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सिर्फ 10 साल की उम्र में चडीगढ़ के निशांत पुरी ने पार्क में महज 5 मिनट टहलने के बाद हांफना शुरू कर दिया. निशांत की मां ने भी यह देखा कि उसे सांस लेने में दिक्कत हो रही है और उसे बहुत पसीना भी आ रहा है. निशांत का वजन 52 किलो था, जो निश्चित ही 4 फीट 2 इंच की लंबाई के किसी बच्चे के हिसाब से ज्यादा थी. उसकी हार्ट बीट भी सामान्य से अधिक थी.
आज के दौर में निशांत जैसे बच्चों की तादाद तेजी से बढ़ती जा रही है.
हम 17 मई को वर्ल्ड हाइपरटेंशन डे मनाते हैं. यह ध्यान रखना जरूरी है कि भारत में बच्चों में हाइपरटेंशन की समस्या तेजी से बढ़ रही है, जिसे लेकर वैज्ञानिक भी चिंतित हैं.
चेन्नई में आयोजित एक स्टडी से पता चला कि 13 से 17 साल के बीच के 21 प्रतिशत बच्चे हाइपरटेंशन, यानी कि हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित हैं.
चंडीगढ़ के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. अनुराग शर्मा कहते हैं
फैक्ट्स के अनुसार, अब यह साफ है कि युवाओं में प्राइमरी हाइपरटेंशन का पता लगाया जा सकता है. हाइपरटेंशन से पीड़ित बच्चों और किशोरों के लिए आगे चलकर स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का खतरा ज्यादा हो सकता है.
बच्चों में हाइपरटेंशन की समस्या ज्यादातर एक जैसी ही होती है. एक ही उम्र, जेंडर और हाइट के करीब 95 प्रतिशत बच्चों में ब्लड प्रेशर लगभग समान होता है. सभी उम्र के बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर को दिखाने के लिये ब्लड प्रेशर रीडिंग करना कोई साधारण लक्ष्य नहीं है, क्योंकि जिसे नॉर्मल ब्लड प्रेशर माना जाता है, वो बच्चों में उम्र बढ़ने के साथ बदलता रहता है.
डॉक्टर अनुराग ने बताया:
हाई ब्लड प्रेशर में जरूरी नहीं है कि हमेशा आपको लक्षण दिखाई दें, लेकिन तब भी यह शरीर को प्रभावित करता है और आगे चलकर व्यक्ति को स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा रहता है. कुछ मामलों में हाई ब्लड प्रेशर सिरदर्द, आंखों की रोशनी पर असर, चक्कर आना, नाक बंद, दिल की धड़कन का तेज होना और मिचली का कारण बन सकता है.
अक्सर हाई ब्लड प्रेशर वाले बच्चों और किशोरों में इसके लक्षण नहीं दिखते. लेकिन इनमें से एक या अधिक लक्षण कॉमन हैं, जैसे सिरदर्द, आंखों की रोशनी में कमी, डबल-विजन, सीने में दर्द, पेट दर्द, सांस लेने की समस्याएं.
उम्र के आधार पर बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर के कारण अलग हो सकते हैं. बच्चा जितना छोटा होगा, उतना ही ज्यादा हाई ब्लड प्रेशर से परेशानी महसूस होगी. बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर मोटापा और पारिवारिक इतिहास की वजह से हो सकता है. साथ ही स्लीप एप्निया यानी के सोने के दौरान सांस लेने में दिक्कत या दूसरे स्लीप डिसऑर्डर भी बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर की वजह हो सकते हैं.
डॉ. जैस्मीन सुंदर कहते हैं, "बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर की वजह जेनेटिक या मेडिकल हो सकती हैं, लेकिन बच्चे को दी गई जीवनशैली भी एक बड़ी वजह हो सकती है.
दक्षिण दिल्ली की रहनेवाली नीना दास कहती है कि ऐसा कहना आसान है, लेकिन करना नही. उन्होंने कहा:
"मुझे जंक फूड के दुष्प्रभावों के बारे में पता है, लेकिन मेरे बच्चे किशोरावस्था में हैं. जिस समय वे टेबल पर करेला या घीया देखते हैं, वो दोनों भाग जाते हैं और पिज्जा ऑर्डर करते हैं. मैं क्या करूं? "
नीना की बातों से निशांत पुरी की मां नीतू भी सहमत हैं और कहती हैं,"अगर मैंने कभी अपने बेटे से पूछा कि वह टिफिन के लिए क्या लेना चाहेगा या खाएगा, तो उसका जवाब बर्गर, पूरी या आलू पराठा या फ्राइड चिकन होता है. आए दिन चक्कर आने की शिकायत के बाद हम उसे डॉक्टर के पास ले गए और वही हुआ, जिसका डर था."
डॉक्टर ने निशांत को अधिक मोटापे और हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित बताया.
अवनि कौल का कहना है, "ये समझना मुश्किल नहीं हैं कि परिवार के लिए उनके बच्चों के खाने और शारीरिक गतिविधि में शामिल होने को लेकर पूर्ण नियंत्रण रखना कितना मुश्किल है. यह तेजी से बढ़ रही एक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है"
स्कूलों के पास हमेशा ऐसे बजट नहीं होते, जिससे स्कूल बच्चों को लंच में फल-सब्जियां मुहैया कराएं और एक्सरसाइज के प्रोग्राम की इजाजत दें.
बच्चों की जीवनशैली में बदलाव करके बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर को रोका जा सकता है. एक ही तरह की जीवनशैली में बदलाव हाई ब्लड प्रेसर के इलाज में मददगार साबित हो सकता है. अपने बच्चे के वजन को नियंत्रित करें, हेल्दी डाइट दें और बच्चे को एक्सरसाइज करने के लिए प्रोत्साहित करें.
अवनि कौल कहते हैं, "मोटापा बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर के लिए सबसे अहम खतरा हो सकता है."
अपने परिवार की जीवनशैली, हेल्थ और डाइट को पूरी तरह से बदलने के बारे में बात करते हुए नीतू पुरी कहती हैं:
हेल्दी डाइट का फॉर्मूला है DASH (डाइटरी अप्रोचेज टू स्टॉप हाइपरटेंशन). इसे हाइपरटेंशन रोकने की डाइट कहा जाता है. इसमें मौसमी फल ,सब्जियां, नट्स, कार्बोहाइड्रेट और कम वसा वाले डेयरी प्रोडक्ट शामिल हैं.
इस तरह की डाइट रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) को कम करने में मदद करती है, क्योंकि इसमें कम नमक और चीनी होता है. अपने डाइट से सोडियम को हटा देना चाहिए. हाई पोटैशियम मैग्नीशियम और फाइबर वाले खाद्य पदार्थ DASH डाइट का हिस्सा हैं. यह डाइट बॉडी में पानी की कमी को भी पूरी करता है.
अवनि कौल कहती हैं:
अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के मुताबिक, प्रतिदिन 2300 मिलीग्राम या इससे कम नमक खाने का लक्ष्य रखना चाहिए, यानी 1 चम्मच नमक. डॉक्टर और न्यूट्रिशनिस्ट की सलाह के आधार पर इसे 1500 मिलीग्राम तक भी कम किया जा सकता है. रोटी, सैंडविच, पिज्जा, रेस्तरां फूड और फास्ट फूड से दूर रहें.
(आरती के सिंह काफी समय से मीडिया से जुड़ी हैं. वह स्वतंत्र लेखक हैं. रेडियो, टीवी और प्रिंट मीडिया में काम करने के बाद अब पीएचडी कर रही हैं. आजकल अपने बेटे की परवरिश कर रही हैं और नई नई चीजें तलाश रही हैं.)
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Published: 23 May 2018,01:14 PM IST