advertisement
जब आप आप माता-पिता बनते हैं, तो खुद से कई वादे करते हैं. आप अपने परिवार और दोस्तों को वैसा करते हुए देखते हैं, जो आप के ख्याल में गलती है, और आप खुद को समझाते हैं कि आप वह काम बेहतर तरीके से करेंगे. आप गुस्से में कभी अपनी आवाज ऊंची नहीं करेंगे, आप अपने बच्चों के सामने कभी नकारात्मक शब्दों का इस्तेमाल नहीं करेंगे, जब वो कामयाबी की मंजिलें तय करेंगे तो आप हमेशा खुशी और उत्साह का प्रदर्शन करेंगे, और जब वो बीमार होंगे या दुखी होंगे, तो आप उनके नन्हे हाथों को कसकर थाम लेंगे.
और फिर जिंदगी आगे बढ़ती है.
आप व्यस्त हो जाते हैं, आपके माता-पिता बूढ़े और बीमार हो जाते हैं, काम का बोझ जिंदगी पर असर डालने लगता है और रोजमर्रा के तनाव आपको घेरने लगते हैं.
आप किस पर गुस्सा उतारते हैं?
हमारे पागलपन भरे दिनों में, जिसे हम जिंदगी कहते हैं, ऐसा भी पल आता है जिसका ज्यादातर माता-पिता सचमुच आनंद लेते हैं. यह दुनिया (यानी कि आपके बच्चे) के जागने से पहले सुबह पौ फटने के उन 10 मिनटों की बात है. आप एक कप अच्छी सी कॉफी तैयार कर लेते हैं और अपने दिमाग को ख्यालों की दुनिया में भटकने के लिए छोड़ देते हैं. मेरे बच्चों के स्कूल में, कक्षाएं शुरू होने से पहले के इस समय को रिफ्लेक्शन टाइम कहा जाता है.
आज मैंने जैसे ही कॉफी का घूंट लिया, मेरे लिए यह ऐसा ही लम्हा था. शायद न्यू ईयर के लिए तय की गई सभी स्टोरीज मेरे दिमाग में चल रही थीं, तभी मैंने अपनी बेटियों के लिए न्यू ईयर रिजॉल्यूशन क्या होना चाहिए, इस पर सोचना शुरू कर दिया.
तो आप भी जानिए मेरे उन न्यू ईयर पैरेंटिंग रिजॉल्यूशन के बारे में जो किसी खास क्रम में नहीं हैं :
हर सेल्फ-हेल्प बुक हमेशा यही कहती है- इससे कोई मदद नहीं मिलती.
हां, हम सभी इस बात से वाकिफ हैं, शुक्रिया. यह जानना मेरा काम है. मैंने शायद इस पर आर्टिकल्स भी लिखे हैं. लेकिन मुझे ऐसे एक भी पैरेंट दिखा दें, जिसने अपने बच्चे को डांटा नहीं हो, तो मैं उसका नाम दुनिया के आठवें अजूबे में शामिल करा दूंगी.
मेरी मां के लिए 1 से 10 तक की गिनती (गुस्से पर काबू पाने का एक प्रचलित तरीका) कारआमद उपाय था. हम कभी 10 तक नहीं पहुंचते थे. मेरे बच्चों के साथ भी ऐसा नहीं है. उन्होंने मेरे डांटने को इतने प्रभावी ढंग से रोक दिया कि वो यह कभी नहीं सुन पाए और मैंने अपने गिनती के कौशल को सुधार लिया है, वजह चाहे जो भी रही हो.
सितंबर में द न्यूयॉर्क टाइम्स में छपा एक आर्टिकल मेरे लिए मुंह पर एक जोरदार तमाचे जैसा था. लेख में कहा गया था कि ‘बच्चों की परवरिश में सबसे बड़ी मूर्खता उनको डांटना है.’
कई रिसर्च में बताया गया है कि बच्चों को डांटने का असर उनकी पिटाई करने जैसा ही है. जिन बच्चों को डांटा जाता है, उनमें आत्मसम्मान की कमी, डिप्रेशन की आशंका ज्यादा रहती है.
और बच्चों के लिए, आप सिर्फ एक ऐसे शख्स हो जाते हैं, जिसने आपा खो दिया है.
ठीक है, लेकिन क्या ‘प्यारे बच्चे कृपया आप फर्श पर फेंके कपड़े उठा लीजिए’ या ‘आप अपनी छोटी बहन को परेशान करना बंद कीजिए’ जैसी बातें बोलना काम करेगा? विशेषज्ञ कुछ पैरेंट्स का उदाहरण देते हुए इसकी सकारात्मक पुष्टि करते हैं. अगर आप बड़े बच्चे पर चीखेंगे, तो वह छोटे भाई-बहनों पर चीखेगा.
मैंने इस सकारात्मक प्रतिज्ञा को एक मौका दिया. शायद दो बार. और फिर इसे छोड़ दिया. इसने काम नहीं किया और यह मेरी गलती है. मैं आलसी हो गई हूं. पैरेंटिंग कही जाने वाली चीज पर सचमुच कड़ी मेहनत करने की बजाए, मैंने डांट-डपट कर खुद को बेहतर महसूस कराने का विकल्प चुना है.
2019 में, मैं अपने बच्चों के प्रति रहमदिल रहने का वादा करती हूं. और खुद के लिए भी.
या इसी तरह का कुछ और. मेरी सहयोगी ने इस पर एक शानदार स्टोरी की है कि दिल्ली के स्कूलों में बच्चों को किस तरह माइंडफुलनेस से रूबरू कराया जा रहा है. इससे प्रेरित होकर, मैंने माइंडफुलनेस और बच्चों पर कुछ स्टोरी पर काम कराया. और मैंने इन सुझावों को अपने घर पर भी आजमाने का फैसला लिया.
पहली कोशिश: मैंने अपनी 4 साल की बेटी को अपने सामने बैठाया. आमने-सामने आलथी-पालथी मार कर. फोन पर म्यूजिक कंपोजर मोजार्ट की कुछ रचनाएं सुनाईं. उसे अपनी हथेलियों को आंखों पर रखने और अपनी सांस पर ध्यान केंद्रित करने को कहा. दो मिनट बाद ही वह हंस रही थी और लुका-छिपी का खेल खेल रही थी.
दूसरी कोशिश: हम इसे एक और मौका देते हैं. मोजार्ट म्यूजिक, आमने-सामने आलथी-पालथी मार कर बैठना, आंखें बंद. एक मिनट बाद मैं शांत सांसें सुनती हूं. मैं विजयी भाव से अपनी आंखें खोलती हूं और पाती हूं कि मेरी बेटी गहरी नींद में सो गई है. माइंडफुलनेस: नींद का प्रभावी उपकरण.
यह कोई नए फैशन का शब्द लग सकता है, लेकिन बौद्ध धर्म से जुड़े मेडिटेशन माइंडफुलनेस पर 2013 से 2015 के दौरान वैज्ञानिक रूप से 216 बार अध्ययन किया गया है. यह इरिटेबल बाउल सिंड्रोम (पेट में मरोड़, कब्ज), फाइब्रोमाइल्जिया (मांशपेशियों का दर्द), सोरायसिस (त्वचा रोग), एंग्जाएटी, डिप्रेशन और पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (दर्दनाक अनुभवों के बाद तनाव) सहित कई बीमारियों के इलाज में असरदार पाया गया है.
मैं इसे अपने बच्चों पर आजमाने के लिए जोर क्यों दे रही हूं? जाहिर है इसकी वजह है स्वार्थ. माइंडफुलनेस न केवल बच्चों के लिए एक प्रभावी उपाय है, बल्कि यह उनकी देखभाल करने वालों की भी मदद करता है. कोई भी ऐसा उपाय, जो एंग्जाइटी को कम कर सकता है और हैप्पीनेस बढ़ा सकता है, एक अनिवार्य पैरेंटिंग शर्त होना चाहिए.
मेरी अपनी 9 साल की बेटी से एक आम बातचीत कुछ इस तरह की होती है.
आज स्कूल कैसा रहा?
अच्छा.
तुमने क्या किया?
कुछ नहीं.
तुम्हारा दिन कैसा रहा?
ठीक.
यह तयशुदा बातचीत कभी-कभार आई लव यू और हैरी पॉटर की कहानियों से और कभी ‘मैं यह चाहती हूं और मैं वह चाहती हूं’ से बदलती है.
हमारी बातचीत के स्तर को ऊंचा उठाने के मकसद से, मैंने इस साल के शुरू में एक गुडनाइट रस्म की शुरुआत की. इसमें तय किया कि हम दिन के दौरान हमारे साथ हुई दो अच्छी चीजों के बारे में बात करेंगे. यहां तक कि अगर हमें इनको याद करने में सचमुच काफी मशक्कत करनी पड़े तो भी. भले ही हम सोचते हों कि हमारा दिन कितना भी खराब बीता है, लेकिन हमारे पास शुक्रगुजार होने के लिए हमेशा कुछ होगा.
साल के दौरान कुछ मौकों पर हमने ऐसा करना बंद कर दिया. उन दिनों में जब हम बहुत थके हुए, बहुत तनावग्रस्त, बहुत चिढ़े हुए थे.
2019 में, मैं हमारे जीवन में कुछ आभारी होने का चलन फिर से शुरू करने का वादा करती हूं.
आप अपने बच्चों के सामने अपने जज्बात को छिपा नहीं सकते. आपको छिपाना भी नहीं चाहिए. आप रोबोट नहीं हैं. आपको एकदम टीवी विज्ञापन जैसा एक सदा-प्रसन्न अभिभावक दिखने की जरूरत नहीं है. यह हकीकत नहीं है और आपके बच्चे भी इसे जानते हैं.
मैं अपनी बेटियों को अपनी जिंदगी के एक बड़े दायरे में शामिल करने का वादा करती हूं. हर मुश्किल से बच्चों को बचाना सबसे अच्छा तरीका नहीं है. मनोवैज्ञानिक बच्चों को वास्तविक दुनिया में बड़ा होने देने पर जोर देते हैं , जहां वे असल दुनिया के तनावों से निपटेंगे.
कुछ हद तक तनाव उन्हें विभिन्न गतिविधियों से जूझने में मदद करेगा- चाहे वह पढ़ाई हो या खेल हो या रोजमर्रा की जिंदगी. तनाव की कमी से बोरियत हो सकती है. और आप निश्चित रूप से उन्हें इससे अलग-थलग रखना चाहते हैं.
मुश्किलों पर काबू पाने से मेरी लड़कियों को आत्मविश्वासी बनने में मदद मिलेगी और नौजवान लड़कियों को निश्चित रूप से अधिक सकारात्मक आत्म छवि से फायदा मिलेगा.
बच्चों, 2019 के लिए तैयार रहो, जो संपूर्ण नहीं है. लेकिन फिर भी खूबसूरत है.
मेरे घर में सबसे जोरदार लड़ाई इस बात को लेकर होती है कि मैं चाहती हूं, मेरे बताए तरीके से काम किया जाए, जबकि मेरी लड़कियां इससे इनकार कर देती हैं. यह 2019 में भी नहीं बदलने वाला है. और मुझे इस मामले में ज्यादा स्मार्ट होने की जरूरत है.
‘आप जिंदगी में जो भी चाहें हासिल कर सकते हैं,’ और ‘तमीज से रहें और आपसे जैसा कहा जाता है, वैसा करें’ ये आपके बच्चों के दिमाग से खिलवाड़ करने वाले दो एकदम परस्पर विरोधी विचार हैं.
मैं ऐसा नहीं कर सकती कि 'रिबेल गर्ल्स’ बुक के किस्से सुनाऊं और साथ ही ‘माई वे ऑर हाईवे’ की नसीहत भी दूं.
तो लड़कियों, 2019 में, मैं तुमको अपना रास्ता खोजने का मौका देने का वादा करती हूं. और तुम्हें इसे स्वीकार करना व सम्मान करना सीखना होगा.
मैं कभी-कभार भटक सकती हूं, और जो ये बड़े-बड़े वादे कर रही हूं, वो सब भूल भी सकती हूं, लेकिन फिर आप कभी भी इस लेख को गूगल कर सकते हैं और इसे मेरे मुंह पर मार सकते हैं. तो लड़कियों, चलो 2019 का नया साल मनाते हैं, जबकि तुम्हारी मां ने विनम्रता की राह अपनाई है.
(FIT अब वाट्सएप पर भी है. आप जिन मुद्दों की परवाह करते हैं, उन पर चुनिंदा कहानियों को पाने के लिए हमारी वाट्सएप सेवाओं को सब्सक्राइब करें. यहां क्लिक करें और सेंड बटन को दबा दें.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: 29 Dec 2018,03:56 PM IST