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बोर्ड एग्जाम की तैयारी करने वाले बच्चों के लिए ये समय आसान नहीं होता और वो अपनी इस मुश्किल में पैरेंट्स को कतई शामिल करना नहीं चाहते. जबकि पैरेंट्स के लिए स्वभाविक है कि वो अपने बच्चे के लिए अच्छी से अच्छी कोशिश करेंगे. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि कुछ पैरेंट्स इस अहम वक्त के दौरान अपने बच्चों की मदद करने के लिए किसी भी हद तक जाते हैं और नुकसान कर बैठते हैं.
हाल ही में हुए एक सर्वे के मुताबिक भारत में अभिभावकों के दबाव के चलते बच्चों पर तनाव का स्तर पहले से कहीं ज्यादा है. ‘दो-तिहाई (66%) स्टूडेंट ने बताया कि उनके पैरेंट्स बेहतर शैक्षणिक प्रदर्शन के लिए उन पर दबाव डालते हैं.’
मुंबई की एक आत्महत्या रोकथाम हेल्पलाइन समारिटंस हेल्पलाइन की पूर्व सहायक निदेशक फारोख जिजिना, जिन्होंने वहां 12 साल से अधिक समय तक तनाव और चिंताग्रस्त छात्रों को हालात का बेहतर तरीके से सामना करने में मदद की, का कहना है, “पैरेंट्स वह प्रमुख कारण हैं, जिनसे परेशान बच्चे हेल्पलाइन पर कॉल करते हैं. अगर पैरेंट्स अपने बच्चों को धमकाना, धकियाना, दबाव डालना, दूसरों से तुलना करना और उनके माध्यम से अपना जीवन जीना छोड़ दें, तो बच्चे कम तनाव में रहेंगे.”
इसलिए जरूरी है कि पैरेंट्स शांत रहें, मददगार बनें और बच्चों को घर में पढ़ाई के अनुकूल माहौल सुनिश्चित करें. जानिए बच्चों को ऐसी सुविधा देने के लिए काउंसलर क्या सलाह देते हैं.
जब आपके बच्चे के बोर्ड एग्जाम शुरू होने में कुछ ही हफ्ते बचे हों, तो आपका चिंतित होना स्वभाविक है, लेकिन सैंगक्टम काउंसलिंग सर्विसेज, चेन्नई की काउंसलरऔर मनोचिकित्सक स्वप्ना नायर खबरदार करते हुए कहती हैं, “पैरेंट्स की चिंता उनके बच्चे में संचारित हो सकती है.” वो परीक्षा की चिंता को मात देने के लिए इन छह उपायों को अपनाने का सुझाव देती हैं.
याद रखें कि बोर्ड परीक्षा की दहलीज पर खड़ा बच्चा जिम्मेदारी से पढ़ाई करने में सक्षम है. लोग सोचते हैं कि ‘आपको बच्चे के साथ होना चाहिए,’ और ‘उसके रास्ते में रुकावट नहीं बनना चाहिए.’ जिजिना कहती हैं कि सपोर्ट देने का मतलब, “बच्चे के बारे में कोई राय कायम किए बिना, बस उनको सुनना हो सकता है.”
या, इस बारे में अक्सर लिखते रहने वाली सर्टिफाइड काउंसलर और एजुकेटर चंद्रिका आर कृष्णन का मानना है कि- बच्चे को उनकी जरूरत बताने दें.
एक पैरेंट के रूप में जिसने इसका अनुभव किया है, आपके पास ऐसी सलाहों की भरमार होती है जिनसे आपके बच्चे को फायदा होगा. कृष्णन कहती हैं, इन सबको बच्चे पर लागू करने की बजाए अपनी आशंकाओं को उस पर थोपने से बचें.
कृष्णन कहती हैं:
शिक्षिका और पैरेंट अंजना मल्लिक गुप्ता का मानना है कि समाज पैरेंट्स और बच्चों पर दबाव बढ़ाता है. वह कहती हैं,
बच्चों को बोर्ड परीक्षा के नतीजे ठीक नहीं होने पर उनके भविष्य पर पड़ने वाले बुरे नतीजों की याद दिलाने की जरूरत नहीं है, बल्कि उन्हें आश्वस्त करने की जरूरत है कि परीक्षा सिर्फ अंकों के लिए नहीं होती है. यह सीखने और परिपक्व होने के लिए भी है. ऐसा करके आप इन परीक्षाओं के महत्व को कम नहीं कर रहे होंगे, या बच्चों को कम प्रतिस्पर्धी नहीं बना रहे होंगे. आप अपने बच्चे को यह महसूस करने में मदद कर रहे होंगे कि यह भी जीवन के किसी दूसरे हिस्से जैसा ही है.
जिजिना का कहना है कि बच्चे अपनी क्षमताओं, ताकत और सीमाओं के सबसे अच्छे निर्णायक हैं और पैरेंट्स के लिए उनकी सलाह इस तरह है:
बच्चे अपनी खास जरूरतों और सीखने की क्षमता के मुताबिक पहले से ही अच्छी तरह से स्टडी प्लान तैयार कर लेते हैं. सिर्फ इसलिए कि किसी ने आपको वाट्सएप मैसेज भेज कर बताया है कि उसका बच्चा रात-रात भर जाग कर पढ़ रहा है, या उसने एक्सट्रा क्लासेज में दाखिला ले लिया है- इसका मतलब कतई ये नहीं कि आप भी अपने बच्चे के लिए वही सब करने लगें.
कृष्णन बताती हैं कि, “मैं ऐसे पैरेंट्स को जानती हूं, जो यह सुनिश्चित करने के लिए कि उनका बच्चा समय पर पेपर पूरा कर ले, 3 घंटे का पेपर तैयार करते हैं और एक टाइमर भी रखते हैं. धीमी रफ्तार से लिखने वालों को उनके शैक्षणिक जीवन की शुरुआत में प्रोत्साहित करने की जरूरत होती है, न कि तब जब वे परीक्षा देने जाने वाले हैं.”
कृष्णन पैरेंट्स से अनुरोध करती हैं कि सोशल मीडिया के माध्यम से दूसरों से तुलना किए बिना अपने बच्चे की जरूरत के मुताबिक उसके साथ एक स्टडी शेड्यूल बनाएं.
स्वप्ना नायर टोटल कर्फ्यू के खिलाफ हैं, जिसमें टीवी, इंटरनेट या दोस्तों के साथ चैट करने पर एकदम पाबंदी होती है और जो बच्चों पर नकारात्मक असर डाल सकता है या जानबूझकर विद्रोही बना सकता है. वह बच्चों पर भरोसा करने और उन्हें करीबी दोस्तों के साथ जुड़ने की अनुमति देने की सलाह देती हैं, जिनके साथ वे रिवीजन पर चर्चा करते हैं और मदद मांगते हैं. वह जोर देकर कहती हैं,
(लेस्ली डी बिस्वास एक स्वतंत्र लेखिका हैं, जो पैरेंटिंग, पर्यावरण, यात्रा और महिलाओं पर लेख के अलावा फिक्शन लिखती हैं.)
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Published: 10 Jan 2019,02:41 PM IST