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राम गुलाम, यूपी के आजमगढ़ में एक गांव के पंच, एक दिन नहाते वक्त फिसल कर गिर पड़े. वो उठ नहीं पा रहे थे, बहुत दर्द हो रहा था. उन्हें जिला अस्पताल ले जाया गया, पता चला कि जांघ की हड्डी में फ्रैक्चर हो गया है. सर्जरी करानी पड़ेगी. उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि इतनी मामूली फिसलन से ऐसा फ्रैक्चर कि सर्जरी करानी पड़े.
उन्हें दिल्ली लाया गया. ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ सुशील शर्मा ने बताया कि उन्हें जांघ के उस हिस्से में फ्रैक्चर हुआ है, जिसे आम भाषा में हिप फ्रैक्चर कहते हैं. इसका कारण कमजोर हड्डियां होती हैं. राम गुलाम की सर्जरी हुई और उन्हें ठीक होने में काफी वक्त लगा.
इसके चार महीने बाद ही राम गुलाम अपने गांव की गली में कुत्ते से बचने के दौरान फिर से फिसले और उनका दूसरा हिप भी फ्रैक्चर हो गया. दोबारा सर्जरी करानी पड़ी और इस बार का ट्रीटमेंट पहले से ज्यादा दर्दनाक रहा.
अब वो वॉकर की मदद से चलते हैं. 65 की उम्र में 90 साल के लगते हैं. बीमार हैं और डिप्रेशन में हैं. दो सर्जरी के बाद उन्होंने ऑस्टियोपोरोसिस का इलाज शुरू कराया.
ऑस्टियोपोरोसिस एक बीमारी है, जिसमें हड्डियों का घनत्व (डेंसिटी) कम हो जाता है. हड्डियां इतनी कमजोर और भंगुर हो जाती हैं कि गिरने से, झुकने या छींकने-खांसने पर भी हड्डियों में फ्रैक्चर होने का खतरा रहता है.
हमारी हड्डियों का निर्माण ऊतकों से हुआ, जिनमें लगातार बदलाव होता है. जन्म से लेकर बड़ा होने तक हड्डियों का विकास होता है, वे मजबूत होती हैं. हड्डियों की डेंसिटी उम्र के 20वें पड़ाव पर सबसे ज्यादा होती है.
लेकिन जो लोग ऑस्टियोपोरोसिस से पीड़ित होते हैं, उनमें हड्डियों की नई कोशिकाओं का निर्माण बाधित हो जाता है. हड्डियां खोखली, कमजोर हो जाती हैं और इस तरह फ्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है.
पीठ और कूल्हे के फ्रैक्चर की वजह से लंबाई नहीं बढ़ती, बैकपेन होता है और यहां तक कि शारीरिक विकृति का भी खतरा रहता है. हिप फ्रैक्चर में अक्सर सर्जरी कराने की जरूरत होती है, जिसमें जान जाने या अक्षम होने का जोखिम भी रहता है.
ऑस्टियोपोरोसिस की पूर्व स्थिति को ऑस्टियोपेनिया कहा जाता है, जिसमें हड्डियां कमजोर हो जाती हैं लेकिन यह ऑस्टियोपोरोसिस जितनी गंभीर नहीं होती है.
नई दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के आथोर्पेडिक विभाग की ओर से अर्थराइटिस केयर फाउंडेशन (एसीएफ) के सहयोग से एक अध्ययन किया गया था.
इस अध्ययन में दिल्ली के करीब 9 प्रतिशत लोग ऑस्टियोपोरोसिस से और 60 प्रतिशत लोग ऑस्टियोपेनिया से पीड़ित पाए गए थे.
आमतौर पर ऑस्टियोपोरोसिस का पता फ्रैक्चर के बाद ही चलता है, लेकिन अगर आप में इसका जोखिम कारक है, तो डॉक्टर के पास जाकर चेकअप करा लेना चाहिए. कई तरह के बोन मिनरल डेंसिटी (BMD) टेस्ट के जरिए बोन लॉस का पता लगाया जा सकता है.
इंटरनेशनल ऑस्टियोपोरोसिस फाउंडेशन (आईओएफ) द्वारा आहार के रूप में कैल्शियम सेवन पर जारी एक अध्ययन के मुताबिक, कैल्शियम हड्डियों का एक प्रमुख घटक है, जो करीब 30 से 35 प्रतिशत द्रव्यमान व ताकत के लिए जरूरी है. कैल्शियम का कम सेवन हड्डी-खनिज के कम घनत्व से जुड़ा हुआ है, जो ऑस्टियोपोरोसिस और हड्डियों के टूटने का खतरा बढ़ाता है.
डॉ केके अग्रवाल बताते हैं कि दूध, दही और पनीर से पर्याप्त कैल्शियम मिल जाता है. आदर्श रूप से सुबह और शाम को एक-एक गिलास दूध और दोपहर को दही और पनीर लेने से कैल्शियम की पर्याप्त मात्रा मिल जाती है.
कैल्शियम काले चने, उड़द की दाल और तिल में भी मौजूद होता है. इसके साथ ही पर्याप्त विटामिन डी प्राप्त करना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह कैल्शियम के अवशोषण में मदद करता है.
लाइफस्टाइल में जरूरी बदलाव और ठीक तरह से इलाज कराके कई फ्रैक्चर से बचा जा सकता है और ऑस्टियोपोरोसिस को बहुत हद तक मैनेज किया जा सकता है.
(इनपुट- इंटरनेशनल ऑस्टियोपोरोसिस फाउंडेशन, आईएएनएस)
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Published: 18 Oct 2018,04:58 PM IST