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आपको कौन सी बात खुशी देती है? एक गिफ्ट मिलना? आपके बच्चे की पहली मुस्कान? पुरानी जींस की जेब में पैसा मिल जाना? या और ज्यादा सांसारिक चीजें जैसे की कोई अच्छा सा गैजेट, अपनी पसंदीदा नौकरी मिल जाना या लॉटरी में इनाम निकल जाना? क्या कामयाबी आपको खुशी देती है, सेहतमंद बनाती है?
शायद यह सब कुछ. या इसमें से कुछ भी नहीं. हो सकता है कि आप तब सबसे ज्यादा खुश हों, जब पूरी दुनिया में शांति कायम हो जाए. तो क्या हैप्पीनेस या खुशी को एक तयशुदा परिभाषा में समेटा जा सकता है, जो सब पर लागू हो? निश्चित रूप से आज हम उससे कम खुश हैं, जितना हम एक दशक पहले थे.
संयुक्त राष्ट्र वर्ष 2012 से हर साल 20 मार्च को इंटरनेशनल डे ऑफ हैप्पीनेस (अंतरराष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस) मनाता है. सस्टेनेबल डेवलपमेंट साल्यूशंस नेटवर्क द्वारा तैयार वर्ल्ड हैप्पीनेस डे रिपोर्ट 2018 के अनुसार 156 देशों में भारत 133वें पायदान पर बहुत खराब हाल में है. इन हालात में अगर कोई आपको हैप्पीनेस का करीने से तैयार पैकेज्ड मंत्रा दे तो? आप इसे फौरन लपक लेंगे ना?
फरवरी 2018 में दिल्ली सरकार ने नर्सरी से आठवीं कक्षा तक के स्टूडेंट्स के लिए हैप्पीनेस का कोर्स शुरू करने की योजना बनाई थी. येल यूनिवर्सिटी ने कुछ महीने पहले यह कोर्स शुरू किया है.
यूनाइटेड स्टेट्स में येल यूनिवर्सिटी ने हैप्पीनेस पर अब तक अपना सबसे लोकप्रिय कोर्स शुरू किया है. द न्यूयार्क टाइम्स
मनोविज्ञान के प्रोफेसर डॉ. लॉरी सांटॉस यह कोर्स पढ़ाते हैं. यूनाइटेड स्टेट्स की सबसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटीज में से एक इस यूनिवर्सिटी में एन्जाइटी (चिंता) और स्ट्रेस (तनाव) की दर बहुत ऊंची है. प्रोफेसर का मानना है कि स्टूडेंट्स ने यूनिवर्सिटी में दाखिला पाने के लिए हैप्पीनेस को पीछे छोड़ दिया था, और अब वो इसे वापस हासिल करना चाहते हैं.
द न्यूयार्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार येल का कोर्स पॉजिटिव साइकोलॉजी और व्यावहारिक बदलावों पर केंद्रित है. यह स्टूडेंट्स को बताता है कि इन सीखों को कैसे वास्तविक जीवन में उतारा जा सकता है. अंतिम असाइनमेंट के तौर पर स्टूडेंट को ‘सेल्फ इंप्रूवमेंट’ प्रोजेक्ट पर काम करना होता है.
आज की तारीख में हैप्पीने का अर्थ आमतौर पर इड डाइनेर और उनकी टीम द्वारा तैयार स्केल पर व्यक्तिपरक संपन्नता से है. जब मनोवैज्ञानिक हैप्पीनेस को परिभाषित करते हैं तो मापते हैं कि व्यक्ति किस तरह सोचता है और अपनी जिंदगी के बारे में कैसा महसूस करता है:
इस तरह कोई व्यक्ति जो वास्तव में अपनी जिंदगी में संतुष्ट है और इसका उस पर सकारात्मक प्रभाव है, तो उसका व्यक्तिपरक संपन्नता का उच्च स्तर होगा.
लेकिन क्या वास्तव में हैप्पीनेस किसी को पढ़ाई जा सकती है? हमने यह सवाल अशोका यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञान के एक प्रोफेसर के सामने रखा.
वह अपनी बात को और स्पष्ट करते हैं:
हम चिंता के बोझ तले दबी दुनिया में अपने बच्चों को बड़ा कर रहे हैं. लैंसेट की 2012 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत दुनिया में किशोरों की खुदकशी की सबसे ज्यादा दर वाले देशों में से एक है. और ऐसे माहौल में जहां आपकी जिंदगी की कीमत स्कूल या काम में सफलता से आंकी जाती है, चौतरफा एन्जाइटी (चिंता) और डिप्रेशन (अवसाद) तो होना ही है. तो क्या इस हैप्पीनेस कोर्स को अनिवार्य नहीं बना देना चाहिए?
हैप्पीनेस और बड़ी योजनाएं
क्या आप ध्यान या सांसों को नियंत्रित करके हैप्पीनेस या आनंद हासिल कर सकते हैं? बहुत बड़ी संख्या में लोग अपनी जिंदगी से असंतुष्ट हैं, जिंदगी के मायने समझने की कोशिश कर रहे हैं और जवाब पाने के लिए नए दौर के गुरुओं की शरण ले रहे हैं. भारत की सिलीकॉन वैली, बेंगलुरू के बाहरी छोर पर बसे श्रीश्री रविशंकर के आर्ट ऑफ लिविंग जैसे स्थान पर वह कोई चीज पढ़ाते हैं जिसे वह “हैप्पीनस कोर्स” कहते हैं. हमने उनसे पूछा कि वह हैप्पीनेस को किस तरह परिभाषित करते हैं?
स्तब्ध. कोई भी शख्स अपने जीवन में यही सबकुछ तो हासिल करना चाहता है. सही है ना? व्यावहारिक जीवन में कोई इसे कैसे हासिल कर सकता है? उनका कहना है कि योगा, ध्यान, श्वसन क्रिया से ये हासिल किया जा सकता है.
तो क्या हम सभी को श्रेष्ठ मनोवैज्ञानिकों या प्राचीन ज्ञान का पालन करने वालों द्वारा पढ़ाए जाने वाले हैप्पीनेस कोर्स ज्वाइन कर लेना चाहिए? क्या दिल्ली के बच्चों और येल यूनिवर्सिटी के युवाओं की अगली पीढ़ी बड़ी होने पर ज्यादा खुश और संतुष्ट होगी?
शायद नहीं. लेकिन अगर वो दूसरों की भावनाओं और उनकी हैप्पीनेस को समझने में सक्षम होंगे, तो यह कोशिश बेकार भी नहीं जाएगी. है ना?
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