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जान बचाने के लिए देश खेल रहा 'कौन बनेगा वैक्सीनपति',ये नौबत क्यों?

अमीर देशों ने अपनी आबादी से 2-3 गुना वैक्सीन स्टॉक की थी

वैशाली सूद
फिट
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<div class="paragraphs"><p>भारत की वैक्सीन नीति का फेल होना क्यों तय था?</p></div>
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भारत की वैक्सीन नीति का फेल होना क्यों तय था?

(Photo: iStock)

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भारत के लोग आजकल हर सुबह, दोपहर, शाम और रात अपना स्मार्टफोन/गैजेट उठाकर एक नया पसंदीदा खेल खेलने लगे हैं जिसका नाम है- फास्टेस्ट फिंगर फर्स्ट, मतलब सबसे तेज उंगलियां किसकी चलती हैं इसकी प्रतियोगिता. खेल में पहले से ही तय है कि ज्यादातर लोगों के हाथ हार ही लगेगी. लेकिन जो इस खेल को जीत जाते हैं वो अपने हुनर के कसीदे दुनियावालों को सोशल मीडिया के जरिए बताते रहते हैं. कई सारे टेक्निकल गुरुओं ने इस खेल में फतह हासिल करने के लिए अपने एप खोल लिए हैं. टेलीग्राम से लेकर व्हाट्एस पर आपकी जीत सुनिश्चित कराने के लिए नोटिफिकेशन भेजे जाने की व्यवस्था की गई है.

अगर आप सोच रहे हैं कि ये सब तैयारी कौन बनेगा करोड़पति वाले खेल फास्टेस्ट फिंगर फर्स्ट के लिए हो रही है तो पहले ही साफ कर दें कि ऐसा नहीं है. ये पूरी कवायद हो रही है खुद के लिए वैक्सीन स्लॉट बुक करने के लिए. कोरोना महामारी की दूसरी लहर जब हाहाकार मचा रही है. तब इस वायरस से लड़ाई के रामबाण यानी वैक्सीन पाने के लिए जबरदस्त जद्दोजहद करनी पड़ रही है.

अगर आपके पास स्मार्ट फोन या स्मार्ट डिवाइस नहीं है तो अभी आपको और ज्यादा लंबा इंतजार करना होगा. उम्मीद है कि आपकी बारी भी आ ही जाएगी.

कोर्ट में सरकार की खिंचाई

9 मई को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की खिंचाई की और वैक्सीन पॉलिसी पर फिर से विचार करने के लिए कहा. 9 मई को ही भारत ने एक महीने पहले के मुकाबले सिर्फ आधे लोगों को ही वैक्सीन दी. 5 अप्रैल को भारत ने एक दिन में 43 लाख लोगों को वैक्सीन दी थी. वहीं 9 मई को करीब 20 लाख लोगों को कोरोना वैक्सीन का डोज दिया गया. 9 मई को ही दिल्ली सरकार ने कहा कि उनके पास अब सिर्फ 3-4 दिन के लिए ही वैक्सीन स्टॉक बचा है.

अमीर देशों ने अपनी आबादी से 2-3 गुना वैक्सीन स्टॉक की थी

जनवरी 2021 में जब दुनिया के कुछ अमीर देशों ने अपनी आबादी से दो-तीन गुना वैक्सीन के डोज बुक कर लिए. भारत ने अपनी 140 करोड़ की आबादी के लिए सिर्फ और सिर्फ 1.5 करोड़ वैक्सीन डोज का ऑर्डर दिया.

1 मई से जब हमने अपनी 18-44 साल वाली 59 करोड़ आबादी के लिए वैक्सीनेशन प्रोग्राम शुरू किया, तब हमने करीब 21 करोड़ डोज का ऑर्डर सीरम इंस्टीट्यूट को दिया, 7 करोड़ डोज का ऑर्डर भारत बायोटेक को दिया. इन ऑर्डर्स से ज्यादा से ज्यादा 14 करोड़ लोगों को कोरोना वैक्सीन दी जा सकेगी. वो भी तब जब वैक्सीन वेस्टेज को हटा दिया जाए.

इसमें से सीरम को 11 करोड़ और भारत बायोटेक को 5 करोड़ डोज का ऑर्डर 28 अप्रैल को दिया गया. कंपनियां ये ऑर्डर कम से कम 2-3 महीने में डिलेवर करेंगी.
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वैक्सीन नीति में खामियां

अब इसके बाद भारत सरकार अपनी दोहरी कीमत और खरीद नीति (Dual pricing and procurement policy) के तहत मैन्युफेक्चरर से उपलब्ध वैक्सीन के 50% डोज खरीदेगी, बची हुए वैक्सीन डोज को देश के सारे राज्यों और बड़े कॉरपोरेट हॉस्पिटल्स के बीच बांटा जाएगा.

इसी की वजह से अब तक भारत में सिर्फ और सिर्फ 2% आबादी को कोरोना केदोनों टीके दिए जा सके हैं और 11% आबादी ने वैक्सीन का एक शॉट लिया है. याद रखना चाहिए कि भारत के वैक्सीनेशन अभियान को शुरू होकर करीब 5 महीने हो गए हैं. और हमारे फास्टेस्ट फिंगर फर्स्ट खेल का रोमांच भी बढ़ता ही चला जा रहा है.

क्या हमारे पास दूसरे विकल्प थे?

अर्थशास्त्री बताते हैं कि भारत के पास भरपूर फॉरेक्स रिजर्व हैं. इंडिया रेटिंग की रिसर्च के मुताबिक सरकार जीडीपी का सिर्फ 0.36% लगाकर ही अपनी 18 साल से ऊपर की आबादी को वैक्सीन लगा सकती है.

एक ही कंपनी की वैक्सीन के लिए अलग-अलग दाम होने की सरकारी नीति की वजह से सप्लाई में दिक्कतें आ रही हैं. साथ ही वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों पर छोड़ दिया गया है कि वो अपनी प्राथमिकता अपने हिसाब से तय करें.

भारत सरकार ने बजट में 35 हजार करोड़ रुपये के वैक्सीन फंड का ऐलान किया था, सरकार उस फंड का इस्तेमाल करके देश की करीब 100 करोड़ की आबादी को वैक्सीन दे सकती थी.

सरकार की 'आत्मनिर्भरता' पर चोट नहीं पहुंचती अगर वो अपने कैश रिजर्व का इस्तेमाल करते हुए वैक्सीन के बड़े ऑर्डर दे देती. ऐसा हुआ होता तो आज ये दिक्कत पेश नहीं आती.

कोवैक्सीन को इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी ने मिलकर बनाया है. इसलिए इसका लाइसेंस देश के दूसरे वैक्सीन मैन्युफेक्चरर्स को भी दिया जाना चाहिए था, ताकि देश में तेजी से वैक्सीन तैयार हों. विडम्बना तो ये है कि भारत खुद इस तरह की नीति का विश्व व्यापार संगठन में समर्थन करता है.

भारत वैक्सीन निर्माताओं को छुट-पुट ऑर्डर देने की बजाए, ठोस मात्रा में ऑर्डर दे सकता था. भारत वैक्सीन के रिसर्च और संसाधनों पर पहले से भारी भरकम खर्च कर सकता था. भारत अपने वैक्सीन मैन्युफैक्चरिंग कैपेसिटी को बढ़ाने पर काम कर सकता था.

भारत अपने पूर्व के वैक्सीनेशन अभियान जैसे पोलियो वगैरह के अनुभवों का इस्तेमाल कर सकता था.

भारत कोरोना वायरस महामारी के नियंत्रण और वैक्सीन पॉलिसी के लिए अपने पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट के टैलेंट का इस्तेमाल कर सकता था.

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