हैं. हालांकि आशा बहू संगीता को अब भी भरोसा नहीं कि वो बच्‍चे को टीका लगवाएगी. "बहुत समझाना पड़ता है. थोड़ा डराते हैं कि राशन रोक दिया जाएगा, सरकारी सुविधाएं नहीं मिलेगी, लेकिन फिर भी कोई असर नहीं होता. अभी टीका लगवाने के लिए हां बोल दी है, लेकिन जब सत्र लगेगा तो बच्‍चे को लेकर गायब हो जाएगी," संगीता कहती हैं.

परवीन और इस्‍लामुद्दीन की तरह देश में बहुत से ऐसे मां-बाप हैं जो बच्‍चों को टीका लगवाने से बचते हैं. टीका लगवाने से इनकार करना उन चुनिंदा वजहों में से एक है ज‍िसकी वजह से टीकाकरण अभ‍ियान अपने लक्ष्‍यों को हासिल नहीं कर पाता.

प‍िछले साल लोकसभा में इस बारे में एक सवाल पूछा गया कि आखिर क्‍या वजह है कि देश में लाखों की संख्‍या में बच्‍चे पूर्ण टीकाकरण से छूट जाते हैं?

इसके जवाब में 6 दिसंबर 2019 को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने लोकसभा में कहा,

“हेल्‍थ मैनेजमेंट इंफॉर्मेशन सिस्‍टम के मुताबिक, 2018-19 में पूर्ण टीकाकरण का कवरेज 87% था. यानी 13% (34.16 लाख) बच्‍चों को या तो आंशिक रूप से टीका लगाया गया या यह पूरी तरह से टीकाकरण से वंचित रह गए. इसकी मुख्‍य वजह है कि लोगों में जागरुकता और जनकारी की कमी, टीका लगने से बच्‍चों पर होने वाले असर से डर, बच्‍चे कहीं यात्रा कर रहे हों, टीका लगवाने से इनकार कर देना.”

कोविड से दुनिया भर में टीकाकरण प्रभाव‍ित विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन और यूनिसेफ ने इस साल जुलाई में टीकाकरण को लेकर एक चेतावनी जारी की. इसके मुताबिक दुनिया भर में जीवनरक्षक टीके प्राप्त करने वाले बच्चों की संख्या में बहुत अध‍िक गिरावट आई है. कोविड की वजह से बच्‍चों तक टीकाकरण सेवाएं पहुंचाने में दिक्‍कतों का सामना करना पड़ रहा है.

वहीं, डब्ल्यूएचओ के डायरेक्‍टर जनरल डॉ टेड्रॉस एडहॉनम गीब्रियेसुस ने भी टीकाकरण कार्यक्रम के प्रभावित होने पर चिंता जाहिर की है. "टीके सार्वजनिक स्वास्थ्य के इतिहास में सबसे शक्तिशाली उपकरणों में से एक हैं और पहले से कहीं अधिक बच्चों का अब टीकाकरण किया जा रहा है, लेकिन माहामारी ने टीकाकरण के उन लाभ को ही जोखिम में डाल दिया है. नियमित टीकाकरण से छूटे हुए बच्चों की वजह से होने वाली तकलीफ और मौत कोविड-19 से कहीं बड़ी हो सकती है, लेकिन जरूरी नहीं कि ऐसा हो. महामारी के दौरान भी टीके सुरक्षित रूप से वितरित किए जा सकते हैं और हम इन आवश्यक जीवन रक्षक कार्यक्रमों को सुनिश्चित करने के लिए देशों से बात कर रहे हैं," डॉ टेड्रॉस एडहॉनम गीब्रियेसुस ने कहा.

(रणविजय सिंह, लखनऊ में स्वतंत्र पत्रकार हैं. इनके काम के बारे में और जानकारी यहां ली जा सकती है.)

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Published: 13 Nov 2020,04:23 PM IST

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