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स्‍तन कैंसर के खतरे से अनजान होती हैं ज्‍यादातर ग्रामीण महिलाएं!

ज्यादातर भारतीय महिलाओं को अपने स्तन में होने वाली गांठों का खुद पता लगाने का तरीका नहीं मालूम है.

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ज्यादातर भारतीय महिलाओं को अपने स्तन में होने वाली गांठों का खुद से पता लगाने का तरीका नहीं मालूम है.
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ज्यादातर भारतीय महिलाओं को अपने स्तन में होने वाली गांठों का खुद से पता लगाने का तरीका नहीं मालूम है.
(फोटो: iStock)

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स्वीडन की एक यूनिवर्सिटी की स्टडी में दावा किया गया है कि भारत के ग्रामीण इलाकों में रहने वाली ज्यादातर महिलाओं को स्तन कैंसर की बीमारी की जानकारी ही नहीं है. स्टडी में ये बात सामने आई है कि देश के ग्रामीण इलाकों में महिलाएं स्तन कैंसर के इलाज में काफी देर करती हैं. ज्यादातर मामलों में इसकी वजह है इलाज का महंगा होना.

यह स्टडी स्वीडन में ऊमेओ यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले भारतीय छात्र नितिन गंगाने ने किया है. इस स्टडी में पाया गया कि ज्यादातर भारतीय महिलाओं को अपने स्तन में होने वाली गांठों का खुद पता लगाने का तरीका नहीं मालूम है. गंगाने ने कहा:

‘‘स्तन कैंसर के सफल इलाज के लिए समय रहते उसके बारे में पता चलना अहम होता है. इसलिए महिलाओं को इसके लक्षणों और इसके इलाज के बारे में जागरूक करना बेहद अहम है. अशिक्षा, बीमारी को नजरअंदाज करना, गरीबी और अंधविश्वास की वजह से ग्रामीण इलाकों में रहने वाली कई महिलाएं अस्पताल जाने में बहुत देर कर देती हैं.’’
नितिन गंगाने, छात्र, ऊमेओ यूनिवर्सिटी, स्वीडन
ग्रमीण इलाके की महिलाओं में स्तन कैंसर के प्रति जागरूकता की भारी कमी है.(प्रतीकात्मक तस्वीर: iStock)
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ग्रामीण महिलाओं में जागरूकता की कमी

गंगाने ने मुख्य तौर पर महाराष्ट्र के ग्रामीण जिले वर्धा में महिलाओं पर दो स्टडी की हैं. स्टडी में शामिल महिलाओं में से बमुश्किल ही किसी को खुद परीक्षण करके अपने स्तनों में गांठों का पता लगाने का तरीका मालूम था. इसमें पाया गया कि हर तीसरी महिला ने कभी भी स्तन कैंसर के बारे में नहीं सुना था. दूसरी ओर, काफी महिलाओं ने इसके बारे में और अधिक जानने में काफी रुचि दिखाई.

आमतौर पर इस समस्या के सामने आने पर महिलाएं शुरुआत में ही इलाज नहीं करवाती हैं. स्टडी में इसकी सबसे आम वजह यह पाई गई कि उन्हें स्तन में होने वाली गांठ में कोई दर्द महसूस नहीं हुआ. साथ ही पाया गया कि इसका इलाज महंगा होने की वजह से भी महिलाएं इलाज में देरी करती हैं.

(इनपुट: भाषा)

ये भी पढ़ें - स्तन कैंसर की पहचान के लिए साल में 2 बार करायें MRI

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