फैट (वसा) को आमतौर पर मोटापे या बढ़ते वजन, दिल की बीमारियों से जोड़ा जाता है. अगर आपको लगता है कि फैट तो हमारे लिए बुरा होता है और जितना हो सके, इससे परहेज करना जरूरी है, तो ये भी जान लीजिए कि प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट की तरह ही वसा भी जरूरी पोषक तत्वों में से एक है, जिसकी शरीर को जरूरत होती है.
न्यूट्रिशनिस्ट, डाइटिशियन और फिटनेस एक्सपर्ट मनीषा चोपड़ा बताती हैं, "वसा हमारे आहार में ऊर्जा का केंद्रित रूप होता है. तेल, घी जैसी चिकनी चीजों में फैट होता है, जो पानी में घुलते नहीं हैं."
पारस हॉस्पिटल में चीफ डाइटिशियन नेहा पठानिया बताती हैं:
खाने की चीजों से हमें मुख्य रूप से 3 तरह के फैट मिलते हैं:
मनीषा चोपड़ कहती हैं कि अनसैचुरेटेड फैट को गुड फैट माना जाता है.
गुरुग्राम के कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल डाइटिशियन शालिनी गर्विन ब्लिस बताती हैं कि वजन बढ़ने, आर्टरीज में फैट जमा होने और दूसरी कई बीमारियों के रिस्क के लिए सभी फैट को दोष दिया जाता है, लेकिन हमें पता होना चाहिए कि आर्टिफिशियल ट्रांस फैट और सैचुरेटेड फैट से जोखिम होता है.
दरअसल हमारा सबसे बड़ा दुश्मन ट्रांस फैट है. हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के मुताबिक ट्रांस फैट वाली चीजें खाने से बैड कोलेस्ट्रॉल (LDL-लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन) बढ़ता है और गुड कोलेस्ट्रॉल (HDL- हाई डेंसिटी लिपोप्रोटीन) घटता है. इसका संबंध दिल की बीमारियों, स्ट्रोक, डायबिटीज और दूसरी बीमारियों के रिस्क से है.
डेनमार्क, अमेरिका, ब्रिटेन, स्विट्जरलैंड और कई देशों में इसके आधिकारिक इस्तेमाल पर पाबंदी है. लेकिन भारत और दूसरे दक्षिण एशियाई देशों में ट्रांस फैट खाने की ज्यादातर चीजों में होता है. जैसे वनस्पति जिसका ज्यादातर रेस्टोरेंट और स्ट्रीट फूड में इस्तेमाल होता है. हम जो पैकेटबंद चिप्स, नमकीन खाते हैं, उनमें ट्रांस फैट मौजूद होता है.
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन ने साल 2023 तक खाने की चीजों में औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस फैट को हटाने का लक्ष्य रखा है.
वहीं सैचुरेटेड फैट रेड मीट, दूध, दूध के प्रोडक्ट्स, चीज़, नारियल का तेल और केक, पेस्ट्री जैसे कई फूड आइटम में होता है. क्या हमें सैचुरेटेड फैट बिल्कुल नहीं लेना चाहिए?
कुछ रिपोर्ट में सैचुरेटेड फैट और हार्ट डिजीज में संबंध बताती हैं. वहीं 21 अध्ययनों के एक मेटा-विश्लेषण में कहा गया था कि यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं मिले कि सैचुरेटेड फैट से दिल की बीमारियों का रिस्क बढ़ता हो, लेकिन यह भी माना गया है कि सैचुरेटेड फैट की जगह पॉलीअनसैचुरेटेड फैट हृदय रोग के जोखिम को कम कर सकती है.
इसीलिए एक्सपर्ट्स सैचुरेटेड फैट की मात्रा सीमित करने की सलाह देते हैं.
आपके लिए रोजाना जरूरी कुल कैलोरी में से 20% से 35% कैलोरी वसा से मिलनी चाहिए.
फिटनेस एक्सपर्ट मनीषा चोपड़ा कहती हैं कि फैट की सही मात्रा कैलोरी की जरूरत या वजन मेंटेन करने की जरूरत पर निर्भर करती है.
वहीं आपको ध्यान रखना है कि ट्रांस फैट बिल्कुल न लिया जाए, सैचुरेटेड फैट सीमित किया जाए और अनसैचुरेटेड फैट (मोनोअनसैचुरेटेड और पॉलीअनसैचुरेटेड फैट) शामिल किया जाए.
नेहा पठानिया सलाह देती हैं, "कोशिश करनी चाहिए कि सैचुरेटेड फैट से रोजाना जरूरी कुल कैलोरी का 10% से कम लिया जाए. दिल की बीमारियों का रिस्क कम से कम करने के लिए टोटल डेली कैलोरी में सैचुरेटेड फैट 7% से कम होना चाहिए."
फैट प्लांट और एनिमल दोनों सोर्स से मिल सकता है.
प्लांट सोर्स- वेजिटेबल कुकिंग ऑयल, मेवा, कोकोनट मिल्क
एनिमल सोर्स- दूध, अंडा, घी, मछली, मक्खन, क्रीम
फैटी एसिड के सबसे अच्छे सोर्स- एवोकैडो, ऑलिव ऑयल, मेवा, बीज और फैटी फिश हैं.
इसलिए खाने में ऑलिव ऑयल, मूंगफली का तेल, कैनोला ऑयल (सफेद सरसों का तेल), सूरजमुखी का तेल, कॉर्न ऑयल, फैटी फिश जैसे सैमन, मैकेरल, एवोकैडो, मेवे जैसे अखरोट, बीज जैसे अलसी के बीज शामिल करना अच्छा होगा.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: 01 Sep 2020,03:43 PM IST