देर से बिस्तर में पड़ी मैं जान रही हूं कि मेरी घड़ी की सुइयां मेरे सोने के समय से बहुत आगे निकल चुकी हैं. लेकिन फिर भी मैं सो नहीं पा रही हूं.
नींद से बोझिल पलकों को झपका-झपका कर नींद से लड़ रही हूं. मैं अभी भी सोने के लिए तैयार नहीं हूं.
आखिरकार यही इकलौता वक्त है, जब मैं अपने साथ हूं. तो क्या हुआ अगर मैं इसे सोशल मीडिया को खंगालने या यू-ट्यूब पर बेमकसद वीडियो देखने में खर्च करूं?
मैं इस बात से पूरी तरह वाकिफ हूं कि ऐसी रातों में मैं जो कर रही हूं, वह पूरी तरह वक्त की बर्बादी है. लेकिन चलो ठीक है. यह दिन का इकलौता समय है, जो मुझे ‘बर्बाद’ करने के लिए मिलता है.
मुझे पता चलता है कि मेरी यह आदत इतनी आम है कि इसे एक नाम भी दिया गया है.
इसे ‘रिवेंज बेडटाइम प्रोक्रैस्टिनेशन’ या प्रतिशोध में नींद के समय को टालना कहा जाता है, और शायद आप यह जाने बिना भी करते हैं कि आप ऐसा कर रहे हैं.
यूएस नेशनल स्लीप फाउंडेशन के अनुसार पागलपन भरी लगने वाली इस शब्दावली का मतलब थके हुए होने के बावजूद मस्ती के लिए देर तक जागे रहना है- जिसमें बहुत ज्यादा आपका फोन पर लगे रहना भी शामिल है.
नींद को टालने का मसला नया नहीं है. ‘हालांकि रिवेंज बेडटाइम प्रोक्रैस्टिनेशन’ एक इंटरनेट मुहावरा है, जिसे पहली बार 2016 में चीन में इस्तेमाल किया गया था, लेकिन यह टिकटॉक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिये दुनिया में फैल गया है.
तो हमें उस नींद की कुर्बानी के लिए कौन सी बात प्रेरित करती है, जिसके बारे हम जानते हैं कि हमारे शरीर को उसकी सख्त जरूरत है?
न्यूरोलॉजी एंड स्लीप सेंटर दिल्ली में सीनियर न्यूरोलॉजिस्ट और स्लीप स्पेशलिस्ट डॉ. मनवीर भाटिया फिट से बात करते हुए इसके लिए दो खास वजहें बताती हैं.
हम ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि हममें से कई लोगों के लिए जब हम रात में बच्चों को सुलाने के बाद काम पूरा कर लेते हैं, यही वह समय होता है जब हम ‘खुद से’ रूबरू होते हैं और यह हमें आजादी व सुकून देता है.
हम अगले दिन के बारे में भी सोचते हुए सोना टालते हैं, जो अपने साथ वही रूटीन और पागलपन लेकर आने वाला है क्योंकि जितनी जल्दी आप सोएंगे, अगला दिन उतनी ही जल्दी आएगा.
वह बताती हैं, “चाहे सोशल मीडिया हो या टीवी शो और फिल्में, उपभोग किए जाने वाले कंटेंट की निरंतरता और बहुतायत है, जो बिंज-वाचिंग को बढ़ावा देती है.”
वह आगे कहती हैं, “लेकिन इसे मजबूत सेल्फ-मोटिवेशन और अनुशासन से दूर किया जा सकता है.”
यहां एक मनोवैज्ञानिक अवधारणा इंटेंशन-एक्शन गैप भी काम करती है.
आसान शब्दों में कहें तो इंटेंशन-एक्शन गैप का मतलब आपके इरादों का अमल में नहीं आना है.
यह आमतौर पर एक्सरसाइज और हेल्दी फूड जैसे सेहत को लेकर किए जाने वाले व्यवहार में देखा जाता है— जैसे कि आप जानते हैं कि शुगर आपके लिए नुकसानदायक है, लेकिन आप खुद को केक का एक और टुकड़ा खाने से रोक नहीं पाते हैं.
यह रुझान काफी समय से है, लेकिन महामारी में इसे नई जिंदगी मिल गई है, जहां वर्क फ्रॉम होम ने काम और निजी जिंदगी के बीच के फर्क को धुंधला कर दिया है.
नींद की थोड़ी मात्रा भी खोना आपकी सोच से ज्यादा नुकसानदायक हो सकता है.
जानबूझकर देर से सोना इन्सोमनिया (अनिद्रा) जैसी बीमारी नहीं है, बल्कि यह लगातार नींद की कमी और इससे पैदा होने वाली सभी समस्याओं का कारण बन सकता है.
नींद की कमी के कुछ नतीजों में शामिल हैं-
दिन के दौरान सामान्य समझ और सतर्कता में कमी
दिल से जुड़ी समस्याएं
वजन बढ़ना
डायबिटीज का जोखिम बढ़ना
हार्मोन असंतुलन
इम्यूनिटी में कमी
मानसिक बीमारियां होने का खतरा बढ़ना
अध्ययनों में यह भी पाया गया है कि गहरी नींद डिमेंशिया से बचाने में मदद कर सकती है.
क्या आपने कभी सोचा है कि अगर आप यह सोच कर देर तक जागते हैं कि हफ्ते के अंत में देर तक सोकर इसकी ‘भरपाई’ लेंगे, तो शायद आपको दोबारा सोचने की जरूरत है.
डॉ. भाटिया कहती हैं, “आप नींद की मात्रा की भरपाई कर सकते हैं, लेकिन नींद की उस क्वालिटी की भरपाई नहीं हो सकती, जिसकी आपको जरूरत है.”
डॉ. भाटिया बॉडी-सन-सोशल क्लॉक या सर्कैडियन रिदम और तीनों का तालमेल बिगड़ने से होने वाले असर की बात करती हैं.
हमारा शरीर हजारों सालों से इस तरह विकसित हुआ है कि इन ‘नाइट हार्मोंस’ का बनना सूरज और रोशनी से तय होता है.
यहां तक कि एक दिन भी नींद न लेना आपके शरीर पर तबाही भरा असर डाल सकता है. अगले दिन आपका शरीर स्ट्रेस हार्मोंस रिलीज कर आपको सतर्क रखने के लिए ग्लूकोज मेटाबॉलिज्म में कटौती कर नींद की कमी के प्रति प्रतिक्रिया करता है.
बर्कले की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में अमिग्डला (डर और एंग्जाइटी के लिए जिम्मेदार दिमाग का हिस्सा) में उन प्रतिभागियों में बढ़ी हुई गतिविधि पाई गई जिन्होंने एक रात की नींद नहीं ली थी. यह सभी प्रतिभागी नौजवान, स्वस्थ और वयस्क थे.
फिट के लिए लिखे एक लेख में इरा अस्पताल के जूनियर डॉक्टर और शोधकर्ता डॉ. फैज अब्बास आबिदी बताते हैं कि देर से सोने से किस तरह मेलाटोनिन रिलीज में कमी आ सकती है, जिससे एजिंग और ट्यूमर बनने, आंत की फैट और हृदय की गतिविधियां बढ़ सकती हैं.
डॉ. भाटिया कहती हैं,
आसान शब्दों में कहा जा सकता है कि नींद T सेल्स और साइटोकिंस जैसे एंटीबॉडी के उत्पादन को बढ़ाती है, जो इन्फ्लेमेशन और बीमारी से लड़ने में मदद करते हैं.
वह इस बात पर भी जोर देती हैं कि रात की एक अच्छी नींद की कमी का नुकसान झपकी या ‘भरपाई’ वाली नींद से वापस नहीं पाई जा सकती है.
हम सभी जानते हैं कि हर रात 8 घंटे की नींद जरूरी मानी जाती है. लेकिन पूरी नींद लेने के लिए नींद को टालने की आदत और अपने ‘मेरा टाइम’ की ख्वाहिश को छोड़ना सुनिश्चित करने के लिए आप क्या करेंगे?
खुद को तैयार करें
स्लीप स्पेशलिस्ट डॉ. निशी भोपाल का कहना है कि सबसे पहले खुद को तैयार करना होगा. “याद रखें कि आपको सब कुछ रोजाना करने की जरूरत नहीं है. ऐसे दिन हो सकते हैं, जब आपको ज्यादा समय तक काम करना पड़े या कई काम एक साथ करने पड़ें, लेकिन ऐसा लगातार नहीं होना चाहिए.”
काम और निजी जिंदगी के बीच ‘कट ऑफ’
“महामारी में अब घर और दफ्तर के बीच कोई फर्क नहीं रहा और ऐसा कोई आना-जाना नहीं है, जो आपके काम और निजी जिंदगी के बीच ‘कट ऑफ’ के तौर पर काम करता हो.”
वह कहती हैं इस वजह से “इरादतन काम से अलग होना और उन सीमाओं को बनाए रखना जरूरी है.”
थकान दूर करने वाला रूटीन रखें
डॉ. भाटिया का सुझाव है कि इस ‘कट ऑफ’ के लिए काम खत्म करने और सोने के समय के बीच थकान दूर करने वाला रूटीन अपनाई जा सकती है.
फोन और दूसरे गैजेट्स का इस्तेमाल बंद करें
“सोने से कम से कम पौने एक घंटे पहले फोन और दूसरे गैजेट्स का इस्तेमाल बंद कर दें.”
इस पर ध्यान दें
डॉ. भाटिया शुरू में ही कम नींद के पैटर्न को पकड़ने के महत्व पर जोर देती हैं. “यह जरूरी है कि ऐसा महीनों या सालों तक न चलने दें. अगर आपके लिए इनमें से कोई भी उपाय काम नहीं करता है, तो किसी प्रोफेशनल से मिलें.”
वह आगे कहती हैं “लेकिन किसी भी हालत में आपको शराब, स्लीपिंग पिल्स या कोई और चीज लेकर खुद का इलाज नहीं करना चाहिए.”
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Published: 16 Jun 2021,06:08 PM IST