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वैक्सीनेशन या टीकाकरण यह सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण तरीका है कि किसी शख्स को कुछ बीमारियों से जिंदगी भर दूर रखा जाएगा. टीकाकरण बच्चों को कुछ विशिष्ट और गंभीर बीमारियों से बचाता है, जो कि ऐसा नहीं करने पर जिंदगी के लिए खतरा बन सकती हैं.
लेकिन टीकाकरण की प्रक्रिया के बारे में कई गलत धारणाएं और आशंकाएं हैं जैसे कि यह क्यों जरूरी है और एक बच्चे का कब टीकाकरण कराना चाहिए.
इसलिए हमने टीकाकरण को लेकर सारे संदेहों को दूर करने और आपके सभी सवालों के जवाब देने के लिए भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की सचिव सुश्री प्रीति सूदन से संपर्क किया.
टीकाकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत आमतौर पर वैक्सीन देकर किसी व्यक्ति को एक संक्रामक बीमारी के लिए प्रतिरक्षित या प्रतिरोधी बनाया जाता है. टीके बाद में कभी होने की आशंका वाले संक्रमण या बीमारी से बचाव के लिए व्यक्ति के शरीर की अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय कर देते हैं.
टीकाकरण जीवन के लिए खतरा बनने वाले संक्रामक रोगों पर काबू पाने और इसे खत्म करने का एक कारआमद उपाय है और एक अनुमान के मुताबिक इसकी मदद से हर साल 20 से 30 लाख लोगों की मौत टाल दी जाती है.
टीकाकरण कुछ विशिष्ट और गंभीर बीमारियों से बच्चों की रक्षा करता है, जो कि अन्यथा आपके लिए तनाव, चिंता या बच्चे के गंभीर रूप से बीमार होने का कारण बन सकती हैं और संभवतः किसी बीमारी से मौत भी हो सकती है, जिसे सिर्फ एक टीका लगाकर रोका जा सकता था.
यूआईपी (यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम) के तहत, वैक्सीन से रोकी जा सकने लायक 12 बीमारियों को खत्म करने के लिए मुफ्त में टीकाकरण किया जाता है:
आप अपने बच्चों का टीकाकरण कराने के लिए अस्पताल, मेडिकल कॉलेज, शहरी डिस्पेंसरी, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC), सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (CHC), उप-केंद्रों और आंगनबाड़ी केंद्रों सहित किसी भी सरकारी स्वास्थ्य सुविधा केंद्र पर जा सकते हैं. अपने आसपास होने वाले टीकाकरण शिविरों की जानकारी पाने के लिए क्षेत्र की आशा वर्करया एएनएम से संपर्क करें और अपने बच्चों को तयशुदा टीकाकरण कार्यक्रम के अनुसार उन्हें टीक लगवाने के लिए नजदीक के टीकाकरण शिविर में ले जाएं.
टीके बच्चों को सबसे अच्छी सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं, अगर उन्हें सही उम्र में और तय संख्या में खुराक दी जाती है. जीवन की निश्चित अवधि में, किसी खास बीमारी की अधिकतम आशंका होती है. इसलिए, बीमारी के कारण होने वाले नुकसान को रोकने के लिए, उस खास उम्र में टीके लगाए जाते हैं. उदाहरण के लिए 5 साल से कम उम्र के बच्चों में पोलियो के मामले अधिकतम हैं; इसलिए, पोलियो के खिलाफ नियमित टीकाकरण के साथ-साथ 5 साल से कम उम्र के बच्चों का अभियान चलाकर टीकाकरण किया जाता है.
टीके महंगे होते हैं और सरकार इन्हें हर लाभार्थी को मुफ्त में उपलब्ध कराने के लिए काफी पैसा खर्च करती है.
हां. यह सुनिश्चित करने के लिए अभियान चलाया जाता है कि खतरे की सीमा में आने वाले आयु वर्ग के अधिकांश बच्चों को रोग फैलने से रोकने के लिए प्रतिरक्षित किया जाए. इस तरह, भले ही किसी बच्चे को नियमित टीकाकरण में उम्र के हिसाब से तय टीके लगे हों, फिर भी अभियान के दौरान उसे वैक्सीन की “अतिरिक्त” खुराक मिलनी चाहिए. यह बीमारी के खिलाफ बच्चे को अतिरिक्त सुरक्षा भी प्रदान करता है.
मामूली बीमारी (जैसे कि हल्की खांसी और जुकाम, या हल्का बुखार) से पीड़ित बीमार बच्चे को सुरक्षित रूप से इंजेक्शन या ओरल टीके दिए जा सकते हैं. हालांकि, ऐसा बच्चा जिसे कोई गंभीर बीमारी है या अस्पताल में भर्ती है (जैसे तेज बुखार, गंभीर दस्त है) तो उसे तब तक टीका नहीं लगाया जाना चाहिए, जब तक कि उसकी हालत में सुधार न हो जाए.
हर वैक्सीन का रूट अधिकतम सुरक्षा, जो कि जो शरीर में पैदा होगी, का आकलन करने के बाद तय किया जाता है. हर टीका जब इसके विशिष्ट रूट द्वारा दिया जाता है, तभी ये टार्गेटेड पैथोजेन के खिलाफ सुरक्षा देता है. इसलिए अलग-अलग टीके अलग-अलग रूट से दिए जाते हैं.
कुछ बच्चों को कुछ टीकों या किसी विशेष टीके के घटक (जैसे एंटीबायोटिक या प्रिजर्वेटिव) से एलर्जी हो सकती है और ऐसे बच्चों में टीका लगाने से एलर्जी की प्रतिक्रिया हो सकती है, जैसे कि टीकाकरण के तुरंत बाद खुजली होना या शरीर पर लाल धब्बे दिखाई देना. अगर कोई मेडिकल हिस्ट्री है या पिछला टीका लगाने के दौरान इस तरह के लक्षण दिखाई दिए थे, तो वैक्सीन की अगली खुराक देने से पहले हेल्थ वर्कर या डॉक्टर को इसके बारे में बताएं.
(सुश्री प्रीति सूदन मौजूदा समय में भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में सचिव के तौर कार्यरत हैं. इससे पहले वह खाद्य और सार्वजनिक वितरण, उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के तहत खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग की सचिव रह चुकी हैं.)
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Published: 22 May 2019,10:36 AM IST