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MIND डाइट, जिससे घट सकता है डिमेंशिया और अल्जाइमर का खतरा

आप क्या खाते हैं, इसका काफी गहरा असर दिमाग की सेहत पर पड़ता है. 

सुरभि गुप्ता
फिट
Updated:
MIND डाइट एक साइंटिफिक डाइट है, जिसे फायदेमंद पाया गया है.
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MIND डाइट एक साइंटिफिक डाइट है, जिसे फायदेमंद पाया गया है.
(फोटो: iStock\Fit)

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एक स्टडी में पाया गया कि दिमाग के लिए तैयार खास किस्म की डाइट से डिमेंशिया, अल्जाइमर जैसे दिमाग की क्षति का खतरा घट सकता है. 60 साल और इससे ज्यादा की उम्र के 1,220 पर 12 साल तक की गई स्टडी के नतीजे यही बताते हैं. डिमेंशिया से बचाने वाली ये डाइट है, MIND Diet (मेडिटेरियन-DASH इंटरवेंशन फॉर न्यूरोडिजेनरेटिव डिले डाइट).

क्या है MIND डाइट?

Mediterranean-DASH Intervention for Neurodegenerative Delay diet, जिसे आमतौर पर MIND डाइट कहते हैं, दो तरह की डाइट पोर्शन कंबाइन करता है. ये हाइपरटेंशन की रोकथाम के लिए अपनाए जाने वाले DASH डाइट (Dietary Approaches to Stop Hypertension) और मेडिटेरेनियन डाइट को शामिल करता है, लेकिन कुछ बदलावों के साथ.

उदाहरण के तौर पर इसमें मेडिटेरेनियन और DASH डाइट में बताए गए फल, डेयरी या आलू के ज्यादा उपभोग की बात नहीं कही गई है.

MIND डाइट एक साइंटिफिक डाइट है, जिसे फायदेमंद पाया गया है. ये डाइट का एक बेहद हेल्दी वर्जन है, जिसे अपनाया जाना चाहिए.
डॉ प्रियंका रोहतगी, चीफ क्लीनिकल डाइटिशियन, अपोलो हॉस्पिटल 

डाइट और डिमेंशिया

अपोलो हॉस्पिटल में चीफ क्लीनिकल डाइटिशियन और न्यूट्रिशन और डाइअटेटिक्स डिपार्टमेंट की एचओडी डॉ प्रियंका रोहतगी बताती हैं कि आप क्या खाते हैं, इसका काफी गहरा असर दिमाग पर पड़ता है.

क्या किसी तरह की डाइट से संज्ञानात्मक गिरावट को धीमा किया जा सकता है, इस सवाल पर डॉ रोहतगी कहती हैं कि हां, यहां डाइट बेहद अहम हो जाती है.

खासकर शुगरी ड्रिंक्स-हाई-फ्रक्टोज कॉर्न सीरप (HFCS) से नुकसान होता है. इससे ब्रेन इंफ्लेमेशन और याददाश्त और सीखने की क्षमता में गिरावट आती है. ज्यादा स्मोक्ड मीट खाने से बचना चाहिए क्योंकि इनमें नाइट्रोसामिन्स होते हैं, इनके कारण लिवर से ऐसे फैट प्रोड्यूस होते हैं, जो दिमाग के लिए टॉक्सिक होते हैं. ट्रांस फैट लेने से परहेज किया जाना चाहिए.
डॉ प्रियंका रोहतगी, चीफ क्लीनिकल डाइटिशियन, अपोलो हॉस्पिटल 

माइंड डाइट में शामिल फूड आइटम

1. हरी पत्तेदार सब्जियां

हफ्ते में छह या अधिक बार हरी पत्तेदार सब्जियां खाएं.(फोटो: iStock)

हरी पत्तेदार सब्जियों में फोलेट, विटामिन E, कैरोटीनॉयड, फ्लेवोनोइड्स और ऐसे पोषक तत्व पाए जाते हैं, जिनका संबंध डिमेंशिया और कॉग्निटिव गिरावट के खतरे को कम करने से है. हफ्ते में कम से कम छह बार हरी पत्तेदार सब्जियां खाने को कहा जाता है.

इसमें धनिया, पालक, पके हुए साग शामिल हैं, जिन्हें आटे में मिलाकर रोटी या ब्रेड तैयार की जा सकती है. चावल में डाला जा सकता है और इन्हें रायता और सलाद में भी शामिल किया जा सकता है.  
डॉ प्रियंका रोहतगी

2. दूसरी तरह की सब्जियां

(फोटो: iStock)

कई स्टडीज में पाया गया है कि भरपूर मात्रा में सब्जियों के सेवन का संबंध संज्ञानात्मक क्षमता की क्षति को धीरे करने से है.

इसीलिए हर दिन कम से कम एक बार दूसरी सब्जियों के सेवन की भी सलाह दी जाती है.

डॉ रोहतगी सब्जियों के चयन पर बताती हैं कि ट्रैफिक लाइट के रंगों वाली सब्जियां शामिल कीजिए. बेहतर होगा कि आप नॉन-स्टार्ची सब्जियां खाएं क्योंकि इनमें कम कैलोरी के साथ पोषक तत्व भरपूर होते हैं.

3. नट्स

हर हफ्ते नट्स की कम से कम पांच सर्विंग की सलाह दी जाती है(फोटो: iStock)

नट्स विटामिन E के समृद्ध स्रोत हैं. ये जगजाहिर है कि विटामिन E दिमाग के न्यूरोप्रोटेक्शन के लिए अहम है. माइंड डाइट में हर हफ्ते नट्स की कम से कम पांच सर्विंग की सलाह दी जाती है.

कई तरह के न्यूट्रिएंट्स के लिए जरूरी है कि आप अलग-अलग मेवे खाएं. इनके साथ सूरजमुखी, कद्दू, तरबूज और खरबूज के बीज शामिल करना अच्छा है.
डॉ प्रियंका रोहतगी

4. बेरीज

बेरीज के एंटीऑक्सिडेंट फायदे हैं.(फोटो: Pexels)

बेरीज खाने से मेमोरी और सीखने की क्षमता में सुधार होता है. माइंड डाइट में हर हफ्ते कम से कम दो बार बेरीज लेना शामिल है. डॉ रोहतगी बताती हैं कि बेरीज के एंटीऑक्सिडेंट फायदे हैं.

5. बीन्स

हर हफ्ते तीन से चार बार बीन्स लेने की सलाह दी जाती है. (फोटो: iStock)

खाने में हर हफ्ते तीन से चार बार बीन्स लेने की सलाह दी जाती है. इसमें सभी बीन्स, दाल और सोयाबीन शामिल हैं.

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6. साबुत अनाज

डॉ प्रियंका रोहतगी अनाज में 50 फीसदी साबुत अनाज लेने को कहती हैं. (फोटो: iStock)

माइंड डाइट में हर हफ्ते कम से कम तीन बार साबुत अनाज लेना शामिल है. डॉ प्रियंका रोहतगी अनाज में 50 फीसदी साबुत अनाज लेने को कहती हैं. ये ओटमील, बिना रिफाइंड हुए मोटे अनाज, ब्राउन राइस, गेहूं का पास्ता और ब्रेड हो सकता है.

7. सीफूड

हफ्ते में एक बार ही मछली खाने से डिमेंशिया का रिस्क घटता है.(फोटो: iStock)

ऐसा देखा गया है कि हफ्ते में एक बार ही मछली खाने से डिमेंशिया का रिस्क घटता है. सिर्फ इस बात का ख्याल रखना है कि ये फ्राई न की गई हो.

बेहतर होगा कि सैमन, सार्डीन, ट्राउट, टूना और मैकरल जैसी फैटी फिश ली जाए. इनमें ओमेगा-3 फैटी एसिड ज्यादा होता है. 
डॉ प्रियंका रोहतगी

8. पॉल्ट्री

MIND डाइट में फ्राइड चिकन खाने को नहीं कहा जाता है.(फोटो: iStock)

माइंड डाइट के मुताबिक हफ्ते में कम से कम दो बार चिकन या टर्की खाने की कोशिश करनी चाहिए. डॉ रोहतगी इस बात पर जोर देती हैं कि MIND डाइट में फ्राइड चिकन खाने को नहीं कहा जाता है.

9. हेल्दी कुकिंग ऑयल

(फोटो: iStock)

डॉ रोहतगी बताती हैं कि खाना बनाने में इस्तेमाल होने वाले तेल की अच्छी क्वालिटी के साथ ही उसकी मात्रा भी सही होनी चाहिए.

माइंड डाइट में खाना पकाने के लिए ऑलिव ऑयल का जिक्र होता है.

10. वाइन

माइंड डाइट में सीमित मात्रा में वाइन को भी शामिल किया गया है.

MIND डाइट में इन चीजों से करें परहेज

माइंड डाइट के मुताबिक आपको ऐसी चीजों का सेवन सीमित करना होता है, जो ब्रेन के लिए अनहेल्दी हैं. डॉ प्रियंका रोहतगी इन चीजों को सीमित करने को कहती हैं:

  • अनहेल्दी फैट्स: जैसे हाइड्रोजेनेटड बटर और मार्जरीन न लें.
  • चीज़: माइंड डाइट में चीज़ का सेवन सीमित करने पर जोर दिया जाता है, ये हफ्ते में एक बार से कम लेना चाहिए.
  • रेड मीट: हफ्ते में तीन बार से अधिक रेड मीट बिल्कुल भी न लें. इसमें सभी बीफ, पॉर्क, लैंब और इन मीट से बनी दूसरी चीजें शामिल हैं.
  • फ्राइड चीजें: माइंड डाइट में फ्राइड चीजों की मनाही है, खासकर बाहर मिलने वाले फास्ट फूड. कोशिश करनी चाहिए कि इन्हें हफ्ते में एक बार से भी कम लिया जाए.
  • पेस्ट्री और मिठाइयां: इनमें वो सभी प्रोसेस्ड जंक फूड और डेजर्ट्स शामिल हैं. आइसक्रीम, कुकीज, ब्राउनीज, स्नैक केक, डोनट, कैंडी और भी बहुत चीजें है. इन चीजों को हफ्ते में चार बार से अधिक न लें.

डॉ रोहतगी बताती हैं कि रिसर्चर्स इन चीजों का सेवन सीमित करने को कहते हैं क्योंकि इनमें सैचुरेटेड फैट और ट्रांस फैट होता है. कई स्टडीज में पाया गया है कि ट्रांस फैट्स सभी तरह की बीमारियों, जिसमें दिल की बीमारियां और यहां तक कि अल्जाइमर्स डिजीज, से जुड़े हैं.

कब जरूरी हो जाता है MIND डाइट को फॉलो करना?

डॉ रोहतगी कहती हैं, हेल्दी खाना जीवनभर की आवश्यकता है, इसलिए जो भी इन दिक्कतों से बचना चाहता है, उसे अपनी डाइट पर ध्यान देना चाहिए.

जिन लोगों की फैमिली में अल्जाइमर रहा हो, न्यूरोलॉजिकल और साइकोलॉजिकल चुनौतियां देखी गई हों, ऐसे लोगों को MIND डाइट का पालन जरूर करना चाहिए. अगर कोई पहले से ही संज्ञानात्मक अक्षमता या डिमेंशिया से जूझ रहा है, ऐसे लोगों को MIND फॉलो ही करना चाहिए.
डॉ प्रियंका रोहतगी

क्यों खास है ये MIND डाइट?

डॉ रोहतगी माइंड डाइट को दो वजहों से खास बताती हैं:

1. ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस और इंफ्लेमेशन को घटा सकती है माइंड डाइट

जब अनस्टेबल मॉलिक्यूल्स जिन्हें फ्री रेडिकल्स कहते हैं, बड़ी संख्या में शरीर में जमा होते हैं, तब ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस होता है. इससे अक्सर कोशिकाओं को क्षति पहुंचती है. इस तरह की क्षति का खतरा दिमाग को ज्यादा होता है. इंफ्लेमेशन किसी संक्रमण और चोट की नैचुरल प्रतिक्रिया है. लेकिन अगर ये ठीक तरीके से रेगुलेट न हो, तो इससे नुकसान भी हो सकता है और कई क्रोनिक डिजीज का कारण बन सकता है.

इंफ्लेमेशन और ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस एक साथ मस्तिष्क के लिए काफी हानिकारक हो सकता है. मेडिटेरेनियन और DASH डाइट का संबंध ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस और इंफ्लेमेशन घटाने से पाया गया है. क्योंकि MIND डाइट इन दोनों डाइट से तैयार की गई है, इसलिए इसके एंटीऑक्सिडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी प्रभाव हैं.

बेरीज में एंटीऑक्सिडेंट्स, मेवे और सीड ऑयल में विटामिन ई और हरी पत्तेदार सब्जियां दिमाग की ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस से रक्षा करती हैं. इसके अलावा ओमेगा-3 फैटी एसिड ब्रेन में इंफ्लेमेशन घटाने के लिए जाना जाता है और ब्रेन फंक्शन में गिरावट को धीमा करता है. 
डॉ प्रियंका रोहतगी

2. हानिकारक बीटा एम्लॉयड प्रोटीन को घटा सकता है MIND डाइट

बीटा एम्लॉयड प्रोटीन नैचुरली शरीर में पाए जाते हैं. लेकिन, ये इकट्ठे होकर प्लेक बनाते हैं, जो ब्रेन सेल्स के आपसी कम्यूनिकेशन को नुकसान पहुंचाते हैं और आखिरकर दिमाग की कोशिकाएं नष्ट होती हैं. कई वैज्ञानिकों का मानना है कि यही प्लेक अल्जाइमर का पहला कारण है.

डॉ रोहतगी कहती हैं कि माइंड डाइट को डिमेंशिया से बचाव और उम्र के साथ ब्रेन फंक्शन में जो कमी आ सकती है, उससे बचाव के लिए तैयार किया गया था. कुछ रिसर्च कहते हैं कि माइंड डाइट को फॉलो करने से अल्जाइमर का रिस्क घट सकता है, हालांकि इस डाइट के प्रभाव को समझने के लिए और रिसर्च की जरूरत है. भविष्य में इसके और फायदे भी सामने आ सकते हैं.

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Published: 25 Mar 2019,04:52 PM IST

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