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अगर आप अक्सर बीमार पड़ते रहते हैं या इस बात पर गौर किया है कि एग्जाम टाइम में ही तबीयत हमेशा खराब हो जाती है, तो इसकी वजह आपकी कमजोर इम्यूनिटी हो सकती है और इम्यूनिटी कमजोर होने का कारण तनाव यानी स्ट्रेस हो सकता है.
जी हां, कुछ ऐसा ही कनेक्शन है आपके तन और मन का. तनाव एक नहीं बल्कि तमाम दिक्कतों की वजह बनता है.
यकीन नहीं हो रहा? अब से इस बात पर ध्यान दीजिएगा कि आपको कितना स्ट्रेस होता है और क्या आप उस तनाव को मैनेज करना जानते हैं?
मैक्स सुपर स्पेशएलिटी हॉस्पिटल, साकेत में डिपार्टमेंट ऑफ मेंटल हेल्थ के डायरेक्टर डॉ समीर मल्होत्रा बताते हैं कि ऐसा बिल्कुल होता है. इसकी वजह ये है कि तन और मन के बीच एक लिंक होता है, जो रसायनों, कुछ हद तक हार्मोन और इम्यून सिस्टम द्वारा संचालित होता है. ये सभी एक-दूसरे से जुड़े हैं.
रोगों और शरीर में किसी भी तरह की क्षति के खिलाफ सुरक्षा देने के लिए कोशिकाएं, प्रोटीन और ऊतकों का एक साथ काम से इम्यून सिस्टम बनता है.
शरीर को बैक्टीरिया, वायरस या दूसरे खतरों से बचाने के लिए इम्यून कोशिकाएं ऊतकों और अंगों के अंदर-बाहर मूव करती हैं. इम्यून सेल्स में एक है व्हाइट ब्लड सेल्स यानी श्वेत रक्त कणिकाएं, जो दो तरह की होती हैं: लिंफोसाइट्स और फैगोसाइट्स.
मैक्स हेल्थकेयर में गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट डॉ अश्विनी सेतिया बताते हैं कि कई स्टडीज में ऐसा देखा गया है कि तनाव लेने से शरीर में इंफ्लेमेशन आ जाती है. इंफ्लेमेशन के कुछ मार्कर्स हैं, जिनमें से मुख्य है IL 6, जो कि इंफ्लेमेशन के होते हुए या अगर इंफ्लेमेशन है, तो शरीर में ये बढ़ जाते हैं. इनके कई तरह के इम्यून पाथवेज ऐसे हैं, जिससे ये पता चलता है कि इम्यूनिटी कम हो रही है.
डॉ सेतिया बताते हैं कि चूहों पर एक्सपेरिमेंट से ये पता चला है कि अगर IL 6 ज्यादा होता है, तो anhedonia यानी खुश न रहने की स्थिति होती है. कुछ ऐसे टूल्स के हिसाब से ये पाया गया कि चूहे भी खुश नहीं थे, जब उनमें इंफ्लेमेटरी प्रोटीन डाले गए, जो कि IL 6 को बढ़ा दे रहे थे. लेकिन ये कारण है या प्रभाव है, इसका पता नहीं है.
Current Directions in Stress and Human Immune Function में बताया गया है कि इम्यून सिस्टम के कई पहलू तनाव से जुड़े हैं. कुछ मिनटों के स्ट्रेस यानी एक्यूट स्ट्रेस के दौरान ब्लड में खास किस्म के सेल्स गतिमान होते हैं, ताकि शरीर फाइट या फ्लाइट मोड के दौरान चोट या इंफेक्शन के लिए तैयार रहे. एक्यूट स्ट्रेस से प्रोइंफ्लेमेटरी साइटोकिंस भी बढ़ते हैं, जो इंफ्लेमेशन को बढ़ावा देते हैं.
इसी तरह कुछ दिनों से लेकर सालों तक के तनाव, जिसे क्रोनिक स्ट्रेस कहते हैं, के कारण भी प्रोइंफ्लेमेटरी साइटोकिंस का लेवल बढ़ता है. लेकिन क्रोनिक स्ट्रेस से बढ़े प्रोइंफ्लेमेटरी साइटोकिंस का स्वास्थ्य पर पूरी तरह से अलग असर पड़ता है.
स्टूडेंट के एक ग्रुप पर की गई स्टडी में पाया गया था कि उनकी इम्यूनिटी हर साल एग्जाम के दौरान कमजोर हो जाती है.
डॉ मल्होत्रा बताते हैं, ‘मन की परेशानी का असर तन पर पड़ सकता है और तन की दिक्कतों का असर मन पर पड़ सकता है. इसलिए जब हमारा मन खराब होता है, तो तन पर भी इसके लक्षण दिखाई देते हैं. जैसे घबराहट होने पर दिल की धड़कन तेज हो जाती, सांस उखड़कर-उखड़कर आती है, हाथ-पैर कांपने लगते हैं.’
हास्यासन की अहमियत बताते हुए डॉ अश्विनी सेतिया कहते हैं:
एंटीबॉडीज इंफेक्शन या एलर्जन से लड़ते हैं. ये रक्त में होते हैं. खुश रहने वालों में प्रोटेक्टिव एंटीबॉडीज का लेवल ज्यादा होता है.
अपोलो हॉस्पिटल में सीनियर कंसल्टेंट साइकियाट्रिस्ट डॉ अचल भगत इन टिप्स को अपनाने की बात करते हैं:
एक्टिव रहें: इससे स्ट्रेस लेवल घटाने में मदद मिल सकती है. एक्सरसाइज जरूर करें, भले ही ये आधे घंटे ही हो.
अच्छी नींद लें: पर्याप्त और गहरी नींद से आपको स्ट्रेस से उबरने में मदद मिल सकती है.
संतुलन: हम अक्सर बहुत ज्यादा व्यस्त रहते हैं. अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में अपने लिए वक्त निकालें.
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Published: 13 Mar 2019,09:45 AM IST