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हाल ही में बॉलीवुड एक्ट्रेस सोनाली बेंद्रे ने बताया कि उन्हें एक हाई ग्रेड कैंसर है. अब तक जो जानकारी सामने आई है, उसके मुताबिक सोनाली बेंद्रे को मेटास्टैटिक कैंसर है, जिसका वो न्यूयॉर्क में इलाज करा रही हैं. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि मेटास्टैटिक कैंसर क्या है और इसका इलाज किन-किन तरीकों से किया जा सकता है.
इस बारे में जानकारी दे रहे हैं मेदांता कैंसर इंस्टीट्यूट में रेडिएशन ऑन्कॉलजी के चेयरपर्सन डॉ. तेजिंदर कटारिया.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, पुरुषों को आमतौर पर लंग्स (फेफड़ा), प्रोस्टेट (पौरुष ग्रंथि), कोलोरेक्टल (बड़ी आंत), स्टमक (आमाशय) और लिवर (जिगर) कैंसर होता है, जबकि महिलाओं में ब्रेस्ट (स्तन), कोलोरेक्टल, लंग्स, सर्विक्स (गर्भाशय ग्रीवा), स्टमक और लिवर कैंसर के मामले ज्यादा देखे जाते हैं. हालांकि इनके अलावा भी कई तरह के कैंसर होते हैं, जिनके बारे में लोगों को ज्यादा नहीं पता. ऐसा ही एक कैंसर है, जिसे मेटास्टैटिक कैंसर कहते हैं.
मेटास्टैटिक कैंसर की पहचान करना आसान नहीं है, हालांकि इसे कुछ निशानों और लक्षणों से पहचाना जा सकता है, जैसे:
ये लक्षण मोटे तौर पर इस बात पर निर्भर करते हैं कि मेटास्टैटिक ट्यूमर का आकार क्या है और शरीर में वो किस जगह पर है.
मेटास्टैटिक कैंसर का इलाज अक्सर सामान्य ट्यूमर में किए जाने वाले इलाज से अलग होता है. मेटास्टैटिक कैंसर एक बार फैल जाने के बाद इसको काबू करना मुश्किल होता है. इसका इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि कैंसर कितना फैला है, मरीज की उम्र और उसकी मेडिकल हिस्ट्री क्या है.
ऐसा कहा जाता है कि रेडिएशन और इम्यूनोथेरेपी से कुछ मेटास्टैटिक कैंसर में लंबे समय तक जिंदा रहना मुमकिन है.
ट्यूमर मार्कर का पता लिक्विड बायोप्सी नाम के ब्लड टेस्ट से लगाया जा सकता है. इससे मेटास्टैटिक कैंसर जैसे कि Ca 125, Ca 19.9, CEA, Beta HCG, अल्फा फीटो प्रोटीन, CTC (सर्कुलेटिंग ट्यूमर सेल्स) और खासकर लंग्स कैंसर का पता लगाया जा सकता है. मेटास्टैटिक कैंसर का कई तरह से इलाज किया जा सकता है, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण है कीमोथेरेपी, रेडिएशन, सर्जरी और इम्यूनोथेरेपी.
अगर पहली कीमोथेरेपी दवा हार्मोन थेरेपी के साथ काम करना बंद कर देती है और कैंसर फिर से बढ़ने लगता है, तो दूसरी या तीसरी दवा का इस्तेमाल किया जा सकता है. मेटास्टैटिक ब्रेस्ट कैंसर के लिए कीमोथेरेपी में हर तरह की दवा के उपयोग को इलाज की 'लाइन' कहा जाता है. इसका अर्थ है कि पहली कीमोथेरेपी को 'फर्स्ट लाइन' ट्रीटमेंट और दूसरे को 'सेकेंड लाइन' ट्रीटमेंट कहा जाता है.
रेडिएशन ब्रेन के मेटास्टासेज को नियंत्रित करने और कई बार ठीक करने के लिए एक महत्वपूर्ण इलाज है, क्योंकि यह ब्रेन ट्यूमर में ड्रग्स के प्रवेश के लिए ब्लड-ब्रेन बैरियर को खत्म कर देता है.
जहां कैंसर फैल गया है, रेडिएशन उन स्पॉट को सीमित करने और नियंत्रित करने में मदद कर सकता है. यह दर्द को कम करने में भी मदद करता है, कैंसर से कमजोर हो गए अंगों में हड्डियों के टूटने के खतरे को कम करता है, रक्तस्राव में कमी करता है, अवरुद्ध एयरवेज को खोलकर सांस लेना आसान बनाता है. कसी हुई नसों से दबाव कम करता है, जो दर्द या कमजोरी का कारण हो सकते थे.
मेटास्टासेज के लिए रेडिएशन डोज और शेड्यूल कई कारणों पर निर्भर करता है, जैसे कि हालात की जरूरत, रेडिएशन का दोहराव और चल रहे अन्य इलाज (अगर कोई हो).
मेटास्टैटिक स्पाइनल कॉर्ड कंप्रेशन के मरीजों को डायरेक्ट डिकंप्रेशिव सर्जरी के साथ पोस्ट ऑपरेटिव रेडियोथेरेपी दी जा सकती है, जिससे कि वो सिर्फ रेडियोथेरेपी दिए जाने वाले मरीजों की तुलना में लंबे समय तक चल-फिर सकें.
सॉलिड ट्यूमर इम्यूनोलॉजी पर दशकों के शोध के बाद, अब इम्यूनोथेरेपी मेटास्टैटिक सॉलिड कैंसर वाले मरीजों पर असर दिखा रही है.
इम्यूनोथेरेपी का सबसे प्रभावी तरीका जो मेलानोमा (एक गंभीर स्किन कैंसर) मरीजों में बड़े ट्यूमर को जड़ से नष्ट कर सकता है, वो लिम्फोडेप्लिशन के बाद मरीजों में Adoptive cell transfer (ACT) और TIL (tumor-infiltrating lymphocytes) तकनीक से जुड़ा है.
कैंसर के इलाज में ये थेरेपी ट्यूमर पर असरदार साबित हो रही है. लेकिन इसकी सफलता एंटीजन (शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता उत्पन्न करने वाले अणु) की पहचान पर निर्भर करती है.
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Published: 10 Jul 2018,09:18 PM IST