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भारत में हार्ट फेलियर सबसे कम पहचानी जाने वाली और सबसे कम जांची जाने वाली स्थिति है. विशेषज्ञों के मुताबिक इसी वजह से ये रोग चुपचाप लेकिन तेजी से रोगियों की जान ले रहा है.
इससे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों तक ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की आपूर्ति घट जाती है. इस स्थिति को ‘इस्केमिक हार्ट डिजीज’ और ‘हार्ट फेलियर' कहा जाता है.
ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल में इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ देवकिशन पहलाजानी के मुताबिक इस्कीमिया का मतलब है 'रक्त आपूर्ति में कमी'.
डॉ देवकिशन कहते हैं कि ये ब्लॉकेज आमतौर पर कोलेस्ट्रॉल और दूसरे पदार्थों के आर्टरी में जमने से होता है. इससे समय बीतने के साथ आर्टरीज अंदर से संकरी हो जाती है और हार्ट में ब्लड का फ्लो आंशिक या पूरी तरह से रुक सकता है.
त्रिवेंद्रम हार्ट फेलियर रजिस्ट्री (टीएचएफआर) ने हाल ही में अस्पताल में भर्ती रोगियों और दक्षिण भारत में हार्ट फेलियर के तीन साल के परिणामों पर एक अध्ययन किया. अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि हार्ट फेलियर से पीड़ित 72 फीसदी रोगियों को इस्केमिक हार्ट डिजीज थी.
इस्केमिक हार्ट डिजीज ने पंजाब, महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल को जकड़ रखा है.
डॉ देवकिशन बताते हैं कि जोखिम के कारकों की बेहतर स्क्रीनिंग और तुरंत तथा पर्याप्त उपचार से बहुत हद तक इसकी रोकथाम की जा सकती है.
नमक के इस्तेमाल पर नियंत्रण, हेल्दी डाइट लेकर, स्मोकिंग छोड़कर, एल्कोहल का सेवन सीमित कर और रूटीन में हल्की-फुल्की शारीरिक गतिविधियों को शामिल कर इसके खतरे को कम किया जा सकता है.
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