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कितनी बार आपने एक वंडर वुमेन को देखा है और सोचा है कि काश मैं भी उसके जैसी होती? कितनी बार आपने उस दृश्य को देखा है, जिसमें स्पाइडरमैन एक अनजान के जीवन की रक्षा करता है और हीरोइज्म दिखाता है?
यहां एक रास्ता है, जिसके माध्यम से आप अपने सपने को पूरा कर सकते हैं और सुपर हीरो बन सकते हैं. अपने को अंग दाता के तौर पर पंजीकृत कराएं.
आपकी मौत के बाद आपके अंग का आपके या आपके परिवार के लिए कोई उपयोग नहीं है. लेकिन, ये कई परिवारों के लिए उपयोगी हो सकता है और कई जिंदगियां बचा सकता है. उस स्थिति की कल्पना करें (जिसके बारे में आशा करते हैं कि भविष्य में इस रास्ते पर आगे बढ़ें) जहां किसी की जिंदगी उसके उसके अंग के काम न करने के कारण खतरे में है और डॉक्टर उसके लिए कुछ नहीं कर सकता है.
ऐसे में आप सामान्य तरीके से उस व्यक्ति के जीवन की रक्षा कर सकते हैं, वो भी उस वक्त अपने अंग दान करके जब आप इस दुनिया को छोड़कर चले जाते हैं.
अंगदाता जीवित हो सकते हैं या मृत. हालांकि, अगर आपने अंग दान के लिए पंजीकरण किया है, तो भी आपकी मौत के बाद ही अंग लिया जा सकता है.
मानव अंग और उत्तकों की मांग और आपूर्ति के बीच बहुत बड़ा अंतर है. भारत में 1-1.5 लाख लोगों को गुर्दे की जरूरत है, लेकिन केवल 3500-4000 रोगियों को ही गुर्दा मिल पाता है. इसी तरह 1 लाख रोगियों को कॉर्निया प्रत्यारोपण की जरूरत है, लेकिन केवल 2500 रोगियों को ही यह मिल पाता है. दिल प्रत्यारोपण के मामले में यह अनुपात और भी कम है.
बिना किसी तरह की उम्र, नस्ल और लिंग के विभेद के कोई भी व्यक्ति अंग या उत्तक (टिशू) दाता बन सकता है. अगर आपकी उम्र 18 साल से कम है, तो आपके माता-पिता या कानूनी अभिभावकों की सहमति आवश्यक है. मेडिकल उपयुक्तता की पहचान मौत के समय की जाती है.
भारतीय कानून एक अन्य कदम प्रस्तुत करता है. अंग दान करने की प्रतिज्ञा कानूनी तौर पर अनिवार्य नहीं है. डोनर कार्ड किसी के अंग दान करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है और उस उद्देश्य के लिए उनके आपके परिवार की समझ को प्रदर्शित करता है.
अंग दान के आधिकारिक व्यक्ति को उस व्यक्ति की सहमति लेनी होती है, जो मौत के बाद अंगदाता के शरीर को उन्हें सौंप सके.
शरीर के कानूनी वारिस को शरीर से अंग निकालने के लिए लिखित सहमति देने की जरूरत होती है. इसलिए अपने निर्णय की चर्चा अपने परिवार के सदस्यों के साथ करें. यह समय आने पर आपकी प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए आपके परिवार को तैयार करने में सहायता करता है.
अस्पताल और संगठनों के पास आपके परिवार को निर्णय लेने तथा इस प्रक्रिया से गुजरने के लिए समझाने के लिए सलाहकार होता है.
जब तक आप यह स्पष्ट नहीं कर देते कि आप अपना अंग दान करना चाहते हैं और आपका परिवार इसके ऊपर सहमति नहीं जताता है, आपका अंग नहीं निकाला जा सकता है.
कुछ अंग दाता एजेंसी, जिसके पास आप जा सकते हैः
सरकारी साइट notto.nic.in, एम्स द्वारा पंजीकृत संगठन ओआरओबी या एनजीओ मोहन (एमओएचएएन) फाउंडेशन है.
जब कोई व्यक्ति ब्रेन डेड (दिमागी तौर पर मृत) घोषित किया जा चुका होता है, तो उसका अंग दान देने लायक होता है. चार डॉक्टरों के एक पैनल को 6 घंटे के अंदर दो बार ब्रेन स्टेम को मृत घोषित करने की जरूरत होती है. इस पैनल में अस्पताल के चिकित्सा प्रशासनिक प्रभारी (मेडिकल एडमिनिस्ट्रेशन इन चार्ज), अधिकृत विशेषज्ञ, न्यूरोलॉजिस्ट/न्यूरो-सर्जन और रोगी का इलाज करने वाला चिकित्सा अधिकारी होता है.
बहुत सारे विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अगर वर्तमान अंग दान के अंतर को पाटना है तो उसे स्पेन की तरह का मॉडल अपनाना चाहिए. स्पेन का हर नागरिक अपने आप ही अंग दाता बन जाता है, जब तक कि वह अंग दान से अपने को बाहर नहीं कर लेता है. यानी वहां अंग दान करने का विकल्प नहीं है बल्कि अंग दान नहीं करने का विकल्प होता है. अगर कोई अंग दान न करना चाहे, तभी उसे इसका विकल्प चुनना होता है, नहीं तो वह अपने आप अंग दाता बन जाता है.
इस व्यवस्था ने स्पेन को विश्व का सबसे बड़ा अंग दाता बना दिया है.
भारतीय समाज में मृतकों के अंग और ऊतक (टिशू) दान करने के संदर्भ में जागरुकता का अत्यंत अभाव है. अपने नजदीकी और प्रिय लोगों की मौत का झटका, ब्रेन डेड को मृत स्वीकार न करना, धार्मिक आस्था, मृतक शरीर की कुरूपता का भय और विभिन्न तरह के विचार ब्रेन डेड व्यक्ति के अंग और ऊतक के दान के रास्ते में बड़ी बाधा माने जाते हैं.
अगर समाज इसे जीने के तरीके की तरह इसे स्वीकार करता है, जो न केवल एक अनजान व्यक्ति के लिए जीवन का उपहार है बल्कि मानव समाज की सुरक्षा के लिए भी जरूरी है, तो अंग दान को सफलत बनाया जा सकता है.
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Published: 21 Aug 2017,08:03 AM IST