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Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Fit Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019क्या हैप्पीनेस का कोर्स आपको खुश रहना सिखा सकता है?

क्या हैप्पीनेस का कोर्स आपको खुश रहना सिखा सकता है?

तो यह है आपके खुश रहने का राज़.

वैशाली सूद
फिट
Updated:
तो क्या खुशी को एक तयशुदा परिभाषा में समेटा जा सकता है, जो सब पर लागू हो?
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तो क्या खुशी को एक तयशुदा परिभाषा में समेटा जा सकता है, जो सब पर लागू हो?
(फोटो: iStockphoto)

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आपको कौन सी बात खुशी देती है? एक गिफ्ट मिलना? आपके बच्चे की पहली मुस्कान? पुरानी जींस की जेब में पैसा मिल जाना? या और ज्यादा सांसारिक चीजें जैसे की कोई अच्छा सा गैजेट, अपनी पसंदीदा नौकरी मिल जाना या लॉटरी में इनाम निकल जाना? क्या कामयाबी आपको खुशी देती है, सेहतमंद बनाती है?

शायद यह सब कुछ. या इसमें से कुछ भी नहीं. हो सकता है कि आप तब सबसे ज्यादा खुश हों, जब पूरी दुनिया में शांति कायम हो जाए. तो क्या हैप्पीनेस या खुशी को एक तयशुदा परिभाषा में समेटा जा सकता है, जो सब पर लागू हो? निश्चित रूप से आज हम उससे कम खुश हैं, जितना हम एक दशक पहले थे.

संयुक्त राष्ट्र वर्ष 2012 से हर साल 20 मार्च को इंटरनेशनल डे ऑफ हैप्पीनेस (अंतरराष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस) मनाता है. सस्टेनेबल डेवलपमेंट साल्यूशंस नेटवर्क द्वारा तैयार वर्ल्ड हैप्पीनेस डे रिपोर्ट 2018 के अनुसार 156 देशों में भारत 133वें पायदान पर बहुत खराब हाल में है. इन हालात में अगर कोई आपको हैप्पीनेस का करीने से तैयार पैकेज्ड मंत्रा दे तो? आप इसे फौरन लपक लेंगे ना?

फरवरी 2018 में दिल्ली सरकार ने नर्सरी से आठवीं कक्षा तक के स्टूडेंट्स के लिए हैप्पीनेस का कोर्स शुरू करने की योजना बनाई थी. येल यूनिवर्सिटी ने कुछ महीने पहले यह कोर्स शुरू किया है.

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येल यूनिवर्सिटी में खुशी की तलाश

येल यूनिवर्सिटी ने हैप्पीनेस का कोर्स शुरू किया है.  (फोटो: iStockphoto)

यूनाइटेड स्टेट्स में येल यूनिवर्सिटी ने हैप्पीनेस पर अब तक अपना सबसे लोकप्रिय कोर्स शुरू किया है. द न्यूयार्क टाइम्स

इसमें एडमिशन लेनेवालों की फटाफट लाइन लग गई. अंतिम गिनती तक कोर्स में 1200 स्टूडेंट्स पंजीकरण करा चुके थे– यह यूनिवर्सिटी में हर 4 में से 1 स्टूडेंट का अनुपात हुआ. संस्थान को इतने स्टूडेंट्स के लिए इंतजाम करने में पसीना छूट गया. अंतिम जानकारी तक कक्षाएं उस हॉल में लग रही थीं, जिनमें आमतौर पर संगीत के कंसर्ट हुआ करते थे.

मनोविज्ञान के प्रोफेसर डॉ. लॉरी सांटॉस यह कोर्स पढ़ाते हैं. यूनाइटेड स्टेट्स की सबसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटीज में से एक इस यूनिवर्सिटी में एन्जाइटी (चिंता) और स्ट्रेस (तनाव) की दर बहुत ऊंची है. प्रोफेसर का मानना है कि स्टूडेंट्स ने यूनिवर्सिटी में दाखिला पाने के लिए हैप्पीनेस को पीछे छोड़ दिया था, और अब वो इसे वापस हासिल करना चाहते हैं.

हैप्पीनेस क्या है?

द न्यूयार्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार येल का कोर्स पॉजिटिव साइकोलॉजी और व्यावहारिक बदलावों पर केंद्रित है. यह स्टूडेंट्स को बताता है कि इन सीखों को कैसे वास्तविक जीवन में उतारा जा सकता है. अंतिम असाइनमेंट के तौर पर स्टूडेंट को ‘सेल्फ इंप्रूवमेंट’ प्रोजेक्ट पर काम करना होता है.

आज की तारीख में हैप्पीने का अर्थ आमतौर पर इड डाइनेर और उनकी टीम द्वारा तैयार स्केल पर व्यक्तिपरक संपन्नता से है. जब मनोवैज्ञानिक हैप्पीनेस को परिभाषित करते हैं तो मापते हैं कि व्यक्ति किस तरह सोचता है और अपनी जिंदगी के बारे में कैसा महसूस करता है:

  1. जीवन से संतुष्टि
  2. सकारात्मक प्रभाव
  3. नकारात्मक प्रभाव

इस तरह कोई व्यक्ति जो वास्तव में अपनी जिंदगी में संतुष्ट है और इसका उस पर सकारात्मक प्रभाव है, तो उसका व्यक्तिपरक संपन्नता का उच्च स्तर होगा.

लेकिन क्या वास्तव में हैप्पीनेस किसी को पढ़ाई जा सकती है? हमने यह सवाल अशोका यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञान के एक प्रोफेसर के सामने रखा.

मैं नहीं समझता कि आप सचमुच हैप्पीनेस पढ़ा सकते हैं… मुझे लगता है कि ज्यादा सारगर्भित सवाल यह है कि हम भावनाओं की प्रकृति, जिनमें हैप्पीनेस सिर्फ एक भावना है, का किस तरह सही जवाब दे सकते हैं? मुझे लगता है कि यह चीज पढ़ाई जा सकती है.
प्रो. काई किन चान, एचओडी, डिपार्टमेंट ऑफ साइकालोजी, अशोका यूनिवर्सिटी 

वह अपनी बात को और स्पष्ट करते हैं:

तीन भावनाओं का उदाहरण लेते हैं: शर्म, ग्लानि, उलझन. हम इन तीनों में अंतर कैसे करेंगे? ( कोई नैतिकता के पैमाने पर परखता है, तो कोई परखने के लिए खुद को सामने रखता है) अगर लोग कुछ भावनाओं को समझते हैं तो इसका मतलब है कि वो भावनाओं को बदलने की क्षमता रखते हैं, और यह खासकर उस स्थिति में फायदेमंद होगा, अगर भावनाएं नाकाम हो रही हैं. उदाहरण के लिए, महिला कुश्ती को शर्मनाक समझा जा सकता है , लेकिन हम (इस मामले में) किसी की उपलब्धियों पर फोकस करके आसानी से शर्म को गर्व में बदल सकते हैं?
स्टूडेंट तनाव और चिंता के बोझ तले दबते जा रहे हैं. लैंसेट की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर घंटे एक स्टूडेंट खुदकशी कर रहा है.(फोटो: istock/The Quint द्वारा परिमार्जित)

हम चिंता के बोझ तले दबी दुनिया में अपने बच्चों को बड़ा कर रहे हैं. लैंसेट की 2012 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत दुनिया में किशोरों की खुदकशी की सबसे ज्यादा दर वाले देशों में से एक है. और ऐसे माहौल में जहां आपकी जिंदगी की कीमत स्कूल या काम में सफलता से आंकी जाती है, चौतरफा एन्जाइटी (चिंता) और डिप्रेशन (अवसाद) तो होना ही है. तो क्या इस हैप्पीनेस कोर्स को अनिवार्य नहीं बना देना चाहिए?

पारंपरिक रूप से हम स्टूडेंट्स के मामले में ‘दखल’ देते हैं, लेकिन यह बताने के लिए सबूत हैं कि हमें माता-पिता को स्टू़डेंट से जोड़ने की जरूरत है…स्टूडेंट्स के लिए कोर्सेज पर ध्यान केंद्रित करते समय हम युवाओं में हैप्पीनेस के बहुत बड़े निर्धारक की उपेक्षा कर दे रहे हैं- उनके माता-पिता. अक्सर हम बच्चों के लिए जो चीजें करते हैं, वह पूरी तरह निरर्थक (और संभावित रूप से हानिकारक) होती हैं, डेवलपमेंटल साइकोलॉजी के शोध में पाया गया है कि अटपटी चीजों से माता-पिता और स्टूडेंट्स में स्ट्रेस और एन्जाइटी पैदा होती है.
प्रो. काई किन चान

हैप्पीनेस और बड़ी योजनाएं

खुशी की तलाश: क्या इस का जवाब ध्यान, श्वसन क्रिया और योगा है?(फोटो: iStockphoto)

क्या आप ध्यान या सांसों को नियंत्रित करके हैप्पीनेस या आनंद हासिल कर सकते हैं? बहुत बड़ी संख्या में लोग अपनी जिंदगी से असंतुष्ट हैं, जिंदगी के मायने समझने की कोशिश कर रहे हैं और जवाब पाने के लिए नए दौर के गुरुओं की शरण ले रहे हैं. भारत की सिलीकॉन वैली, बेंगलुरू के बाहरी छोर पर बसे श्रीश्री रविशंकर के आर्ट ऑफ लिविंग जैसे स्थान पर वह कोई चीज पढ़ाते हैं जिसे वह “हैप्पीनस कोर्स” कहते हैं. हमने उनसे पूछा कि वह हैप्पीनेस को किस तरह परिभाषित करते हैं?

यह श्रीश्री ने कहा है, और यहां आर्ट ऑफ लिविंग में हमारे लिए यही हैप्पीनेस को परिभाषित करता है, “एक रोगमुक्त शरीर, साफ हवा में सांस लेना, तनाव से मुक्त मस्तिष्क, अवरोध से मुक्त ज्ञान, आसक्ति से मुक्त यादें, अहं जो सबको समाहित कर ले, और दुख से मुक्त आत्मा प्रत्येक मानव का जन्मसिद्ध अधिकार है.”
गौरव वर्मा, रीजनल डायरेक्टर, आर्ट ऑफ लिविंग 

स्तब्ध. कोई भी शख्स अपने जीवन में यही सबकुछ तो हासिल करना चाहता है. सही है ना? व्यावहारिक जीवन में कोई इसे कैसे हासिल कर सकता है? उनका कहना है कि योगा, ध्यान, श्वसन क्रिया से ये हासिल किया जा सकता है.

हमें हमेशा कहा जाता है कि गुस्सा ना करो या अपने गुस्से को काबू में रखो, लेकिन कभी नहीं बताया जाता कि कैसे करें. हमारे प्रोग्राम्स में हम प्राचीन श्वसन क्रिया से अपने शरीर की आंतरिक शक्तियों को नियंत्रित करते हैं… सुदर्शन क्रिया एक विशिष्ट श्वसन विधा है, जो सांसों की निर्दिष्ट प्राकृतिक लय बनाती है, जिससे शरीर, मस्तिष्क, भावनाओं का लय-ताल स्थापित होता है. विशिष्ट श्वसन क्रिया तनाव, थकान और नकारात्मक भावनाओं का खात्मा करती है और गुस्सा, कुंठा व अवसाद को मिटा देती है, जिससे आप शांत महसूस करने के साथ ही ऊर्जावान, फोकस्ड, रिलैक्स और आनंदित महसूस करते हैं.
गौरव वर्मा, रीजनल डायरेक्टर, आर्ट ऑफ लिविंग 

तो क्या हम सभी को श्रेष्ठ मनोवैज्ञानिकों या प्राचीन ज्ञान का पालन करने वालों द्वारा पढ़ाए जाने वाले हैप्पीनेस कोर्स ज्वाइन कर लेना चाहिए? क्या दिल्ली के बच्चों और येल यूनिवर्सिटी के युवाओं की अगली पीढ़ी बड़ी होने पर ज्यादा खुश और संतुष्ट होगी?

शायद नहीं. लेकिन अगर वो दूसरों की भावनाओं और उनकी हैप्पीनेस को समझने में सक्षम होंगे, तो यह कोशिश बेकार भी नहीं जाएगी. है ना?

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Published: 28 Apr 2018,04:07 PM IST

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