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पुनर्नवा के पौधे से किडनी की बीमारियों का इलाज 

पुनर्नवा के पौधे से भारतीय वैज्ञानिकों ने एक दवा तैयार की है.

आईएएनएस
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पुनर्नवा के पौधे से भारतीय वैज्ञानिकों ने एक दवा तैयार की है.
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पुनर्नवा के पौधे से भारतीय वैज्ञानिकों ने एक दवा तैयार की है.
(फोटो: Wikipedia)

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आयुर्वेद में पुनर्नवा पौधे के गुणों का अध्ययन कर भारतीय वैज्ञानिकों ने इससे 'नीरी केएफटी' दवा तैयार की है, जिसके जरिए किडनी (गुर्दे) की बीमारी ठीक की जा सकती है.

गुर्दे की क्षतिग्रस्त कोशिकाएं फिर से हेल्दी हो सकती हैं, साथ ही संक्रमण की आशंका भी इस दवा से कई गुना कम हो जाती है.

‘इंडो-अमेरिकन जर्नल ऑफ फॉर्मास्युटिकल रिसर्च’ में पब्लिश एक रिपोर्ट के मुताबिक पुनर्नवा में गोखुरू, वरुण, पत्थरपूरा, पाषाणभेद, कमल ककड़ी जैसी बूटियों को मिलाकर बनाई गई दवा ‘नीरी केएफटी’ गुर्दे में क्रिएटिनिन, यूरिया और प्रोटीन को नियंत्रित करती है.

क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को स्वस्थ करने के अलावा ये हीमोग्लोबिन भी बढ़ाती है. नीरी केएफटी के सफल परिणाम भी देखे जा रहे हैं.

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) के प्रोफेसर डॉ के.एन. द्विवेदी का कहना है कि रोग की पहचान समय पर हो जाने पर किडनी को बचाया जा सकता है.

कुछ समय पहले बीएचयू में हुए शोध से पता चला है कि किडनी से जुड़ी बीमारियों में नीरी केएफटी कारगार साबित हुई है.

देश में लंबे समय से गुर्दा विशेषज्ञों की कमी बनी हुई है. ऐसे में डॉक्टरों को एलोपैथी के ढांचे से निकलकर आयुर्वेद जैसी वैकल्पिक चिकित्सा को अपनाना चाहिए. आयुर्वेदिक दवा से अगर किसी को फायदा हो रहा है, तो डॉक्टरों को उसे भी अपनाना चाहिए.
डॉ मनीष मलिक, किडनी विशेषज्ञ, सर गंगाराम अस्पताल, दिल्ली

आयुष मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि बीते महीने केंद्र सरकार ने आयुष मंत्रालय को देशभर में 12,500 हेल्थएंड वेलनेस सेंटर की स्थापना करने की जिम्मेदारी सौंपी है. इन केंद्रों पर आयुष पद्धति के जरिए इलाज किया जाएगा. यहां साल 2021 तक किडनी की न सिर्फ जांच, बल्कि नीरी केएफटी जैसी दवाओं से उपचार भी दिया जाएगा.

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उन्होंने ये भी बताया कि गुर्दे की बीमारी की पहचान के लिए होने वाली जांच सभी व्यक्तियों को नि:शुल्क उपलब्ध कराई जाएगी, ताकि मरीजों का शुरुआत में ही इलाज हो सके.

एम्स के नेफ्रोलॉजी डिपार्टेमेंट के अध्यक्ष डॉ एस.के. अग्रवाल ने बताया कि ओपीडी में हर दिन 200 किडनी के पेशेंट पहुंच रहे हैं. इनमें से 70 फीसदी मरीजों की किडनी फेल पाई जाती है. उनका डायलिसिस किया जाता है.

प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांट) ही इसका स्थायी समाधान है. प्रत्यारोपण वाले मरीजों की संख्या भी काफी है. इस समय एम्स में किडनी ट्रांसप्लांट के लिए आठ महीने की वेटिंग चल रही है. यहां सिर्फ 13 डायलिसिस की मशीनें हैं, जो वार्डों में भर्ती मरीजों के लिए हैं. इनमें से चार मशीनें हेपेटाइटिस ‘सी’ और ‘बी’ के मरीजों के लिए हैं. एम्स में सप्ताह में तीन दिन गुर्दा प्रत्यारोपण किया जा रहा है.
डॉ एस.के. अग्रवाल

डॉ अग्रवाल के मुताबिक किडनी खराब होने पर पेशेंट को हफ्ते में कम से कम दो या तीन बार डायलिसिस देना जरूरी है. देश में सालाना 6 हजार किडनी ट्रांसप्लांट हो रहे हैं. इसलिए लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता बेहद जरूरी है.

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Published: 13 Mar 2019,05:34 PM IST

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