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काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) कैंसर, मिर्गी और सिकल सेल एनीमिया (खून की कमी) जैसी बीमारियों के इलाज के लिए भांग के औषधीय इस्तेमाल पर रिसर्च कर रही है.
CSIR और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ इंटीग्रेटिव मेडिसिन (IIIM) के डायरेक्टर डॉ राम विश्वकर्मा ने कहा, "हमें जम्मू-कश्मीर सरकार से शोध कार्यक्रम का संचालन करने का लाइसेंस मिला है. हमने इस पर पहले ही काम शुरू कर दिया है. मानव पर ड्रग के रूप में भांग के उपयोग की मंजूरी के लिए जल्द ही हम ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया से मिलेंगे."
बांबे हेंप कंपनी (बोहेको) के सहयोग से CSIR-IIIM को भांग उगाने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने अप्रैल 2017 में लाइसेंस जारी किया था.
डॉ राम विश्वकर्मा ने बताया कि प्राथमिक तौर पर भांग से मिलने वाली दवा का परीक्षण सबसे पहले मुंबई के टाटा मेमोरियल अस्पताल में किया जाएगा.
बांबे हेंप कंपनी के को-फाउंडर जहान पेस्टोन जामास ने कहा कि मिर्गी जैसे क्रॉनिक रोगों के इलाज में भांग से बनने वाली दवाइयां असरदार साबित हो सकती हैं.
बांबे हेंप कंपनी (BOHECO), CSIR और IIIM की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम के मौके पर जमास ने कहा, "भांग में टेट्रा हाइड्रो कैनाबिनोल (टीएचसी) नाम का एक रसायन होता है, जिससे नशा होता है. इसके अलावा भांग में सारे औषधीय गुण होते हैं.
जमास ने कहा कि दवाई बनाने के लिए भांग की खेती करने की जरूरत है, लेकिन वर्तमान नारकोटिक्स कानून में भांग की पत्ती और फूल दोनों को शामिल किए जाने से इसमें रुकावट आती है.
उन्होंने कहा, "सरकार से हमारी मांग है कि ऐसी नीतियां बनाई जाएं जिससे अनुसंधान के उद्देश्य से भांग की खेती करने की अनुमति हो."
इस मौके पर सांसद डॉ धर्मवीर गांधी ने कहा, "हमारे पूर्वज अनादि काल से भांग और गाजे का सेवन करते आए हैं. यहां तक कि भागवान शंकर को भी भांग चढ़ाया जाता है. इस प्रकार पहले कभी भांग और गांजे के सेवन को लेकर कोई समस्या नहीं आई, लेकिन इस क्षेत्र में माफिया की पैठ होने पर समस्या गंभीर बन गई है. ड्रग माफिया युवाओं में नशाखोरी को बढ़ावा दे रहा हैं."
एनडीपीएस मामलों के विशेषज्ञ और वरिष्ठ वकील प्रसन्ना नंबूदिरी ने कहा, "एनडीपीएस अधिनियम, 1985 की धारा 10 (2) (डी) के तहत जो रोक है, उसके मुताबिक भांग की पैदावार करने वालों को राज्य सरकार के अधिकारियों के यहां भांग को जमा कराना होता है और यह चिकित्सकीय एवं वैज्ञानिक उद्देश्य के लिए भांग के पौधों की पैदावार करने की दिशा में एक बड़ी बाधा है. भांग की खेती करने के संबंध में एनडीपीएस नियम बनाने के मामले में कई राज्य सरकारों की विफलता भी एक बड़ी रुकावट है."
बोहेको की स्थापना 2013 में की गई थी. यह CSIR के साथ साझेदारी में भांग के चिकित्सा और औद्योगिक उपयोग का अध्ययन करने वाला भारत में पहला स्टार्टअप है.
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Published: 24 Nov 2018,11:41 AM IST