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कैंसर ट्रीटमेंट में कितने अहम होंगे ये नैनो बबल्स?

कैंसर कोशिकाएं को मारने के लिए तैयार किए जा रहे हैं नैनोबबल्स

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छोटे-छोटे बबल्स में भरी जाती हैं दवाइयां
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छोटे-छोटे बबल्स में भरी जाती हैं दवाइयां
(फोटो: iStock)

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कैंसर से लड़ने के लिए वैज्ञानिक नये-नये तरीके इजाद करने में लगे हुए हैं. नैनोमेडिसिन के क्षेत्र में ऐसे नैनो बबल्स का विकास किया जा रहा है. जो शरीर में कैंसर कोशिकाओं को नष्ट कर सके. इसके लिए X-Rays की मदद ली जा रही है. वैज्ञानिकों ने दवाइयों से भरे इन नैनो बबल्स को इस तरह बनाया है कि ये X-Rays के जरिए सक्रिय होते हैं और कैंसर कोशिकाएं को खत्म कर सकते हैं.

इन छोटे-छोटे बबल्स को लिपोसोम्स कहते हैं. इनका इस्तेमाल फार्माकोलॉजी यानी औषध विज्ञान में दवाइयों को कैपस्यूल करने के लिए होता है. शोधकर्ता अब इन लिपोसोम पर ऐसा प्रयोग कर रहे हैं कि जरूरत के मुताबिक X-rays से एक्टिवेट होने पर ये ड्रग डिस्चार्ज कर सकें. शुरुआती परीक्षण में ये तकनीक आतों की कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने में सफल साबित हुई है. 

ऑस्ट्रेलिया के सेंटर फॉर नैनोस्केल बायोफोटोनिक्स (CNBP) की वी डेंग कहती हैं, 'नैनोमेडिसिन में ड्रग डिलीवरी के लिए नैनोमटेरियल की डिजाइन पर काम किया जा रहा है. ड्रग डिलीवरी सिस्टम में लिपोसोम पहले से ही महत्वपूर्ण हैं. लिपोसोम की संरचना कोशिका झिल्ली से मिलती-जुलती है.’

इन बबल्स को तैयार करना आसान है. इनमें दवाइयों की उचित मात्रा डाली जा सकती है और फिर शरीर के किसी भी हिस्से में इंजेक्ट किया जा सकता है. बस जरूरत इस बात है कि लिपोसोम से दवाइयां सही समय पर रिलीज हों.’
वी डेंग

वैज्ञानिकों के इस अध्ययन को जर्नल नेचर कम्यूनिकेशन्स में छापा गया है. इसमें बताया गया है कि लिपोसोम की दीवारों पर गोल्ड नैनोपार्टिकल्स और फोटो-सेंसेटिव अणु वर्टेपॉर्फ़िन को स्थापित किया गया.

ड्रग रिलीज करने के लिए ऐसे टूटती है लिपोसोम की झिल्ली

एक्स-रे रेडिएशन से वर्टेपॉर्फ़िन रिएक्ट करता है और रिएक्टिव सिंगलेट ऑक्सीजन का उत्पादन करता है. ये सिंगलेट ऑक्सीजन लिंपोसम की मेंबरेन यानी झिल्ली को टूटने में मदद करता है ताकि दवाई रिलीज हो सके.

गोल्ड नैनोपार्टिकल्स एक्स-रे एनर्जी पर फोकस करते हैं. सिंगलेट ऑक्सीजन का उत्पादन बढ़ाते हैं और इस तरह झिल्ली टूटने की गति में सुधार होता है.

इनपुट- IANS

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Published: 17 Jul 2018,01:28 PM IST

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