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हड्डियों का कमजोर होना उम्र से जुड़ी एक प्रक्रिया है, आमतौर पर 50 से 60 की उम्र के बाद हड्डियां कमजोर होने लगती हैं, ज्यादातर लोगों को इस वजह से जोड़ों के दर्द, अर्थराइटिस और ऑस्टियोपोरोसिस जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
हड्डियों के कमजोर होने के कारण हड्डियों से जुड़ी कई बीमारियां होने की आशंका बढ़ जाती है. ऐसी कई बीमारियां हैं, जिनका असर हमारी हड्डियों पर पड़ता है, लेकिन अक्सर लोग इनके बीच का अंतर नहीं समझ पाते.
इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल में ऑथोपेडिक्स के सीनियर कंसल्टेंट डॉ यश गुलाटी ने अर्थराइटिस और ऑस्टियोपोरोसिस जैसी हड्डी की बीमारियों के बीच अंतर बताया.
डॉ यश गुलाटी ने कहा, "ऑस्टियोपोरोसिस के लक्षण बहुत हल्के या बहुत गंभीर हो सकते हैं. इसके कारण कभी-कभी व्यक्ति की लंबाई भी कम हो जाती है. गर्दन या पीठ के निचले हिस्से में दर्द होना इसका आम लक्षण है."
पुरुषों और महिलाओं पर इसके पड़ने वाले प्रभाव के बारे में उन्होंने कहा, "50-55 साल की उम्र तक पुरुषों में इसकी आशंका अधिक होती है. लेकिन मेनोपॉज के बाद महिलाओं में इन बीमारियों की आशंका बढ़ जाती है. महिलाओं का हॉर्मोन एस्ट्रोजन हड्डियों के कार्टिलेज को सुरक्षित रखता है और हड्डियों में होने वाली टूट-फूट की मरम्मत करता रहता है. मेनोपॉज के बाद महिलाओं के शरीर में एस्ट्रोजन की मात्रा कम हो जाती है, जिससे अर्थराइटिस और ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है."
ये भी पाया गया है कि प्रदूषण के कारण हड्डियों के कमजोर होने की संभावना बढ़ जाती है. बुजुर्ग, जो वाहनों और उद्योगों के कारण होने वाले वायु प्रदूषण के संपर्क में रहते हैं, उनमें हड्डियों की बीमारियां और फ्रैक्चर का खतरा होता है. इसलिए अपने आप को वायु प्रदूषण से सुरक्षित रखें.
डॉ यश गुलाटी ने कहा, "स्मोकिंग और ज्यादा शराब का सेवन न करें क्योंकि इनका बुरा असर हड्डियों पर पड़ता है. गतिहीन जीवनशैली से बचें. एक्सरसाइज नहीं करने का बुरा असर हड्डियों पर पड़ता है. रेगुलर एक्सरसाइज जैसे सैर करना, जॉगिंग करना, नाचना, एरोबिक्स, खेल ये सब आपकी हड्डियों को मजबूत बनाए रखते हैं."
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