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World Mental Health Day 2023: 10 अक्टूबर को वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे है. आज के समय में मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्याएं जैसे डिप्रेशन, एंग्जाइटी और स्ट्रेस के मामले काफी बढ़ गए हैं. बहुत से लोग मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्याओं से पीड़ित हैं. लोगों में थोड़ी जागरुकता आई है लेकिन नई मां बनने वाली महिलाओं में होने वाले पोस्टपार्टम डिप्रेशन (Postpartum depression) के बारे में कम लोगों को पता होता है. ऐसे में आइए हम बच्चे के जन्म के बाद नई मांओं में होने वाले पोस्टपार्टम डिप्रेशन पर बात करते हैं....
आजकल की भागदौड़ की जिंदगी में यंग लड़िकयां अपनी लाइफ की हर प्लानिंग पहले से सेट करके रखती हैं. खासकर शहर में रहनेवाली यंग जनरेशन पढ़ाई, नौकरी, शादी, बच्चे सब प्लान करके करते हैं. बच्चे को जन्म देना मां के लिए भी नई जिंदगी है. ऐसे में बच्चे की प्लानिंग करते समय पोस्टपार्टम डिप्रेशन को भी ध्यान में रखना चाहिए.
पोस्टपार्टम डिप्रेशन बच्चे के जन्म के बाद मां को होने वाली मानसिक समस्या है. इसमें सोचने, महसूस करने, या काम करने में नई मां के मन में नेगेटिव भावना आ जाती है. शुरुआत में पोस्टपार्टम डिप्रेशन और सामान्य तनाव और थकावट के बीच अंतर बता पाना बेहद मुश्किल होता है. मां को नेगेटिव फीलिंग्स रोजमर्रा के काम को करने से रोकती हैं.
मां को हर समय उदासी के साथ-साथ नवजात शिशु से लगाव कम महसूस हो तो यह पोस्टपार्टम डिप्रेशन के संकेत हो सकते हैं.
बच्चे को जन्म देने के बाद बहुत सारे हार्मोनल परिवर्तन होते हैं. इस कारण दो तीन बदलाव आते हैं, जैसे
एक तो एक खालीपन आ जाता है क्योंकि 9 महीने तक मां ने बच्चे को अपने पेट में रखा था और अचानक उसके निकल जाने से एक कमी सी लगती है.
डिलीवरी से पहले तक परिवार का सारा ध्यान मां के ऊपर होता है पर, जैसे ही बच्चा पैदा होता है सारा ध्यान बच्चे पर आ जाता है, तो मां एक तरह से नेगेटिव फील करती है.
इस समय शरीर में बहुत सारे हार्मोनल परिवर्तन होते हैं, जिससे बहुत थकान होती है. इंसान को किसी सामान्य सर्जरी या बीमार पड़ने पर भी थकावट हो जाती है और शरीर को रिकवर करने में समय लगता है. लेकिन जब एक बच्चा पैदा होता है, तो मां को अपने साथ बच्चे का भी ध्यान रखना पड़ता है और इस कारण उसे बहुत मेंटल और शारीरिक थकावट होती है.
कोई भी मातृत्व (motherhood) शुरू होने पर नई मां के जीवन में आने वाले बदलावों के बारे में बात नहीं करता है. ऐसे में वो महिला बदली हुई परिस्थितियों का सामना करने के लिए ठीक से तैयार नहीं हो पाती हैं.
प्रेगनेंसी के बाद मानसिक तनाव से जुड़ी समस्याएं आ सकती हैं, जिसे पोस्टपार्टम ब्लूज कहते हैं. लगभग 90% महिलाओं में ये देखा जाता है. हालांकि, कई लोगों को इसके बारे में जानकारी ही नहीं होती है.
लोग शारीरिक बीमारियों के बारे में बात कर लेते हैं लेकिन मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बात करने से लोग कतराते हैं. यहां तक की दूसरे से मदद मांगने में भी शरमाते हैं. एक्सपर्ट का मानना है कि महिलाओं को मानसिक परेशानी होती है तो उन्हें लगता है बाकी दुनिया तो कर रही है पर मैं नहीं कर पा रही तो मुझ में कोई कमी है. इस कारण वे सारी परेशानी मन में ही रख लेती हैं.
उदास और निराश महसूस करना
अत्यधिक चिंता
एंजायटी
अधिक या कम नींद होना
आसपास की चीजों में कोई रुचि नहीं होना
हर जगह दर्द होना
भूख न लगना या अधिक भोजन खाना
परिवार और दोस्तों से दूर रहना
अत्यधिक गुस्सा करना
बच्चे के साथ कोई बॉन्डिंग महसूस न होना
अपने आप को हर समय जज करना
खुद को बुरी मां मानना
पोस्टपार्टम डिप्रेशन के इलाज के लिए दो मेडिकल ऑप्शन हैं. इससे जुझ रही महिलाओं को मेडिकेशन और थेरेपी देकर इलाज किया जाता है.
लक्षण दिखे तो क्या करें?
जब भी पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षण दिखाई दें, तो अपने डॉक्टर से मिलें. डॉक्टर आपके लक्षणों की जांच कर आपको सही मेडिकल सलाह देंगे. अगर उन्हें लगता है कि आप पोस्टपार्टम डिप्रेशन का सामना कर रही हैं, तो वह आपको कुछ दवाइयां भी सजेस्ट कर सकते हैं.
इसके अलावा थेरेपी देकर पोस्टपार्टम डिप्रेशन का इलाज किया जाता है. उनमें साइकोथेरेपी, साइकोएजुकेशन, कॉगनिटिव बिहेवियरल थेरेपी शामिल है. इसके अलावा, सपोर्ट ग्रुप के जरिए भी पोस्टपार्टम डिप्रेशन का उपचार किया जाता है.
आज वर्किंग वीमेन और होम मेकर, दोनों तरह की यंग महिलाओं को कई चुनौतियों से जूझना पड़ता है. आजकल महिलाओं का रोल और जिम्मेदारियां दोनों बढ़ती जा रही है. ऐसे में समझ नहीं आता कि कैसे सारी चीजें मैनेज करें. न्यूक्लियर परिवार के कारण ये परेशानी और बढ़ जाती है. ये सारी बातें तनाव का कारण बनती हैं.
मां को इमोशनल सपोर्ट और आत्मविश्वास दें
बच्चे की देखभाल करके उनकी मदद करें
उसकी मानसिक स्थिति को समझने की कोशिश करें और उनसे बात करें
बच्चे के पालन के लिए एक टीम की तरह काम करें
नकारात्मक विचारों से उन्हें दूर रखें
काउंसलिंग कराएं और साइकोलॉजिकल काउंसलर या डॉक्टर से मदद लें
शुरुआती संकेतों को पहचानने की कोशिश करें
पार्टनर और फैमिली द्वारा भावनात्मक समर्थन डिप्रेशन से बचने में मदद कर सकता है
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