बॉलीवुड अभिनेत्री करीना कपूर खान ने पिछले हफ्ते अपनी दूसरी प्रेग्नेंसी का ऐलान किया. करीना, 39 साल की हैं, ऐसी कई महिलाओं में से एक हैं जिन्होंने अपनी जिंदगी में देर से गर्भधारण का विकल्प चुनती हैं, जिसे ‘एडवांसमेटरनल एज’ (देरी से मातृत्व की उम्र) के रूप में जाना जाता है.
इस बदलाव की अनगिनत वजहें हो सकती हैं कि क्यों कुछ महिलाएं 30 के बजाय अब 40 के दशक का चुनाव कर रही हैं. इनमें से कुछ वजहें हो सकती हैं- महिलाएं अपने शरीर और जीवन पर अधिकार हासिल कर रही हैं; वे अपनी वित्तीय और भावनात्मक स्थिरता को प्राथमिकता दे रही हैं, और गर्भनिरोधक तक उनकी बेहतर पहुंच है.
लेकिन क्या बायोलॉजी इस ‘उम्रदराज और समझदार’ सोच का साथ देती है? क्या आपका उम्र के 40वें पड़ाव के आसपास प्रेग्नेंट होना सुरक्षित है?
डॉक्टर हमें बायोलॉजिकल प्रक्रियाओं और देर से प्रेग्नेंसी को लेकर गलत धारणाओं के बारे में बता रही हैं.
आसान शब्दों में कहें, तो महिलाएं अपनी ओवरी (अंडाशय) में कई लाख एग्स के साथ पैदा होती हैं. जैसे-जैसे उम्र बढ़ती हैं, इन एग्स की संख्या के साथ ही साथ इनकी क्वालिटी में भी गिरावट आती है. आपकी ओवरी में जितने कम एग्स होंगे, गर्भधारण की संभावना उतनी ही कम होगी.
दिल्ली के फोर्टिस लाफेमे(Fortis LaFemme) में प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग की एसोसिएट डायरेक्टर डॉ. मधु गोयल का कहना है,
अपोलो फर्टिलिटी, बैंगलोर में रिप्रोडक्टिव मेडिसिन विभाग में इनफर्टिलिटी स्पेशलिस्ट डॉ. संगीता आनंद बताती हैं कि ऐसा कैसे होता है, “रेस्टिंग पूल से आने वाले फोलिकल्स जो बड़े आकार के फोलिकल्स के रूप में विकसित होते हैं (जो एग्स को रिलीज करते हैं) 35 साल की उम्र तक बढ़ते रहते हैं. इससे पहले रोजाना औसतन 30-40 फोलिकल्स बनते हैं. लेकिन 35 साल की उम्र के बाद रिजर्व पूल में बड़े पैमाने परगिरावट आती है, जिससे प्रेग्नेंसी की संभावना कम हो जाती है.
वो कहती हैं, “लेकिन ये याद रखना चाहिए कि 35 साल सभी के लिए बेंचमार्क नहीं है और सबके अनुभव अलग हैं. कुछ महिलाओं में 30 या 31 साल में और दूसरों में यहां तक कि 38 साल के बाद कम रिजर्व हो सकते हैं. इसलिए, 35 साल कोई पक्की संख्या नहीं है.”
रिजर्व पूल में कमी के साथ एग्स की क्वालिटी में गिरावट आती है, जिसका असर भ्रूण में असामान्य क्रोमोजोम्स, IVF में दिक्कतें और गर्भपात की ज्यादा संभावना के तौर पर दिख सकता है.
ये जटिलताएं थायराइड, हाइपरटेंशन, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और ज्यादा वजन जैसी स्वास्थ्य समस्याओं से बढ़ सकती हैं. लेकिन इन जोखिमों की मौजूदगी के बावजूद जरूरी टेस्ट और कदम उठाकर समय पर पता लगाया जा सकता है और ठीक किया जा सकता है.
डॉ. मधु गोयल FIT को बताती हैं, “प्रेग्नेंसी के जोखिम जो अलग-अलग मेडिकल कंडीशन से जुड़े हैं, उम्र बढ़ने के साथ-साथ और भी बढ़ जाते हैं. इनमें हाइपर टेंशन, डायबिटीज, ब्लड प्रेशर के साथ दूसरी कंडीशन शामिल हैं.”
डॉ. आनंद सुझाव देती हैं कि 40 के करीब पहुंच रही महिलाओं को गर्भधारण से पहले अपना BMI, थायराइड और वजन की जांच जरूर करा लेनी चाहिए. वो कहती हैं, “प्रेग्नेंसी से पहले वजन और मोटापे पर नजर रखना और नियंत्रण में रखना सबसे जरूरी है. एक बार प्रेग्नेंट होने के बाद, जेशटेशनल डायबिटीज से होने वाली हाइपरटेंशन का खतरा ज्यादा होता है, जिससे ऐसी महिलाओं को अविकसीत या समय-पूर्व बच्चा हो सकता है.”
अगर किसी निश्चित समस्या का शक है, तो महिला के लिए नॉन-इनवेसिव टेस्ट या एमनियोसेंटेसिस की सिफारिश की जाएगी. एमनियोसेंटेसिस 100% सटीक है लेकिन इसमें गर्भपात का जोखिम भी है, इसलिए लोग आमतौर पर नॉन-इनवेसिव टेस्ट का चुनाव करते हैं.
भले ही इस आयुवर्ग की महिलाओं के लिए न्यूकल ट्रांसल्यूसेंसी स्कैन और डबल मार्कर टेस्ट जरूरी है, लेकिन ये अब सभी प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए रुटीन जांच का हिस्सा है.
अगर कोई दंपत्ति स्वाभाविक रूप से कोशिश करने के बाद भी एक साल तक प्रेग्नेंसी नहीं हो पाए, तो उन्हें परामर्श के लिए डॉक्टर के पास जाना चाहिए- भले ही महिला 35 साल से कम उम्र की हो.
40 साल की हो रही महिलाओं के लिए, डॉक्टर AMH ब्ल्ड टेस्ट के बाद उनके ओवेरियन रिजर्व के आधार पर भविष्य के टेस्ट के कदम उठाने की सिफारिश करेंगे.” डॉ. आनंद बताती हैं, “अगर ये जरूरत से कम है, तो हम उन्हें स्वाभाविक रूप से गर्भधारण के लिए इंतजार करने को नहीं कहते हैं. चूंकि रिजर्व में उम्र के साथ गिरावट आती है, इसलिए हम इसे खत्म नहीं होने दे सकते. इसके बजाय, हम उन्हें वैकल्पिक उपायों की सलाह देते हैं, जैसे समयबद्ध इंटरकोर्स द्वारा ओवुलेशन इंडक्शन, जिसमें महिला को ओरल दवाएं दी जाती हैं, उन्हें फोलिकल और एग ग्रोथ पर निगरानी रखने और फर्टाइल पीरियड के दौरान इंटरकोर्स करने के लिए कहा जाता है. इससे एक महीने में प्रेग्नेंसी की संभावना 10-12% बढ़ जाती है.
हालांकि, ये पता होना चाहिए कि उम्र के साथ, IVF में इंप्लांटेशन की नाकामी का जोखिम ज्यादा होता है. उदाहरण के लिए, द न्यूइंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में छपी स्टडी में पाया गया कि जिन महिलाओं ने आर्टिफीशियल इनसेमिनेशन (कृत्रिम गर्भधारण) लिया, उनमें 31 साल से कम उम्र की 74 प्रतिशत महिलाएं एक साल के अंदर गर्भवती हो गई थीं. ये आंकड़ा 31 से 34 साल की उम्र के बीच गिरकर 61 प्रतिशत तक हो गया, और 35 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं में 54 प्रतिशत तक आ गया.
हालांकि उम्र से जुड़े जोखिम की संभावना है, लेकिन इसको सही देखभाल और डॉक्टरी निगरानी से नियंत्रित किया जा सकता है. डॉ. संगीता आनंद का कहना है, “35 से ऊपर के हर शख्स को समस्या नहीं होगी. हां, संभावनाएं थोड़ी अधिक हैं, यही वजह है कि जटिलताओं को, अगर वे आती हैं, समय पर पहचानने के लिए हमें ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है.”
डॉ. मधु गोयल का कहना है, “अगर आप 35 साल की उम्र के बाद अपनी प्रेग्नेंसी की योजना बनाती हैं, तो आपको घटी हुई फर्टिलिटी और प्रेग्नेंसी की जटिलताओं से जुड़े जोखिमों के बारे में पता होना चाहिए.”
वो आगे कहती हैं, “लेकिन इस अतिरिक्त सावधानी और जागरूकता के अलावा, एक स्वस्थ प्रेग्नेंट महिला में उसके 30 की उम्र से पहले और 40 की उम्र से पहले होने में कोई अंतर नहीं है.”
कुल मिलाकर सार-संक्षेप ये है: अपेक्षाकृत ज्यादा जोखिम के बावजूद, 35 से ऊपर की अधिकांश महिलाएं बिना किसी परेशानी के अपनी प्रेग्नेंसी के साथ आगे बढ़ती हैं. सिर्फ डॉक्टर की निगरानी में होना और अपनी सेहत को दुरुस्त रखना जरूरी है.
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Published: 22 Aug 2020,03:20 PM IST