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कहावत है कि चिंता चिता के समान है. ये हमारे तन और मन दोनों को प्रभावित करता है और कई बीमारियों का खतरा बढ़ाता है. हाइपरटेंशन या उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure) भी ऐसी ही एक बीमारी है.
हालांकि गलत खानपान, मोटापा और अव्यवस्थित जीवनशैली की वजह से भी हाइपरटेंशन होता है, लेकिन अवचेतन मन पर पड़ने वाला अनावश्यक बोझ हाइपरटेंशन के होने या न होने में अहम भूमिका निभाता है. इसीलिए हमेशा तनाव और चिंता से दूर रहने की सलाह दी जाती है.
वैसे ब्लड प्रेशर एक सामान्य शारीरिक प्रक्रिया है, जो रक्त के प्रवाह में अहम भूमिका निभाता है. लेकिन जब यह प्रेशर कम या ज्यादा होता है तो हाई या लो ब्लड प्रेशर की समस्या होती है.
हाई बीपी का असर दिल पर भी पड़ता है और दिल की बीमारियां होने की आशंका काफी ज्यादा बढ़ जाती है. इसे साइलेंट किलर भी कहते हैं.
हाई बीपी की शुरुआत का मतलब है, कई दूसरी बीमारियों को न्योता देना. लंबे समय तक हाइपरटेंशन रहने की वजह से शरीर के दूसरे अंगों जैसे दिल, किडनी और आंखों पर बुरा असर पड़ता है.
आयुर्वेद में बताए गए तीन नियमों का पालन कर हाइपरटेंशन के खतरे को कम किया जा सकता है.
आइए जानते हैं कि आयुर्वेद की मदद से कैसे हाइपरटेंशन से बचा या उसे नियंत्रित किया जा सकता है.
आयुर्वेद के अनुसार मन बहुत ताकतवर होता है और जिसने इस पर काबू पा लिया वह सारे रोगों से दूर रहता है. इसलिए आयुर्वेद में मन की चिकित्सा के लिए अलग से 'सत्वावजय चिकित्सा' का प्रावधान है जिसके द्वारा मन की समस्याओं को सुलझाया जाता है. इसे आयुर्वेदिक साइकोथेरेपी भी कह सकते हैं.
हाई ब्लड प्रेशर की बड़ी वजह मन की अशांति है. अशांत मन की वजह से ही चिंता, चिड़चिड़ापन और गुस्सा आने की प्रवृति पनपती और समय के साथ बढ़ती जाती है. इसलिए जरूरी है कि मन को शांत किया जाए.
जीवनशैली में स्वस्थ बदलाव और नियमित व्यायाम से भी हाई ब्लड प्रेशर की रोकथाम संभव है. हाई ब्लड प्रेशर का एक बड़ा कारण मोटापा भी होता है. इसलिए एक्सरसाइज के जरिए मोटापे को नियंत्रित करना जरूरी है.
हाई ब्लड प्रेशर के होने में खानपान की भूमिका महत्वपूर्ण है. अमूमन ज्यादा नमक खाने वाले, मांसाहारी भोजन करने वाले, शराब पीने वाले और ज्यादा तेल-मसाले खाने वालों पर हाई ब्लड प्रेशर का खतरा ज्यादा होता है.
डिब्बाबंद और बासी खाने से भी बचने को कहा जाता है. संतुलित और सात्विक भोजन सबसे बेहतर होता है.
हाई ब्लड प्रेशर के रोगियों को अपने खाने में हरी सब्जियों और फलों की मात्रा बढ़ानी चाहिए. हरी सब्जियां और मौसमी फल इसमें बहुत फायदेमंद होते हैं. खाने में लहसुन की मात्रा बढ़ाई जा सकती है. धनिया, गोभी, नारियल का सेवन भी अच्छा है. शहद भी फायदेमंद है. दूध में हल्दी और दालचीनी का प्रयोग करने से लाभ मिलता है. अखरोट, बादाम, अंजीर, किशमिश जैसे मेवे खाना भी फायदेमंद रहेगा.
(लेखक आयुर्वेद के लिए समर्पित 'निरोगस्ट्रीट' के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं. इनसे ram@nirogstreet.com पर संपर्क किया जा सकता है.)
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